
सिस्टम की कमजोरी से मीडिया कर्मचारी न्याय से वंचित हैं और उन्हें शोषण व अत्याचार का शिकार होना पड़ रहा है। आए दिन उनके बारे में बुरी खबरें आ रही हैं। अभी की बात करें तो चंडीगढ़ में दैनिक भास्कर के मीडियाकर्मी को काम के दबाव और नौकरी जाने की धमकी देकर सुसाइड करने को मजबूर कर दिया गया। उधर, हिंदुस्तान अखबार के संवाददाता राजीव सारस्वत छंटनी के बाद सदमे में ब्रेन हैमरेज के शिकार हो गए। इलाज के बाद भी उन्हें बचाया न जा सका।
यह तो ताजा घटनाओं का उदाहरण भर है। इसकी क्रोनोलाजी में जाएंगे तो मीडिया कर्मचारियों की दुर्दशा झेलने वाले लोगों की सूची बहुत लंबी हो जाएगी। देश दुनिया और समाज के लिए फिक्रमंद इस तबके की न तो सरकार को फिक्र है और न ही जनता को। इसी उदासीनता का लाभ कुछ मीडिया घराने उठा रहे हैं और कोरोना के नाम पर उनकी मुनाफाखोरी चल पड़ी है।
अब उन्हें न तो वेजबोर्ड लागू करने की चिंता है और न ही श्रमजीवी पत्रकार कानून की। मजीठिया वेजबोर्ड के लिए अखबार कर्मचारी अदालतों के धक्के खा रहे हैं, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा है। इस संदर्भ में सुप्रीमकोर्ट ने भी इतना गोलमोल आदेश जारी किया कि उसका फायदा अखबार घराने बखूबी उठा रहे हैं।
श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार
श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचारी मजीठिया वेजबाेर्ड के अनुसार वेतन और भत्ताें के भुगतान के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार अखबार मालिकाें के पक्ष में है। यह मुद्दा भाजपा के चुनाव घाेषणा पत्र में शामिल है। फिर भी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इसकी कोई खबर तक नहीं है। उनसे जब पत्रकाराें ने मजीठिया लागू कराने की बात कही ताे उन्हाेंने अनभिज्ञता जता दी।
इसी प्रकार नाेएडा विधायक पंकज सिंह ने भी अपने अल्पज्ञान का हवाला देकर मुद्दे से पल्ला झाड़ लिया। सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. महेश शर्मा भी पत्रकारों की कोई मदद नहीं कर सके। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को भी ढेरों शिकायतें भेजी जा रही हैं, लेकिन अखबार कर्मचारियों के लिए उत्तर प्रदेश में वेजबोर्ड लागू नहीं हो पाया। पत्रकार इस मुद्दे काे कांग्रेस के चुनाव घाेषणापत्र में शामिल कराने के लिए मेल कर चुके हैं। सवाल यह है कि इतने अल्पज्ञान वाले नेता अखबार कर्मचारियों का भला कैसे कर पाएंगे?
सेवा शर्तों के लिए विनियमन
श्रमजीवी और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) विविध प्रावधान अधिनियम, 1955 श्रमजीवी पत्रकारों और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचारियों की सेवा शर्तों के लिए विनियमन प्रदान करता है। इस अधिनियम की धारा 9 और 13सी अन्य विषयों में क्रमश: श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचारियों के संबंध में वेतन दरों के निर्धारण अथवा सुधार के लिए दो वेतन बोर्डों के गठन के लिए कानून का प्रावधान मुहैया कराती है।
केन्द्र सरकार आवश्यकता पड़ने पर वेतन बोर्डों का गठन करती है जिसमें समाचारपत्र प्रतिष्ठानों से संबंधित तीन व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व होता है। तीन व्यक्ति समाचार पत्र प्रतिष्ठानों के संबंध में नियोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। तीन व्यक्ति इस अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत वेतन बोर्ड के लिए श्रमजीवी पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और तीन व्यक्ति धारा 13सी के अंतर्गत गैर-पत्रकार समाचार पत्र कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश
चार स्वतंत्र व्यक्तियाें में एक वह व्यक्ति होता है, जो उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश है अथवा रह न्यायाधीश रह चुका है। इस व्यक्ति की नियुक्ति अध्यक्ष के रूप में सरकार करती है। 1955 से सरकार श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचारियों के लिए 6 वेतन बोर्डों का गठन कर चुकी है, लेकिन लाग एक भी नहीं किया जा सका।
अखबार कर्मचारियों के लिए पहले वेजबाेर्ड (DIVATIA) का गठन 2 मई 1956 काे किया गया। इसकी अनुशंसाओं काे सरकार ने 10 मई 1957 काे स्वीकार किया। इसकी संवैधानिक वैधता काे एक्सप्रेस न्यूज पेपर प्राइवेट लिमिटेड ने सुप्रीम काेर्ट में चुनाैती दी। सुप्रीम काेर्ट ने 30 अप्रैल 1957 काे इसे इस आधार पर खारिज कर दिया कि इसे लागू करना उद्याेग की क्षमता से बाहर था।
अध्यादेश काफी चर्चा का विषय बना
इस वजह से 14 जून 1958 काे जारी अध्यादेश काफी चर्चा का विषय बना। उसके आधार पर केंद्र सरकार ने पत्रकाराें के लिए वेतन दरें तय करने की व्यवस्था की थी। बाद में (सितंबर 1958) श्रमजीवी पत्रकाराें के लिए अधिनियम संसद ने पारित कर दिया था।