
Maharashtra Crisis: गोदी मीडिया ने भले ही महाराष्ट्र संकट पर घोषणा कर दी है कि उद्धव सरकार अल्पमत में आ गई है। सरकार का गिरना तय है। और देवेंद्र फडणवीस की ताजपोशी की औपचारिकता मात्र बची है। लेकिन पिक्चर अभी बाकी है। इसलिए सिनेमा हाल की कुर्सी थाम कर बैठे रहिए।
Maharashtra Crisis: देवेंद्र फडणवीस के पास दो गेम प्लान
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। Maharashtra Crisis: देवेंद्र फडणवीस के पास इस समय दो गेम प्लान बताए जा रहे हैं। पहला गेम प्लान यह है कि शिंदे साहब एकाध दिन में मुंबई आएंगे और गवर्नर कोशियारी साहब से मिलेंगे। और उनसे फ्लोर टेस्ट की बात करेंगे। यानी सदन के अंदर शक्ति परीक्षण की बात करेंगे। दूसरा गेम प्लान यह है कि देवेंद्र फडणवीस खुद गवर्नर से मिलें और उनसे फ्लोर टेस्ट की मांग करें।
अगर ऐसा हुआ तो शिवसेना के बागी विधायक अनुपस्थित रहेंगे। बताया जा रहा है कि महाविकास अघाड़ी के भी कुछ विधायक अनुपस्थित रह सकते हैं। महाविकास अघाड़ी सरकार की कुल क्षमता 125 की बताई जा रही है। इसी प्रकार उद्धव सरकार के खिलाफ 162 विधायक हैं। इस परिदृश्य में देवेंद्र फडणवीस के चेहरे पर चमक नजर आ रही है।
फडणवीस का रास्ता उतना आसान नहीं, जितना बताया गया
महाराष्ट्र में अभी भी देवेंद्र फडणवीस का रास्ता उतना आसान नहीं है, जितना कि गोदी मीडिया बता रहा है। क्योंकि गोदी मीडिया पर जिस कदर झाराझार महाराष्ट्र संकट की खबरें दिखाई जा रही हैं, उससे यही लग रहा है कि गोदी मीडिया हमसे कुछ छिपाना चाहता है और कुछ अतिरिक्त बताना चाहता है।
सवाल है कि गोदी मीडिया ऐसा क्यों कर रहा है? जवाब है कि गोदी मीडिया जिसके खिलाफ खड़ा होता है, सबसे पहले उसका आत्मविश्वास तोड़ने की कोशिश करता है। देखा जाए तो अभी भी राज्यपाल को कोई भी ऐसा पत्र नहीं दिया गया है, जिसमें यह कहा गया हो कि बागी विधायकों ने उद्धव सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। और महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार अल्पमत में आ गई है।
फडणवीस की राह का सबसे बड़ा कांटा शरद पवार जैसा क्षत्रप
गोदी मीडिया ने काफी हद तक उद्धव ठाकरे के आत्मविश्वास को तोड़ भी दिया था। तभी तो वह मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने को तैयार भी हो गए थे। लेकिन शरद पवार ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया था। तब से उद्धव ठाकरे पूरी मजबूती के साथ संघर्ष के मैदान में डटे हैं।
दरअसल, शरद पवार की खासियत है कि जब वह खेल को कमजोर समझते हैं तो उसे छोड़ देते हैं। लेकिन फिलहाल उनकी चाणक्य नीति नित नए गुल खिला रही है। तभी तो 16 बागी विधायकों को अयोग्य करार देने के लिए नोटिस जारी कर दिए गए हैं। अभी यह मामला सुप्रीम कोर्ट के पास है, जिसकी सुनवाई 11 जुलाई को होनी है।
अशोक वानखेड़े की नजर में असली पिक्चर तो अब आएगी सामने
अशोक वानखेड़े एक ऐसे वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो निर्भीकता से बेबाक टिप्पणी करते हैं। उनका कहना है कि इस खेल में जब अंपायर ही पक्षपाती हो तो फिर खेल कैसा? इसे तो फिक्सिंग ही कहा जाएगा। फिर भी ऐसा लगता है कि फिक्सिंग भी देवेंद्र फडणवीस के किसी काम नहीं आने वाली है। शरद पवार जैसे महाक्षत्रप के सामने साजिश की एक एक कड़ी बिखर सकती है।
वजह यह है कि इस बार मामला काफी पेचीदा हो गया है। सर्वोच्च न्यायालय में मामला जाने से किसी को अभी जीत नहीं मिली है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना अभी बाकी है। अभी तक कोई भी गवर्नर के पास यह बोलकर नहीं गया कि सरकार अल्पमत में है। सरकार का गिरना या बनना गोदी मीडिया की खबरों पर निर्भर नहीं करता। विश्वास मत तो डिप्टी स्पीकर ही दिलाएगा। वही डिप्टी स्पीकर जिसने 16 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए नोटिस जारी कर रखा है।
संपादक की नजर में क्या है निष्कर्ष?
Maharashtra Crisis: दरअसल, उद्धव ठाकरे पर बागी विधायकों ने दो प्रमुख आरोप मढ़े हैं। पहला यह कि ठाकरे हिंदुत्व से डिग गए हैं, क्योंकि उन्होंने एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई है। लेकिन क्या आपको लगता है कि हिंदुत्व या सनातन धर्म इतना छोटा है कि कोई पार्टी विशेष उसे क्षति पहुंचा सकती है? दूसरा प्रश्न यह कि क्या किसी एक पार्टी में इतनी क्षमता है कि वह संपूर्ण हिंदुत्व की सूत्रधार बन सकती है? दूसरी पार्टियों में भी हिंदू हैं। कांग्रेस ने तो राम जन्मभूमि का ताला खुलवा दिया था। इसके विपरीत भाजपा में भी ऐसे नेता आ गए हैं, जिनका हिंदुत्व से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। वे तो स्वार्थ की डोर पकड़ कर पार्टी में आ गए।
दूसरा आरोप यह है कि ठाकरे अपने विधायकों से बात तक नहीं करते थे। इसलिए वे बागी हो गए। लेकिन बताया जा रहा है कि शिवसेना ऐसे रिकॉर्डेड आडियो जारी करने जा रही है, जिसमें फोन पर ठाकरे ने अपने विधायकों से न केवल बात की है, बल्कि उनकी समस्याओं का भी समाधान किया है। अविश्वास प्रस्ताव के मौके पर इन प्रश्नों के उत्तर बागी विधायकों को देने होंगे। उन पर अयोग्यता की तलवार जो लटकी है सो अलग।