
Love Day:स्वागत है आपका। आज चर्चा प्रेम की। जिसे कहा गया ढाई आखर प्रेम का। प्रेम हमेशा बाँटना सिखाता है। वो चाहे दूर रहकर ही क्यों न हो। लेकिन दिल क़रीब होना चाहिए। यही सिखाता है वैलेंटाइन डे और यही सिखाता है बसंत उत्सव।
Love Day: कन्वेंशनल जर्नलिज्म और सोशल मीडिया

Love Day: वैलेंटाइन डे यानी प्यार का दिन। इज़हार का दिन। इकरार का दिन। मोहब्बत का दिन। और इस मोहब्बत के दिन अगर सारे देशों के लोग मिलकर ज़ूम एप्प के द्वारा मिलकर प्यार बाँट रहे हैं। और साथ साथ चर्चा कर रहे हैं। तो इससे बढ़कर कोई बात नहीं है।
क्योंकि प्रेम हमेशा बाँटना सिखाता है। वो चाहे दूर रहकर ही क्यों न हो। लेकिन दिल क़रीब होना चाहिए। यही सिखाता है वैलेंटाइन डे और यही सिखाता है बसंत उत्सव। यह कहना था मारवाह स्टूडियो के निदेशक डॉ. संदीप मारवाह का।
कन्वेंशनल जर्नलिज्म और पॉवर ऑफ़ सोशल मीडिया 9वें ग्लोबल फ़ेस्टिवल ऑफ़ जर्नलिज्म के तीसरे दिन। वेबिनार का विषय रहा कन्वेंशनल जर्नलिज्म और पॉवर ऑफ़ सोशल मीडिया। उसमें अनेक जाने माने लोगों ने हिस्सा लिया।
जर्नलिस्ट एवं कवि बी. एल. गौर, प्रणाम भारती के फाउंडर दीपक दुबे, लेखक एवं जर्नलिस्ट डॉ. हरीश चंद्र बरनवाल, जर्नलिस्ट विनोद शर्मा, जर्नलिस्ट श्वेता रेड्डी गज़ाला, एडम्स यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर उज्ज्वल चौधरी, एजुकेशन एंड इनोवेशन मीडिया एंड एंटरटेनमेंट की प्रिंसिपल शालिनी शर्मा, जर्नलिस्ट राजीव चौधरी और डे जोसेफिन विशेष रूप से उपस्थित रहे।
दोनों जर्नलिज्म एक ही सिक्के के दो पहलू
हरीश बनवाल के कहा कि जहाँ तक मैं सोचता हूँ ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अगर हाल ही की घटना की बात करें तो चमोली में जो कुछ हुआ वो सोशल मीडिया के माध्यम से ही लाखों लोगों तक पहुंचा। और बाद में मीडिया तक। इसीलिए मैं यही कहना चाहूँगा कि अगर यह दोनों मिलकर काम करें तो हमारा नेटवर्क बेहतर हो सकता है।
श्वेता रेड्डी गज़ाला ने कहा कि हैदराबाद जैसे शहर में यूट्यूब चैनल काफी संख्या में हैं। जिन्होंने सामाजिक समस्याओं को बखूबी दिखाया और यहाँ तक कि सरकार को भी कई कड़े फैसले लेने के लिए मजबूर कर दिया। इसीलिए मैं कहूँगी दोनों ही मीडिया काम करती है, लेकिन जिस तरह से सोशल मीडिया एक्टिव है, उसमें कई चीज़ें फेक भी होती हैं।
क्या सही था और क्या गलत
दीपक दुबे ने कहा कि आज हम सोशल मीडिया और कन्वेंशनल मीडिया पर चर्चा कर रहे हैं। लेकिन इन सबके होने के बावजूद हम दूसरे दिन अखबार ज़रूर पढ़ते हैं कि उसमें से क्या सही था और क्या गलत।
और मैं यह कहना चाहूंगा कि नोएडा फिल्म सिटी का नाम आते ही मेरे ज़हन में एक ही नाम आता है, वो है डॉ. संदीप मारवाह। जिन्होंने पूरी फिल्म इंडस्ट्री को नोएडा में ला दिया। आज दुनिया को ज़ूम एप्प पर।