Meta’s Facebook: अगर आप किसी व्यक्ति को अपना गुलाम बनाना चाहते हैं तो बस एक वाक्य उसके लिए नियमित रूप से बोलते रहिए, बहुत जम रहे हैं आप। इसी मनोवृत्ति के आधार पर फेसबुक का उद्भव और विकास हुआ। क्योंकि वहां आपको यह बताने की सुविधा मिलती है कि किसी विशेष समय पर आप क्या कर रहे हैं या क्या सोच रहे हैं। इसी को ‘स्टेट्स अपडेट’ कहा जाता है। जानते हैं कि इंटरनेट पर राज करने वाली फेसबुक को चलाने वाली मेटानेटवर्क नामक कंपनी की कहानी, जिसके फाउंडरों ने आपकी भावनाओं का लाभ उठा कर आपको मानसिक रूप से गुलाम बना लिया।
Meta’s Facebook: फेसबुक के विकास की कहानी
इंफोपोस्ट डेस्क
Meta’s Facebook: बात 2004 की है, जब हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्र मार्क ज़ुकेरबर्ग ने फेसबुक की तकनीक को खोज निकाला। तब इसका नाम द फेसबुक था। युवाओं ने इस प्लेटफार्म को हाथोहाथ लिया और यह वेबसाइट न केवल कॉलेज परिसर में छा गई, बल्कि पूरे यूरोप में इसे पहचान मिल गई। अगस्त 2005 में इसका नाम फेसबुक कर दिया गया।
आप सोच रहे होंगे कि हम आज अचानक फेसबुक की चर्चा क्यों करने लग रहे हैं? तो बता देते हैं कि यह कंपनी इतिहास में पहली बार हज़ारों लोगों की छंटनी कर रही है। एक वक़्त वह भी था जब कोरोना महामारी के दौरान यह कंपनी सफलता के झंडे गाड़ रही थी। उस समय सिलिकॉन वैली की कई और कंपनियां नए लोगों को काम पर रख रही थीं। यही हाल आज इसी तरह की कई और कंपनियों का भी है।
कभी एक ट्रिलियन डॉलर की कंपनी रही मेटा
पिछले दिनों फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हॉट्सऐप की मालिक कंपनी मेटा के प्रेसिडेंट और सीईओ मार्क ज़ुकरबर्ग ने कंपनी के 11 हज़ार कर्मचारियों को नौकरी से निकाले जाने के फ़ैसले को वाजिब ठहराया था। उन्होंने कहा था, “मैं ग़लत था और मैं इसकी ज़िम्मेदारी लेता हूं।”
वर्ष 2021 में मेटा अपने पीक पर थी। उसका बाज़ार मूल्य एक ट्रिलियन डॉलर था। लेकिन अब कंपनी की क़ीमत में सैकड़ों अरब डॉलर की गिरावट आ चुकी है। एलन मस्क के नेतृत्व में ट्विटर ने कंपनी के वर्कफ़ोर्स में 50 फ़ीसदी तक की कटौती का एलान किया है। ई-कॉमर्स कंपनी अमेज़न ने भी छंटनी करने का मन बना लिया है। उससे दस हज़ार कर्मचारी बेरोजगार होंगे।
कई बड़ी कंपनियों से निकाले गए 20 हजार लोग
जिन और कंपनियों ने छंटनी की घोषणा की है, उनमें नेटफ़्लिक्स, स्ट्राइप, स्नैप, रॉबिनहुड, पेलोटोन, लिफ़्ट और कॉइनबेस शामिल हैं। इन कंपनियों का प्रदर्शन कोरोना महामारी के समय शिखर पर पहुंच गया था। हाल फिलहाल सिलिकॉन वैली की कई बड़ी कंपनियों ने 20 हज़ार से ज़्यादा लोगों को नौकरी से निकाला है।
हालत यह है कि ट्विटर ने ब्लू टिक के लिए पैसे लेने पर अचानक रोक लगा दी है। एलन मस्क के ट्विटर खरीदने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब बड़े बदलाव का एक फ़ैसला कंपनी ने वापस ले लिया है। ब्लू टिक सब्सक्रिप्शन लागू होने के बाद से कई बड़े ब्रांड के फर्जी अकाउंट बन गए थे और उन्हें ब्लू टिक भी मिल गया था।
महामारी की कोख से पैदा हुए कई अरबपति
दरअसल, पिछले बीस वर्षों में टेक्नोलॉजी सेक्टर के उछाल से मार्क ज़ुकरबर्ग, एलन मस्क, जैक डोर्सी और जेफ़ बेज़ोस जैसे अरबपति पैदा हो गए थे। जब से एलन मस्क ने ट्विटर की कमान संभाली है तब से कंपनी विवादों में रही। नौकरियों में छंटनी के एलान के बाद से कंपनी के बचे कर्मचारियों को चौंकाने वाले संदेश भेजे जा रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के इस हंगामे में कई और भी ताक़तें उतर गई हैं। महामारी के समय इन कंपनियों ने बड़े पैमाने पर हायरिंग की थी। यूक्रेन और रूस की जंग शुरू होने के बाद सभी आर्थिक अनुमान नई वास्तविकताओं के मद्देनजर लगाए जाने लगे। समस्या वैश्विक आर्थिक संकट से भी है। दुनिया भर में महंगाई रिकॉर्ड तोड़ रही है। तभी तो अमेरिका में ब्याज दरें तेज़ी से बढ़ रही हैं।
तकनीक से जुड़ी कंपनियों पर दबाव क्यों?
Meta’s Facebook: ऊंची ब्याज दरों के कारण क़र्ज़ लेना महंगा हो गया है। ज़्यादा जोख़िम उठाने वाले निवेशकों के लिए सस्ते कर्ज का दौर ख़त्म हो चुका है। क्वींस यूनिवर्सिटी, बेलफ़ास्ट के प्रोफ़ेसर विलियम क्विन कहते हैं, “ब्याज दर बढ़ रही है। इससे टेक्नोलॉजी कंपनियों पर दबाव बढ़ रहा है। क्योंकि उन्हें निवेश जुटाना मुश्किल होता जा रहा है।”
एक वजह विज्ञापन राजस्व से भी जुड़ी हुई है। सोशल नेटवर्किंग कंपनियों के लिए आमदनी का सबसे बड़ा ज़रिया विज्ञापनों से होने वाली कमाई रही है। इस कमाई की रफ्तार धीमी पड़ गई है। लेकिन सभी कंपनियों के साथ ऐसा नहीं है। टेक्नोलॉजी कंपनी एप्पल, गूगल, माइक्रोसॉफ़्ट या इंटेल ने तो छंटनी की कोई घोषणा नहीं की है। बावजूद इसके, वैश्विक कारोबारी चुनौतियां उनके सामने भी उतनी ही हैं।