ललिता षष्ठी व्रत 24 अगस्त 2020 को है। वैसे तो मोरयाई छठ, सूर्य षष्ठी, चम्पा षष्ठी भी है, लेकिन खास है ललिता षष्ठी। इस दिन देवी ललिता की कथा का पाठ करना चाहिए और उनकी विधिवत पूजा—आराधना करनी चाहिए।
आदि शक्ति देवी ललिता का वर्णन देवी पुराण से प्राप्त होता है। नैमिषारण्य में एक बार यज्ञ हो रहा था, जहां दक्ष प्रजापति के आने पर सभी देवता गण उनका स्वागत करने के लिए उठे, लेकिन भगवान शंकर वहां होने के बावजूद नहीं उठे। इसी अपमान का बदला लेने के लिए दक्ष ने अपने यज्ञ में शिवजी को आमंत्रित नहीं किया।
फिर भी मां सती भगवान शंकर से अनुमति लिए बिना अपने पिता राजा दक्ष के घर पहुंच गईं। उस यज्ञ में अपने पिता के द्वारा भगवान शंकर की निंदा सुनकर और खुद को अपमानित होते देख कर उन्होने उसी अग्नि कुंड में कूद कर प्राण त्याग दिया। भगवान शिव को पता चला तो वह मां सती के प्रेम में व्याकुल हो गए। मां सती के शव को कंधे पर रख कर वह इधर उधर उन्मत भाव से घूमने लगे।
भगवान शंकर की इस स्थिति से विश्व की सम्पूर्ण व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गई। विवश होकर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। मां सती के शरीर के अंग कट कर जगह जगह गिर गए। उन अंगों से शक्ति आकृतियों के रूप में उन स्थानों पर विराजमान हो गईं। यही स्थान शक्तिपीठ स्थल के रूप में विख्यात हो गए।
महादेव भी उन स्थानों पर भैरव के विभिन्न रुपों में स्थित हैं। नैमिषारण्य में मां सती का ह्रदय गिरा था। नैमिष एक लिंगधारिणी शक्तिपीठ स्थल है। जहां लिंग स्वरूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है और यहीं मां ललिता देवी का मंदिर भी है। वहां दरवाजे पर ही पंचप्रयाग तीर्थ विद्यमान है।
भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंग धारिणी नाम से विख्यात हुईं। उन्हें ललिता देवी के नाम से पुकारा जाने लगा। एक अन्य कथा के अनुसार ललिता देवी का प्रादुर्भाव तब होता है जब ब्रह्मा जी के चक्र से पाताल समाप्त होने लगा। इस स्थिति से विचलित होकर ऋषि-मुनि माता ललिता देवी की उपासना करने लगे। प्रसन्न होकर देवी प्रकट हुईं और इस विनाशकारी चक्र को रोक दिया।
मां ललिता की पूजा करना चाहते हैं तो सूर्यास्त से पहले उठें और सफेद व हरे रंग के वस्त्र धारण करें। इसके बाद एक चौकी लें और उस पर गंगाजल छिड़कें। स्वंय उतर दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं। फिर चौकी पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं।
चौकी पर कपड़ा बिछाने के बाद मां ललिता की तस्वीर स्थापित करें। यदि आपको मां षोडशी की तस्वीर न मिले तो आप श्री यंत्र भी स्थापित कर सकते हैं। इसके बाद मां ललिता का कुमकुम से तिलक करें और उन्हें अक्षत, फल, फूल, दूध से बना प्रसाद या खीर अर्पित करें।
मां ललिता की विधिवत पूजा करें और ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥ मंत्र का जाप करें। इसके बाद मां ललिता की कथा सुनें या पढ़ें। कथा पढ़ने के बाद मां ललिता की धूप व दीप से आरती उतारें और उन्हें सफेद रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं।
मां ललिता को सफेद रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं और माता से पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगें। पूजा के बाद प्रसाद का नौ वर्ष से छोटी कन्याओं के बीच में वितरण कर दें। यदि आपको नौ वर्ष से छोटी कन्याएं न मिलें तो आप यह प्रसाद गाय को खिला दें।