आज सावन का अंतिम सोमवार है। यह दिन भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इसलिए इस दिन उनकी आराधना की जाती है। कहा जाता है कि सावन के सोमवार के दिन की गई शिव की आराधना कई गुना अधिक फलदायी होती है। लेकिन किसी भी देवता की आराधना करने से पूर्व उनके रहस्यों को जानना जरूरी है। इससे आराधना का फल बढ़ जाता है। आज हम भगवान शिव के गले में लिपटे नाग के बारे में बताएंगे।
भगवान शिव के गले में लिपटे नाग का नाम वासुकि है। वासुनि नाग के पिता ऋषि कश्यप और माता कद्रू थीं। वासुकि नाग के बड़े भाई का नाभ शेष (अनंत) और अन्य भाइयों का नाम तक्षक, पिंगला और कर्कोटक था।
शेष नाग विष्णु के सेवक तो वासुकि शिव के सेवक बने। वासुकि भगवान शिव के परम भक्त थे। वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने उन्हें अपने गणों में शामिल कर लिया था। मान्यता है कि वासुकि का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था। वासुकी को नागलोक का राजा माना गया है।
भगवान शिव के साथ ही वासुकि नाग की भी पूजा होती है। इसीलिए नागपंचमी पर शेषनाग के बाद वासुकि नाग की पूजा जरूरी है। समुद्र मंथन के दौरान वासुकि नाग को ही रस्सी के रूप में मेरू पर्वत के चारों और लपेटकर मंथन किया गया था, जिससे उनका संपूर्ण शरीर लहूलुहान हो गया था। माना जाता है कि वासुकि के कारण ही नाग जाति के लोगों ने ही सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरू किया था।
वासुकि ने ही कुंती पुत्र भीम को दस हजार हाथियों के बल प्राप्ति का वरदान दिया था। जब भीम को दुर्योधन ने धोखे से विष पिलाकर गंगा नदी में फेंक दिया था तब भीम नागलोक पहुंच गए थे। वहां पर भीम के नानाजी ने वासुकि को बताया कि यह कौन है तब वासुनिक नाग ने भीम का विष उतारा और उन्हें दस हजार हथियों का बल प्रदान किया।
वासुकि के सिर पर ही नागमणि होती थी। जब भगवान श्री कृष्ण को कंस की जेल से चुपचाप वसुदेव उन्हें गोकुल ले जा रहे थे तब रास्ते में जोरदार बारिश हो रही थी। इसी बारिश और यमुना के उफान से वासुकि नाग ने ही श्री कृष्ण का पानी से बचाव किया था। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि शेषनाग ने ऐसा किया था।