श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। किसानों के बारे में बात हो रही है कि अब वे अपना उत्पाद कहीं भी बेच सकते हैं। लेकिन इससे पहले कब बंदिश थी? मंडी के बाहर कब किसानों को जायज मूल्य मिला है? शायद यही वजह है कि कृषि विधेयकों का खुलकर विरोध किया जा रहा है।
कृषि विधेयकों पर राज्यसभा में इतना जोरदार हंगामा हुआ कि सांसद वेल तक पहुंच गए। विपक्ष के सदस्यों ने पर्चे फाड़े, सभापति का माइक तक तोड़ दिया गया। लेकिन कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सरलीकरण) विधेयक आखिर पारित कर दिया गया। कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता भी पास हो गया।
दरअसल, विपक्षी सांसदों के जोरदार हंगामे के बावजूद राज्यसभा ने भी कृषि विधेयकों को पारित कर दिया है। कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सरलीकरण) विधेयक-2020 और कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 को मंजूरी मिली है।
ध्वनिमत से पारित होने से पहले इन विधेयकों पर सदन में खूब हंगामा हुआ। नारेबाजी करते हुए सांसद वेल तक पहुंच गए। कोविड-19 के खतरे को भुलाते हुए धक्का-मुक्की भी हुई। विपक्ष ने इसे ‘काला दिन’ बताया है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि यह ‘लोकतंत्र की हत्या’ है।
जब उपसभापति हरिवंश ने विधेयकों पर ध्वनिमत से वोटिंग के लिए कहा तो विपक्षी सांसद हंगामा करने लगे। वे इन विधेयकों को प्रवर समिति में भेजे जाने के प्रस्ताव पर मत विभाजन की मांग कर रहे थे। तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी सदस्य आसन के बिल्कुल पास पहुंच गए। हंगामा इतना ज्यादा हुआ कि मार्शल को हस्तक्षेप करना पड़ा।
विपक्षी सदस्यों ने विधेयक के टुकड़े हवा में उछाल दिए। उपसभापति के सामने लगा माइक भी तोड़ दिया गया। कुछ देर के लिए सदन की कार्यवाही को रोकना पड़ा। दोबारा कार्यवाही शुरू होने पर भी हंगामा जारी रहा।
राज्यसभा में हंगामे के बीच बिल पास होने को लेकर विपक्षी दलों की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि “बाहुबली मोदी सरकार ने जबरन किसान बिल को पास कराया है। डेरेक ओ’ ब्रायन ने कहा कि सरकार ने धोखेबाजी की।
कृषि विधेयक पास होने पर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने किसानों को पिछले 70 सालों के अन्याय से मुक्त करा दिया है। उन्होंने राज्यसभा में हंगामे पर कहा कि विपक्षी दल किसान-विरोधी हैं। प्रक्रिया का हिस्सा बनने के बजाय किसानों की मुक्ति को रोकने की कोशिश की।
लेकिन जानते हैं कि संसद में पारित हुए अध्यादेशों में है क्या? व्यापारी या कोई कंपनी बिना मंडी गए सीधे किसान से उसका अनाज खरीद सकती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि MSP सिर्फ मंडी में लागू है। किसी व्यापारी ने MSP पर आज तक किसानों के उत्पादों नहीं खरीदा है।
मतलब जिसके पास जितना ज्यादा पैसा है, वह उतना ज्यादा किसानों से सस्ता अनाज खरीद कर मार्केट में संग्रह कर लेगा और फिर सोने के भाव बेचेगा। कारपोरेट खेती का इतिहास गवाह है कि किसानों को कंपनी या कारपोरेट घराने वाले कभी भी उसके अनाज का उचित मूल्य नहीं देते हैं। वे हमेशा अपना लाभ देखते हैं।
कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) पालिसी गुजरात में लागू की जा चुकी है और उत्तर प्रदेश व देश के अन्य भाजपा शासित राज्यों में इसे लागू करने की प्रक्रिया चल रही है। इस पालिसी के जरिये कांट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने की नीति विभिन्न राज्यों में लाई जा रही है।
गुजरात में यह नीति लागू की जा चुकी है। इसमें किसान एक निश्चित अवधि के लिए अपनी जमीन कारपोरेट घरानों के हाथ में गिरवी रख देगा। गुजरात के किसानों ने एक निश्चित प्रजाति के आलू का बीज जब दूसरों को बेचा तो कांट्रैक्ट करने वाली कंपनी ने आर्थिक हर्जाना देने का मुकदमा किसानों पर दर्ज करा दिया।
इस नीति के अंतर्गत कारपोरेट घरानों और किसानों के मध्य एक कांट्रैक्ट (करार) होगा। किसान अपनी जमीन को एक निश्चित अवधि के लिए कारपोरेट घरानों के हाथों बंधक रखेगा। कारपोरेट घराने जो बीज, खाद व कृषि रक्षा रसायन उसे देंगे वही बीज खाद व कृषि रक्षा रसायन किसान को अपने खेत में इस्तेमाल करना होगा।
इस करार (कांट्रैक्ट) के अंतर्गत किसान उसी कारपोरेट घराने को अपनी कृषि उपज बेचेगा, जिससे उसका कांट्रैक्ट (करार) हुआ है। वह सरकार को या किसी भी दूसरे व्यापारी को अपनी उपज बेच नहीं सकता है।
इन अध्यादेशों के जरिये किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बनकर रह जाएगा और उसे अपनी जमीन कारपोरेट घरानों से वापस मिलना मुश्किल होगा। इस तरह से अब देश के पूंजीपतियों व कारपोरेट घरानों की नजर किसानों की जमीन पर है।
वे उसकी जमीन कारपोरेट परस्त सरकारों के सहयोग से पहले भी हड़पते रहे हैं। कभी एसईजेड (स्पेशल इकोनोमिक जोन) बनाने के बहाने तो कभी एक्सप्रेस वे बनाने के नाम पर तो कभी आवासीय योजनाएं बनाने के नाम पर। इन अध्यादेशों के कानून का रूप ले लेने के बाद यह काम देशव्यापी स्तर पर शुरू हो जाएगा और किसान जमीन से हाथ धो बैठेंगे।
राजस्थान के किसानों की काफी जमीनें सोलर प्लेटें बिछाकर बिजली पैदा करने के लिए पहले भी पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हवाले की जा चुकी हैं। कोरोना के बहाने लॉकडाउन लगा कर लोगों का मुंह बंद कर उन्हें घरों की भीतर बंद रखने के पीछे असली मकसद यही है।