
Life of slums of Delhi: हरियाणा और पंजाब के किसान नए कृषि कानून के विरोध में दिल्ली की सीमा पर डेरा डाले हुए हैं। लेकिन आज हम दिल्ली के उन मजदूरों के जीवन में झांकेंगे, जिनके लिए बनाए गए कानून को ही समाप्त कर दिया गया है। उनकी मेहनत से तमाम सियासत दां के घर रोशन हैं। लेकिन मजदूरों के हालत बताते हैं कि चिराग तले अंधेरा है।
Life of slums of Delhi: अमीर गरीब की खाई में धंसे दिल्ली के लोग
राजीव कुमार झा
Life of slums of Delhi: दिल्ली में लोग खूब पैसा भी कमाते हैं। और बड़ी तादाद में यहां झुग्गी झोपड़ियों में भी बेहद तकलीफ में लोग रहते हैं। यहां रेल की पटरियों के किनारे भी लंबी कतार में दूर-दूर तक झुग्गियां फैली दिखाई देती हैं। और यहां पटरियों पर ट्रेन की चपेट में आने से लोगों की मौतें भी होती हैं।
Life of slums of Delhi: भारतीय रेल ने कुछ पखवारे पहले दिल्ली की पटरियों के किनारे से झुग्गी झोपड़ियों को हटाने की घोषणा की थी। और इसी के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इन झुग्गीवासियों को प्लैट देने की घोषणा भी की है। दिल्ली सरकार झुग्गियों में रहने वाले परिवारों को राशन कार्ड की सुविधा प्रदान करती है। और इससे फ्लैट की सुविधा के लिए चयनित परिवारों की पहचान में दिल्ली सरकार को सुविधा होगी।
श्रमिकों का वर्ग सुविधाओं से वंचित
देश में सरकारी उपक्रमों की तरह से छोटे-बड़े निजी कुछ उपक्रमों में श्रमिकों को इपीएफ और इएआई की सुविधा देने में सरकार के साथ इन कंपनियों और प्रतिष्ठानों की भागीदारी है। लेकिन काफी तादाद में इन सुविधाओं से श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग वंचित है।
झुग्गी झोपड़ियों में बेहद गरीब लोग रहते हैं। और वहां सामुदायिक रूप में लोगों का जीवन बेहद अस्त—व्यस्त रूप में बसा दिखाई देता है। यहां रहने वाले लोग अपने शहर-महानगर में स्थायी-अस्थायी तौर पर काम करते हैं।
उन्हें आवास जो एक बुनियादी जीवन तत्व है, इसकी सुविधा उन फैक्ट्रियों, आफिसों, दुकानों की ओर से इन्हें मिलनी चाहिए। जो यहां के समाज में इस वर्ग के लोगों के नियोक्ता के रूप में यहां इनके श्रम के शोषण से बेहद समृद्ध जीवन को जीते दिखाई देते हैं।
देश के सुदूर क्षेत्रों के ग्रामीण
झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोग देश के सुदूर क्षेत्रों के ग्रामीण होते हैं। और अपनी परंपरागत जीवन संस्कृति के अलावा यहां इसके छिन्न भिन्न होते तार में उलझे दिखाई देते हैं। और झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के बच्चे अपने आस पास की स्थायी बस्तियों में स्थित स्कूलों में पढ़ने जाते हैं।
दिल्ली की किसी झुग्गी झोपड़ी कालोनी में पहली बार जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इतिहास विभाग के प्राध्यापक प्रभात कुमार बसंत के साथ गया था। और हम लोगों के साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक शुभेंदु घोष भी थे। इन लोगों ने प्रतिध्वनि नामक एक गीत गायन समूह बनाया था। और इसके सदस्यों की साप्ताहिक बैठक गोल मार्केट के पास भगत सिंह मार्केट में जोगेनसेन गुप्ता के घर पर होती थी।
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई
उन दिनों मैं यहीं रहता था। और प्रतिध्वनि का सदस्य बन गया था। यहां गोरख पांडे के गीतों के अलावा दुष्यंत कुमार की गजल और सलिल चौधरी के गीतों को मैंने भी गाना सीखा। गोरख पांडे का गीत समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई और दुष्यंत कुमार की गजल… कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए… प्रतिध्वनि के सदस्य खूब गाते थे।
इसके अलावा छतीसगढ़ी लोकगीत भी हमलोग गाते थे। मैं प्रतिध्वनि के सदस्य के तौर पर ही प्रभात कुमार बसंत और शुभेन्दु घोष के साथ हैदरपुर की किसी झुग्गी झोपड़ी कालोनी में आशा नियोगी के कार्यक्रम में गीत गाने गया था। और पहली बार दिल्ली की झुग्गी झोपड़ियों में यहां रहने वाले लोगों के जीवन को मैंने देखा। दोपहर तक आशा नियोगी की सभा में हमलोग शामिल रहे थे।
मजदूरों की उपलब्धता झुग्गी झोपड़ियों से
आशा नियोगी छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध मजदूर नेता शंकरगुहा नियोगी की पत्नी थीं। और छत्तीसगढ़ के मजदूरों को संगठित करने की प्रक्रिया में यहां के उद्योग माफिया की हत्या की साजिश के वे शिकार हो गए। आशा नियोगी को दिल्ली में रहने वाले छत्तीसगढ़ के श्रमिकों ने शायद हैदरपुर में सभा करने के लिए बुलाया था।
दिल्ली में अस्थायी ठेके वाले मजदूरों की उपलब्धता झुग्गी झोपड़ियों से ही पूरी होती है। और यह तबका दिल्ली सरकार के लिए एक उपेक्षित तबके की तरह से रहा है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी चुनावी वोटों की राजनीति से ऊपर उठ कर दिल्ली के झुग्गी झोपड़ीवासियों की समस्याओं को सुलझाने के लिए आगे आना होगा। और केंद्र सरकार को भी पृथक् झुग्गी झोपड़ी मंत्रालय का गठन करके यहां के निवासियों के समुचित विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता को प्रकट करना होगा।
झुग्गी झोपड़ियों का सामाजिक परिवेश
झुग्गी झोपड़ियों का सामाजिक परिवेश बेहद पिछड़ा हुआ है। यहां के परिवारों के बच्चे आस पास के प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने के लिए जाते दिखाई देते हैं। लेकिन इनमें ज्यादातर बच्चे ऊंची कक्षाओं में पढ़ाई से अलग हो जाते हैं। और यहां के कालेज और विश्वविद्यालयों में इस पृष्ठभूमि का कोई भी छात्र दिखाई नहीं देता।

दिल्ली में रमणिका गुप्ता के डिफेंस कालोनी स्थित प्रकाशन गृह में जब मैं कापी संपादक के तौर पर काम करता था। तब मैं शाहदरा रेलवे स्टेशन के पास मानसरोवर पार्क रेलवे स्टेशन के नीचे खेड़ा गांव में रहता था। और कम वेतन की वजह से बस से डिफेंस कालोनी आना-जाना मेरे लिए मुफीद नहीं था।
तो मैं डिफेंस कालोनी के पास स्थित रेलवे स्टेशन सेवा नगर से सफदरगंज, सदर बाजार, पुरानी दिल्ली होते हुए लोकल ट्रेन से सिर्फ दो रुपये में शाहदरा आ जाता था। और इसी तरह हापुड़ से शाहदरा होते तिलक ब्रिज जाने वाली ट्रेन से आगे दूसरी ट्रेन बदल कर सेवा नगर आता था। उस साल इसी तरह मैंने बस भाड़े का पैसा बचा कर दीपावली मनाया।
मानसरोवर पार्क के पास खेड़ा गांव
मानसरोवर पार्क के पास खेड़ा गांव में तब मैं अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहता था। और मेरे बेटे को अपच-उल्टी की बीमारी हो गई थी। जिसका इलाज कराने ये लोग गीता कालोनी के पास के नेहरू चिल्ड्रेन अस्पताल में जाया करते थे। यहां के इलाज से बीमारी ठीक हो गई थी।
दिल्ली और देश के अन्य महानगरों में यौन सुखोपभोग की दैहिक चेतना को कई रूपों में जन्म दिया है। रमणिका गुप्ता के यहां काम करने के दौरान उनके घर पर कुछ दिनों के लिए कोई लड़की जो उनकी रिश्तेदार थी, वह आकर रह रही थी। और यहां ड्राइंगरूम में काम करने के दौरान वह अक्सर मेरी कुर्सी के पास खड़ी हो जाती थी।
सलज्ज नेत्रों से मुखातिब होकर कामजन्य भावों को प्रकट करती थी। बाद में रमणिका गुप्ता ने उसे ड्राइंगरूम में मेरे पास आने से मना किया। और मुझे उसके किसी प्रेम प्रसंग के बारे में बताया। शायद अब महानगरों में लोगों के प्रेम प्रसंग अगर किसी के साथ हैं तो उसके काम संबंध किसी और के साथ भी हो सकते हैं।
उन्मुकत यौनाचार की अपसंस्कृति
उन्मुकत यौनाचार की अपसंस्कृति ने यौन पवित्रता की परंपरागत अवधारणा को खत्म कर दिया है।रमणिका गुप्ता की छोटी बेटी तरंग गुप्ता भी जो तलाकशुदा महिला थीं, वह अमेरिका में टूरिज्म एक्जीक्यूटिव थीं। और वहां से दिल्ली आने के बाद शाम में घर के मैनेजर को रुकने के लिए कहती थीं।
वह इसके बारे में किसी को कुछ नहीं बता पाता था। लेकिन रमणिका गुप्ता की नौकरानी ने तरंग गुप्ता और मैनेजर के रिश्तों के बारे में दबी छिपी आवाज में किसी को बताया। तरंग गुप्ता एक सौम्य स्वभाव की चौवन पचपन साल की खूबसूरत नारी थीं।
मैनेजर उससे उम्र में काफी छोटा था। यौन शोषण से मैनेजर आत्मिक संस्कारों से रहित और दैहिक रूप से दीन हीन प्राणी बन जाता था। वह काम कुंठा की प्रतिमूर्ति बन गया था। हम संकल्प व्रत से ही चारित्रिक उन्नयन के मार्ग पर अग्रसर होंगे।
महिलाओं और बच्चों की दशा चिंताजनक
दिल्ली की झुग्गी झोपड़ियों से काफी औरतें यहां की पाश कालोनियों में घरेलू काम काज करने आती हैं। और यहां चरित्रभ्रष्ट हो जाती हैं। झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाली महिलाओं और बच्चों की दशा चिंताजनक है।
दिल्ली में लोकल ट्रेन से शाहदरा और सेवा नगर के बीच की यात्रा के दौरान मैं रेल पटरियों के किनारे असंख्य झुग्गियों झोपड़ियों को देखा करता था। और रात में बिजली बल्व की रोशनी के अलावा सुबह के समय भी एक उदासी यहां फैली दिखाई देती थी।
