
प्रभु आशुतोष के पूजन व अभिषेक में बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है। ऋषियों ने कहा है कि बिल्वपत्र भोले-भंडारी को चढ़ाना एक करोड़ कन्यादान के समान है। बेल का वृक्ष हमारे यहां संपूर्ण सिद्धियों का आश्रय स्थल माना जाता है।
इस वृक्ष के नीचे स्तोत्र पाठ या जप करने से उसके फल में अनंत गुना की वृद्धि के साथ ही शीघ्र सिद्धि की प्राप्ति होती है। इसके फल की समिधा से लक्ष्मी का आगमन होता है। बिल्वपत्र के सेवन से कर्ण सहित अनेक रोगों का शमन होता है। बिल्व पत्र सभी देवी-देवताओं को अर्पित करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है।
‘न यजैद् बिल्व पत्रैश्च भास्करं दिवाकरं वृन्तहीने बिल्वपत्रे समर्पयेत’ के अनुसार भगवान सूर्यनारायण को भी पूरी डंडी तोड़कर बिल्वपत्र अर्पित कर सकते हैं। यदि साधक स्वयं बिल्वपत्र तोड़ें तो उसे ऋषि आचारेन्दु के द्वारा बताए इस मंत्र का जप करना चाहिए-
‘अमृतोद्भव श्री वृक्ष महादेवत्रिय सदा।
गृहणामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्।।’
बिल्वपत्र कब न तोड़ें
लिंगपुराण में बिल्वपत्र को तोड़ने के लिए चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, संक्रांति काल एवं सोमवार को निषिद्ध माना गया है। शिव या देवताओं को बिल्वपत्र प्रिय होने के कारण इसे समर्पित करने के लिए किसी भी दिन या काल जानने की आवश्यकता नहीं है।
यह हमेशा उपयोग हेतु ग्राह्य है। जिस दिन तोड़ना निषिद्ध है उस दिन चढ़ाने के लिए साधक को एक दिन पूर्व ही तोड़ लेना चाहिए। बिल्वपत्र कभी बासी नहीं होते। ये कभी अशुद्ध भी नहीं होते हैं। इन्हें एक बार प्रयोग करने के पश्चात दूसरी बार धोकर प्रयोग में लाने की भी स्कन्द पुराण के इस श्लोक में आज्ञा है-
‘अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरार्यर्पणियानि न नवानि यदि क्वाचित।।’
बिल्वपत्र के वे ही पत्र पूजार्थ उपयोगी हैं जिनके तीन पत्र या उससे अधिक पत्र एकसाथ संलग्न हों। त्रिसंख्या से न्यून पत्ती वाला बिल्वपत्र पूजन योग्य नहीं होता है। प्रभु को अर्पित करने के पूर्व बिल्वपत्र की डंडी की गांठ तोड़ देना चाहिए।
सारदीपिका के ‘स्युबिल्व पत्रमधो मुखम्’ के अनुसार बिल्वपत्र को नीचे की ओर मुख करने (पत्र का चिकना भाग नीचे रहे) ही चढ़ाना चाहिए। पत्र की संख्या में विषम संख्या का ही विधान शास्त्रसम्मत है।
बिल्वपत्र चढ़ाने के शुभ फल
शिवरात्रि, श्रावण, प्रदोष, ज्योतिर्लिंग, बाणर्लिंग में इसे भगवान रुद्र पर समर्पित करने से अनंत गुना फल मिलता है। किसी भी पूजन में या शिव पूजन में बिल्वपत्र का अनंत गुना फल मिलता है। किसी भी पूजन में या शिव पूजन में बिल्वपत्र का उपयोग अति आवश्यक एवं पापों का क्षय करने वाला होता है।
यदि किसी कारणवश बिल्वपत्र उपलब्ध न हो तो स्वर्ण, रजत, ताम्र के बिल्वपत्र बनाकर भी पूजन कर सकते हैं। ऐसा करने का फल भी वनस्पतिजन्य बिल्वपत्र के समकक्ष है। यदि किसी संकल्प के निमित्त बिल्वपत्र चढ़ाना हो तो प्रतिदिन समान संख्या में या वृद्धि क्रम की संख्या में ही उपयोग करना चाहिए। अधिक संख्या के पश्चात न्यून संख्या में नहीं चढ़ाना चाहिए।
पुराणों में उल्लेख है कि 10 स्वर्ण मुद्रा के दान के बराबर एक आक पुष्प के चढ़ाने से फल मिलता है। 1 हजार आक के फूल का फल एवं 1 कनेर के फूल के चढ़ाने का फल समान है। 1 हजार कनेर के पुष्प को चढ़ाने का फल एक बिल्व पत्र के चढ़ाने से मिल जाता है।
इसके वृक्ष के दर्शन व स्पर्श से ही कई प्रकार के पापों का शमन हो जाता है तो इस वृक्ष को कटाने अथवा तोड़ने या उखाड़ने से लगने वाले पाप से केवल ब्रह्मा ही बचा सकते हैं। अत: किसी भी स्थिति में इस वृक्ष को नष्ट होने से बचाने के लिए प्रयत्नशील रहना आध्यात्मिक एवं पर्यावरण दोनों की दृष्टि से लाभकारी है।
बिल्वपत्र चढ़ाने के नियम
यदि बिल्वपत्र पर चंदन या अष्टगंध से ॐ, शिव पंचाक्षर मंत्र या शिव नाम लिखकर चढ़ाया जाता है तो फलस्वरूप व्यक्ति की दुर्लभ कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। कालिका पुराण के अनुसार चढ़े हुए बिल्व पत्र को सीधे हाथ के अंगूठे एवं तर्जनी (अंगूठे के पास की उंगली) से पकड़कर उतारना चाहिए। चढ़ाने के लिए सीधे हाथ की अनामिका (रिंग फिंगर) एवं अंगूठे का प्रयोग करना चाहिए।
तीन जन्मों के पापों के संहार के लिए त्रिनेत्ररूपी भगवान शिव को तीन पत्तियोंयुक्त बिल्व पत्र, जो सत्व-रज-तम का प्रतीक है, को इस मंत्र को बोलकर अर्पित करना चाहिए-
‘त्रिदलं त्रिगुणाकरं त्रिनेत्र व त्रिधायुतम्।
त्रिजन्म पाप संहारं एकबिल्वम शिवार्पणम्।।
शिव उपासना अर्थात मंगल की कामना की साधना के लिए यदि प्रत्येक शिवभक्त अर्थात कल्याण की आकांक्षा का प्रेमी यदि बेल पत्र के वृक्ष का रोपण एवं उसके पत्र का अर्पण करें तो देश की अनेक समस्याओं सहित पर्यावरण की समस्या से भी बहुत हद तक मुक्ति मिल सकती है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। आवश्यकता मात्र ऐसे शिवभक्तों की है।
बिल्वपत्र के बारे में महत्वपूर्ण बातें
बिल्वपत्र 6 महीने तक बासी नहीं माना जाता। इसे एक बार शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद धोकर पुन: चढ़ाया जा सकता है। कई जगह शिवालयों में बिल्वपत्र उपलब्ध नहीं हो पाने पर इसके चूर्ण को चढ़ाने का विधान भी है।
बिल्वपत्र को औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसमें निहित इगेलिन व इगेलेनिन नामक क्षार-तत्व औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। यह चातुर्मास में उत्पन्न होने वाली विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से भी निजात दिलाता है ।
यह गैस, कफ और अपचन की समस्या को दूर करने में सक्षम है। इसके अलावा यह कृमि और दुर्गंध की समस्या में भी फायदेमंद है । प्रतिदिन 7 बिल्वपत्र खाकर पानी पीने से स्वप्नदोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है। इसी प्रकार यह एक औषधि के रूप में भी काम आता है।
मधुमेह के रोगियों के लिए बिल्वपत्र रामबाण इलाज है। मधुमेह होने पर 5 बिल्वपत्र, 5 कालीमिर्च के साथ प्रतिदिन सुबह के समय खाने से अत्यधिक लाभ होता है। बिल्वपत्र के प्रतिदिन सेवन से गर्मी बढ़ने की समस्या भी समाप्त हो जाती है।
शिवलिंग पर प्रतिदिन बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं भक्त को कभी भी पैसों की समस्या नहीं रहती है। बिल्वपत्र को तिजोरी में रखने से भी बरकत आती है।
कुछ विशेष तिथियों पर बिल्वपत्र को तोड़ना वर्जित होता है। चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति पर बिल्वपत्र को नहीं तोड़ना चाहिए।
सोमवार के दिन बिल्वपत्र को नहीं तोड़ना चाहिए, इसमें शिवजी का वास माना जाता है। इसके अलावा प्रतिदिन दोपहर के बाद भी बिल्वपत्र नहीं तोड़ना चाहिए।
बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्र
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।
शुभ मुहूर्त, राहुकाल और पंचांग 27 जुलाई 2020
विक्रम संवत्-2077, हिजरी सन्-1440-41, ईस्वी सन्-2020। अयन-दक्षिणायण। मास-श्रावण।पक्ष-शुक्ल। संवत्सर नाम-प्रमादी। ऋतु-वर्षा। वार-सोमवार। तिथि (सूर्योदयकालीन)-सप्तमी/ अष्टमी-(क्षय)। नक्षत्र (सूर्योदयकालीन)-चित्रा। योग (सूर्योदयकालीन)-साध्य। करण। (सूर्योदयकालीन)-वाणिज। लग्न (सूर्योदयकालीन)-कर्क। शुभ समय-6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक। राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक। दिशा शूल-आग्नेय। योगिनी वास-वायव्य। गुरु तारा-उदित। शुक्र तारा-उदित। चंद्र स्थिति-तुला। व्रत/मुहूर्त-भद्रा/श्री तुलसीदास जयंती। यात्रा शकुन-मीठा दूध पीकर यात्रा करें।
आज का मंत्र-ॐ सौं सोमाय नम:। आज का उपाय-मंदिर में मखाने चढाएं। वनस्पति तंत्र उपाय-पलाश के वृक्ष में जल चढ़ाएं।
गुरु और शुक्र का समसप्तक योग
राशियों के लिए कैसा होगा गुरु और शुक्र का परिवर्तन, आज इसी संदर्भ में चर्चा करेंगे कि क्या कहते हैं आपके सितारे। 31 जुलाई और 1 अगस्त के बीच शुक्र राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। 31 जुलाई-1 अगस्त को शुक्र मिथुन राशि में प्रवेश करने वाले हैं। शुक्र के मिथुन राशि में गोचर के साथ राहु और बुध भी होंगे। वहीं धनु राशि में गुरु के साथ केतु भी मौजूद होंगे। इन ग्रहों की एक-दूसरे के सातवें घर में दृष्टि होगी। दरअसल, ज्योतिष शास्त्र में गुरु और शुक्र को एक-दूसरे का शत्रु माना गया है। इन ग्रहों के समसप्तक योग से 12 राशियां प्रभावित होंगी।
मेष: पराक्रम बढ़ेगा। धन से जुड़ी परेशानियां दूर होंगी। भाई-बहन के साथ रिश्तों में मधुरता आएगी। चिढ़चिढ़ापन दूर होगा। नौकरी और व्यापार की दिक्कतें भी इस वक्त दूर हो सकती हैं। हनुमान चालीसा पढ़ने और हनुमान जी को सफेद पुष्प अर्पित करने से लाभ होगा।
वृषभ-गुरु और शुक्र का यह योग इस राशि के लिए लाभकारी साबित होगा। इस दौरान आपके पारिवारिक जीवन में सुधार देखने को मिलेंगे। साथ ही परिवार के साथ अच्छा समय भी बीतेगा। आपकी भाषा मधुर और लोगों को प्रभावित करने वाली होगी। इस दौरान आप अपने ऊपर थोड़ा धन खर्च भी कर सकते हैं।
मिथुन: शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हैं, उन्हें लाभ मिलेगा। कार्यक्षेत्र में आपको नया पद मिल सकता है। आप सदैव नया सीखने के लिए तत्पर रहेंगे और आय के नए साधन भी बनेंगे। इस दौरान आपके बिजनेस में भी बढ़ोत्तरी के अवसर बन सकते हैं, जिसका लाभ आपको भविष्य में होगा।
कर्क- व्यवहार में चिढ़चिढ़ेपन के चलते पिछले काफी समय से जो नुकसान हो रहा था, वो अब दूर हो सकता है। घर में सुखों का निवास होगा। जीवन साथी का सहयोग मिलेगा। अविवाहितों के विवाह के योग बनेंगे। फैशन के मामले में खर्चे बढ़ सकते हैं।
सिंह: मनोकामनाएं पूरी होंगी। इसके अलावा आप विदेश यात्रा का सोच रहे हैं, तो यह आपके लिए शुभ है। आपके कार्यक्षेत्र में आपको तारीफ मिलेगी। इस राशि की महिलाओं को धन लाभ भी हो सकता है। इसके अलावा सरकारी योजना का भी लाभ मिलेगा।
कन्या- शारीरिक कष्ट हो सकता है। मानसिक चिंता में वृद्धि होगी। व्यर्थ धन हानि होगी। कार्यक्षेत्र में संकट आएंगे। शत्रु प्रभावी होंगे। स्त्री जाति से कष्ट होगा। लोगों से बेवजह विवाद बढ़ेगा।
तुला: पुराने रोगों से मुक्ति मिलेगी। साथ ही ज्ञान में भी इजाफा होगा। कोर्ट-कचहरी के मामलों में भी इस राशि के जातकों को शुभ संदेश मिल सकता है। शादीशुदा लोगों का पारिवारिक जीवन खुशहाल रहेगा।
वृश्चिक: संकटों से मुक्ति मिलेगी। धन की स्थिति सामान्य रहेगी, लेकिन खर्चों में तेजी से इजाफा होगा। संबंधियों से लाभ हो सकता है। प्रेम संबंध सफल होंगे। जीवनसाथी का सहयोग मिलेगा। मानसिक चिंताएं नहीं रहेंगी। नौकरी में चल रही दिक्कतें दूर हो सकती हैं।
धनु: सामाजिक स्तर उठने के साथ मान-सम्मान में भी इजाफा होगा। आपके गिले-शिकवे भी दूर होंगे। माता-पिता की सेहत अच्छी रहेगी और घर में किसी नए सदस्य का आगमन भी हो सकता है। ससुराल पक्ष से जातकों को लाभ मिलेगा और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता मिलेगी।
मकर-शत्रुओं से संभलकर रहना होगा। शत्रु प्रभावी होंगे। साझेदारी से हानि होगी। जीवनसाथी से मतभेद होंगे। दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना है। मानसिक तनाव बढ़ेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें। दाम्पत्य सुख की हानि होगी। प्रेम संबंध असफल होंगे।
कुंभ: पुत्र से लाभ हो सकता है। प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। शत्रु पराजित होंगे। संतान प्राप्ति के योग बनेंगे। प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त होगी। प्रेम संबंध सफल होंगे। जीवनसाथी का सहयोग मिलेगा। पर्यटन के अवसर प्राप्त होंगे। भूमि, भवन, वाहन खरीदने के योग बनेंगे।
मीन: वाहन या जमीन की खरीदारी के लिए यह समय काफी शुभ रहेगा। इस दौरान किया गया निवेश लंबे समय तक लाभ देगा। सुखों की प्राप्ति होगी। खर्चे कम होंगे। कर्ज से मुक्ति मिलेगी। माता के स्वास्थ्य में सुधार होगा।