लेखक कुछ अपनी और कुछ दुनिया की बातें दर्ज करता है और उसको आने वाली नस्ल को सौंप कर जाता है। यह अलग बात है कि आने वाली नस्ल तक पहुंचते-पहुंचते इतिहास बदल जाता है। सभी लेखकों ने मानों अपनी जिंदगी चूल्हे पर रखी है और उसमें उबलती हांडियों पर वे अपने जज्बातों को पका रहे हैं।
ये शब्द प्रतिष्ठित कवि, कथाकार एवं फ़िल्म निर्देशक गुलजार के हैं। साहित्य अकादमी के ‘साहित्योत्सव’ में साहित्य अकादमी पुरस्कार 2019 के विजेताओं के लिए पुरस्कार अर्पण समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने कहा था कि साहित्य अकादमी ने अपने आरंभ से ही अपनी स्वायत्तता बनाए रखी। उम्मीद की जा सकती है कि यह आने वाले समय में भी बनी रहेगी।
गुलजार ने सैंतीस भाषाओं किए जा रहे अपने उस कार्य का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने इन भाषाओं के कवियों के द्वारा 1947 पर कही गई कविताओं का अनुवाद किया है और महसूस किया है कि उन सबका स्वर एक ही है। और वह है-एक शहर की तलाश या एक नई सुबह का इंतजार।
अन्विता अब्बी ने कहा कि आदिवासी वाचिक साहित्य, लोक साहित्य की परंपरा की ही कड़ी है, जिसमें हमारा दैनिक जनजीवन नदी की धारा की भाँति प्रवाहित होता है। हमें सामाजिकता एवं समावेशिता को साथ-साथ लेकर चलना चाहिए। वाचिक साहित्य को कभी मरने नहीं देना चाहिए। इसे स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए।