जन्माष्टमी को अब कुछ दिन ही बाकी हैं। इस त्योहार को पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी के मौके पर दही हांडी उत्सव भी सेलिब्रेट किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी मनाई जाती है। भगवान के जन्म की खुशियां मनाने के लिए दही हांडी का आयोजन किया जाता है।
हालांकि इस साल कोरोना वायरस के कारण दही हांडी का उत्सव सेलिब्रेट नहीं किया जा सकेगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर जन्माष्टमी के दिन दही हांडी क्यों फोड़ते हैं। भगवान कृष्ण को दही और मक्खन (माखन) बेहद पसंद था। वह अक्सर गोपियों की मटकियों से मक्खन चुराकर खाया करते थे। गोपियां कृष्ण से परेशान होकर उनकी शिकायत मां यशोदा से करने आती थीं। माता यशोदा के समझाने का भी बाल गोपाल पर कोई असर नहीं होता था।
कहते हैं कि गोपियां अपने दही को श्रीकृष्ण से बचाने के लिए मटकी को ऊंचाई पर टांग देती थीं। लेकिन कान्हा अपनी चतुराई से चढ़कर मटकी से दही या माखन चुरा लेते थे। कृष्ण को उनकी माखन लीलाओं के कारण माखन चोर के नाम से पुकारा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की इन्हीं लीलाओं को याद करने के लिए हर साल जन्माष्टमी पर दही हांडी उत्सव मनाया जाता है।
श्रीमद्भागवत दशम स्कंध में कृष्ण जन्म का उल्लेख मिलता है। इसमें कहा गया है कि जिस समय पृथ्वी पर अर्धरात्रि में कृष्ण अवतरित हुए ब्रज में उस समय पर घनघोर बादल छाए थे। आज भी कृष्ण जन्म के समय अर्धरात्रि में चंद्रमा उदय होता है। उस समय धर्मग्रंथ में अर्धरात्रि का जिक्र है।