
Law on MSP: नीति आयोग के सदस्य और कृषि अर्थशास्त्री प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा है कि एमएसपी लीगल करने से भविष्य में अनेक संवैधानिक चुनौतियों का सामना करना होगा। कृषि क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर खत्म हो जाएगा और निर्यात बंद हो जाएंगे। लेकिन किसान नेताओं के मुताबिक, एमएसपी को कानूनी दर्जा मिल जाने से सभी किसानों को एमएसपी का लाभ मिल सकेगा। उससे सरकारी खजाने पर कोई खास असर नहीं होगा, बिचौलियों का मुनाफा जरूर कम हो जाएगा।
Law on MSP: फसलों के दाम की गारंटी पर कानून चाहते हैं किसान
इंफोपोस्ट डेस्क
Law on MSP: तीनों खेती कानून वापस ले लिए जाने के बाद भी किसानों का आंदोलन जिस प्रमुख मांग को लेकर जारी है, वह है फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum support price) यानी एमएसपी। यह सरकार की तरफ से किसानों की कुछ फसलों के दाम की गारंटी होती है।
राशन सिस्टम के तहत जरूरतमंद लोगों को अनाज मुहैया कराने के लिए सरकार एमएसपी पर किसानों से उनकी फसल खरीदती है। लेकिन मात्र छह प्रतिशत किसानों की फसल सरकार खरीदती है। बाकी को एमएसपी का लाभ नहीं मिल पाता।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के मुताबिक़, उनकी अहम मांगों में से एक है, “सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत पर ख़रीद को अपराध घोषित करे और एमएसपी पर सरकारी ख़रीद लागू रहे।”
आसान नहीं है एमएसपी को कानून बनाना
एमएसपी पर ख़ुद प्रधानमंत्री ट्वीट कर कह चुके हैं, “मैं पहले भी कहा चुका हूं और एक बार फिर कहता हूं, MSP की व्यवस्था जारी रहेगी। सरकारी ख़रीद जारी रहेगी। हम यहां अपने किसानों की सेवा के लिए हैं। हम अन्नदाताओं की सहायता के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे और उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करेंगे।”
लेकिन ये बात सरकार बिल में लिख कर देने को तैयार नहीं है। सरकार की दलील है कि इसके पहले के क़ानूनों में भी लिखित में ये बात कहीं नहीं थी। इसलिए नए बिल में इसे शामिल नहीं किया गया। दरअसल, एमएसपी पर सरकारी ख़रीद चालू रहे और उससे कम पर फसल ख़रीदने को अपराध घोषित करना, आसान नहीं है।
क़ानून का पालन किया कैसे जाएगा?
अगर एमएसपी पर ख़रीद का प्रावधान सरकार कानून में जोड़ भी दे तो आख़िर क़ानून का पालन किया कैसे जाएगा? एमएसपी हमेशा एक ‘फेयर एवरेज क्वॉलिटी’ के लिए होता है। यानी, फसल की निश्चित की गई क्वॉलिटी होगी तो ही उसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाएगा। अब कोई फसल गुणवत्ता के मानकों पर ठीक बैठती है या नहीं इसे तय कैसे किया जाएगा?
सरकार को कई कमेटियों ने सिफारिश दी है कि गेंहू और धान की खरीद सरकार को कम करनी चाहिए। इससे संबंधित शांता कुमार कमेटी से लेकर नीति आयोग की रिपोर्ट सरकार के पास है। सरकार इसी उद्देश्य के तहत काम भी कर रही है। आने वाले दिनों में ये ख़रीद कम होने वाली है। यही डर किसानों को सता भी रहा है।
निजी कंपनियां भी बन सकती हैं समस्या
ऐसे में जो फसल सरकार खरीदेगी या नहीं, खरीदेगी तो कितना और कब खरीदेगी जब ये तय नहीं है तो लिखित में पहले से सरकार एमएसपी वाली बात कानून में कैसे कह सकती है? भविष्य में सरकारें कम खरीदेंगी तो जाहिर है किसान निजी कंपनियों को फसलें बेचेंगे।
निजी कंपनियां चाहेंगी कि वे एमएसपी से कम पर खरीदें ताकि उनका मुनाफ़ा बढ़ सके। इसलिए सरकार निजी कंपनियों पर ये शर्त थोपना नहीं चाहती। इसमें सरकार के भी कुछ हित जुड़े हैं और निजी कंपनियों को भी इससे दिक्कत होगी।
अर्थव्यवस्था के लिहाज से भी एमएसपी पर सरकार की हिचकिचाहट को एक और तरीके से समझा जा सकता है। इसके लिए दो शब्दों को समझना ज़रूरी है। ‘मोनॉपली’ और ‘मोनॉप्सनी’। ‘मोनॉपली’ का मतलब जब बेचने वाला एक ही हो और उसकी ही मनमानी चलती हो, तो वो मनमानी कीमत वसूल करता है।
कंपनियों के गठजोड़ का खतरा
‘मोनॉप्सनी’ का मतलब ख़रीदने वाला एक ही हो और उसकी मनमानी चलती है। यानी वह जिस कीमत पर चाहे उसी कीमत पर सामान ख़रीदेगा। सरकार ने जो नए क़ानून पास किए थे, उससे आने वाले दिनों में कृषि क्षेत्र में ‘मोनॉप्सनी’ बनने वाली थी। कुछ एक कंपनियां ही कृषि क्षेत्र में अपना एक कार्टेल (गठजोड़) बना लेतीं तो वो जो कीमत तय करतीं, उसी पर किसानों को सामान बेचना होता।
अगर एमएसपी का प्रावधान क़ानून में जोड़ दिया गया तो किसानों पर निजी कंपनियों का वर्चस्व ख़त्म हो सकता है। इसका नतीजा ये भी हो सकता है कि ये कंपनियाँ फसलें कम खरीदेंगी।सरकार के पास कोई रास्ता नहीं है जिससे एमएसपी पर पूरी फसल ख़रीदने के लिए निजी कंपनियों को बाध्य कर सके।
किसान फसल बेचेंगे किसको?
ऐसे में किसान के लिए भी दिक्कत बढ़ सकती है। आखिर वे अपनी फसल बेचेंगे किसको? ऐसे में हो सकता है कि एमएसपी तो दूर उनकी लागत भी न निकल पाए। एमएसपी से किसानों को फसल की कीमत तय करने का एक न्यूनतम आधार मिलता है। ताकि फसल की कीमत उससे कम न हो। एमएसपी उन्हें एक सोशल सुरक्षा प्रदान करती है।
लेकिन निजी कंपनियां सामान की कीमतें डिमांड और सप्लाई के हिसाब से तय करती हैं। ‘मोनॉपली’ से कृत्रिम तौर पर कुछ अनाज की सप्लाई की कमी पैदा की जा सकती है। ताकि उपभोक्ता से ज्यादा कीमत वसूल कर सकें। वहीं ‘मोनॉप्सनी’ से कम खरीद करके डिमांड की कमी पैदा की जा सकती है। ताकि किसान कम कीमत पर बेचने को मजबूर हों।
इसलिए सरकार दोनों पक्षों के विवाद में पड़ना ही नहीं चाहती। सरकार इस पूरे मसले को द्विपक्षीय रखना चाहती है। अगर क़ानून में एमएसपी का प्रावधान जोड़ दिया तो इससे जुड़े हर मुकदमे में तीन पक्ष शामिल होंगे। एक सरकार, दूसरा किसान और तीसरा निजी कंपनी।
समाधान क्या हो सकता है?
Law on MSP: एक अनुमान के मुताबिक़, देश में 85 फीसदी छोटे किसान हैं। उनके पास खेती के लिए पांच एकड़ से कम ज़मीन है। एमएसपी से नीचे ख़रीद को अपराध घोषित करने पर भी विवाद खत्म नहीं होगा। शायद इसीलिए तीनों खेती क़ानून वापस ले लिए गए। इसका एक रास्ता है कि सरकार किसानों को डायरेक्ट फ़ाइनेंशियल सपोर्ट दे। जैसा किसान सम्मान निधि के ज़रिये किया जा रहा है। और दूसरा उपाय है कि किसान दूसरी फसलें भी उगाए जिनकी मार्केट में डिमांड है।
अभी केवल गेहूं और धान उगाने पर किसान ज्यादा ज़ोर देते हैं। दलहन और ऑयल सीड पर किसानों का रुझान कम ही होता है। फिर भी यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार क्या समाधान निकालती है? क्योंकि एमएसपी पर कानून की मांग के समर्थन में अमृतसर से किसानों के जत्थे सैकड़ों ट्रैक्टर ट्रालियों में भर कर आ रहे हैं और दिल्ली की सीमा पर जमा हो रहे हैं।