
Language of religion: अमूर्त जगत का विषय धर्म है। और मूर्त जगत का विषय विज्ञान। लेकिन धर्म दर्शन इन दोनों से परे है। उसकी भाषा ही निराली है। आज हम समझेंगे कि धर्म दर्शन में किस प्रकार की भाषा का प्रयोग होता है। और उसके निहितार्थ क्या होते हैं?
Language of religion: प्रतीकात्मक ढंग से बात करता है धर्म दर्शन
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। Language of religion: धर्म ईश्वर की बात करता है। और विज्ञान भौतिक पदार्थों की। मनुष्य खुद पदार्थ का बना है। इसलिए उसकी समझ विज्ञान की भाषा तक सीमित है। हालांकि जब शब्दों से काम नहीं चल पाता तब विज्ञान भी प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग करता है।
इसका उदाहरण हमें यातायात व्यवस्था में देखने को मिलता है। जब हम अपनी कार से तेज गति से जा रहे होते हैं तो हमारे पास वाक्य पढ़ने का समय नहीं होता। इसीलिए यदि यह बताना होता है कि आगे स्पीड ब्रेकर है तो बोर्ड पर स्पीड ब्रेकर का संकेतक ग्राफिक्स बना दिया जाता है। और उसे देखते ही बिना कुछ पढ़े हम समझ जाते हैं कि आगे स्पीड ब्रेकर है। और हम अपने वाहन की गति धीमी कर लेते हैं।
शब्दों की पहुंच सीमित
दरअसल, मानव के अलावा कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जो शब्दों से काम चलाता हो। सभी प्राणी किसी न किसी ध्वनि या संकेतों से बात कर लेते हैं। मानव समाज अपने शब्दों में ही उलझ कर रह गया है। लेकिन शब्दों की पहुंच सीमित है।
आसमान की सैर करने के लिए विज्ञान ने तकनीक का विकास किया। लेकिन पक्षी सहज ही आसमान की सैर कर लेते हैं। भाषा के मामले में भी पक्षियों ने अपने कद का परिचय दिया है। तोता हमारी भाषा बोल लेता है। लेकिन हम पक्षियों की भाषा न बोल सकते हैं और न ही समझ सकते हैं। पक्षियों से एक वाकया याद आ रहा है।
टेलर बर्ड की भाषा
हमारे घर के लॉन में टेलर बर्ड ने चार अंडे दिए थे। जिनमें एक अंडा खराब हो गया। बाकी तीन से चूजे निकल आए थे। सीनियर चूजा आत्मनिर्भर होकर चला गया। बाकी दो चूजे खतरों से बेखबर लॉन में विचरण कर रहे थे। उन्हें आसमान में विचरण कर रहे बाज से खतरा था तो जमीन पर एक पालतू बिल्ली से। उनकी सुरक्षा की व्यवस्था मुझे ही करनी थी।
गूगल करके उनके रहन—सहन के बारे में जानकारी जुटाई। और शाम तक अपने घर में उनके भोजन—पानी और विश्राम की व्यवस्था की। जब कुछ विकसित हुए तो उनकी समस्या यह थी कि पूछ छोटी होने के कारण वे लॉन के आसमान में विचरण करते समय दिशा नहीं बदल पाते थे और पास के घर में जाकर गिर जाते थे। उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था करना एक चुनौती थी। क्योंकि हम उनसे बात तो कर नहीं सकते थे।
शरीर रूपी विमान के कुशल पायलट
अंत में टेलर बर्ड की मदद लेना एकमात्र विकल्प बचा। हम चूजों को लॉन में ले गए। उसी समय टेलर बर्ड आई और एक विशेष आवाज करके उन्हें प्रशिक्षण देने लगी। चूजे उसकी भाषा बखूबी समझ रहे थे। और धीरे—धीरे वे अपने शरीर रूपी विमान के कुशल पायलट बन गए। आज भी वे लॉन में आते हैं और अपनी भाषा में कुछ कहते हैं। लेकिन उनकी भाषा मेरी समझ से परे होती है। सही कहा गया है—खग जाने खग ही की भाषा।
यह उदाहरण इसलिए महत्वपूर्ण है कि धर्म दर्शन की भाषा हर किसी की समझ से परे है। जब हम कहते हैं कि प्रभु यीशु ईश्वर के पुत्र थे। तो इस वाक्य का अर्थ उस वाक्य से भिन्न है, जिसमें हम कहते हैं कि भगवान राम दशरथ के पुत्र थे। इस भिन्नता से हमें पता चलता है कि जैविक पिता और परम पिता में क्या अंतर होता है?
निष्कर्ष
Language of religion: हमने कुछ उदाहरणों से समझा कि जहां शब्दों की सीमा समाप्त हो जाती है। वहीं से शुरू होती है प्रतीकात्मक भाषा की सीमा। यह प्रतीकात्मक भाषा विभिन्न धर्मों में देवी—देवताओं की मूर्तियों के रूप में किस प्रकार प्रतिष्ठापित हुई? इस पर चर्चा फिर कभी। हमारा यह आलेख आपको कैसा लगा? कमेंट करके जरूर बताएं। ताकि हम आपको विचारों की दुनिया की सैर पर ले जा सकें। आगे बहुत आनंद आएगा। बस आप हमारे साथ बने रहें।