Mohammed Rafi: हिंदी सिनेमा में 1946 से लेकर 1980 तक रफी साहब की आवाज का जादू भारतीय फिल्मों में सिर चढ़ कर बोलता था। रफी साहब 24 साल की उम्र में ही संगीत के क्षेत्र में मकबूल हो गए थे।
Mohammed Rafi: गायकों के बादशाह रफी साहब
हीरालाल प्रसाद, मोतिहारी
Mohammed Rafi: भारतीय हिंदी सिनेमा समेत देश-दुनिया को अपनी आवाज के बल पर मुरीद बनाने वाले रफी साहब गायकों के बादशाह थे। ताउम्र सादगी और विनम्रता का जीवन बिताने वाले रफी साहब ने इस बात का अहसास ही नहीं होने दिया कि वह एक बड़े फनकार हैं।
हिंदी सिनेमा में 1946 से लेकर 1980 तक रफी साहब की आवाज का जादू भारतीय फिल्मों में सिर चढ़ कर बोलता था। 24 साल की उम्र में ही रफी साहब संगीत के क्षेत्र में मकबूल हो गए थे।
उनकी आवाज के दीवाने थे फिल्म इंडस्ट्री के लोग
पचास के दशक में फिल्म इंडस्ट्री के लोग उनकी आवाज के दीवाने थे। निर्माता और संगीतकार रफी साहब को अपनी फिल्मों में गवाने के लिए बेताब रहते थे।
गीत एकल हो या कोरस, कव्वाली हो या गजल, भजन हो या युगल गीत, दुख-दर्द भरे माहौल में आवाज भर्राए गले से भी ज्यादा दिल की गहराइयों तक मस्ती भरे माहौल में आवाज के सहारे झूमने पर विवश कर देते थे।
संगीतकार करते थे रफी साहब की गायकी का सम्मान
रफी साहब के गाने की प्रतिभा नैसर्गिक थी, जिसे उन्होंने अपनी साधना, अभ्यास और परिश्रम से बुलंदियों पर पहुचाया। संगीतकार नौशाद, रौशन, ख्याम, सचीन देव वर्मन, शंकर-जयकिशन, चित्रगुप्त, कल्याण जी-आनंद जी, मदन-मोहन, एस.एन.त्रिपाठी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, ओ.पी.नैयर से लेकर आर.डी.बर्मन तक रफी साहब की गायकी का खासतौर पर सम्मान करते थे।
रफी साहब ने न सिर्फ हिन्दी फिल्मों के लिए, अपितु गुजराती, मराठी, पंजाबी, सिंधी, भोजपुरी, बंगाली आदि फिल्मों के लिए अनेकों गीत गाए। एक वह दौर था जब रेडियो पर फिल्मी गीतों के सबसे लोकप्रिय धारावाहिक कार्यक्रम विनाका गीत माला पर रफी साहब मुकेश साहब, लता मंगेशकर और किशोर कुमार का पूरा कब्जा होता था।
रफी साहब को 1965 में पदमश्री से नवाजा गया
इन गीतों में एक से लेकर 6-7 पायदान तक रफी के ही गीत छाए रहते थे। रफी साहब को 24 बार उनके गीत फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए नामित हुए और 6 बार इस पुरस्कार को उन्होंने ग्रहण भी किया।
भारत सरकार ने 1965 में रफी साहब को पदमश्री से नवाजा और देश के इस चहेते गायक पर पांच रुपये की कीमत वाले डाक टिकट भी जारी किया। 25 हजार फिल्मी गीतों के अलावा तकरीबन दो हजार गैर फिल्मी झंकारों में अपनी बहुआयामी गायकी का लोहा रफी ने संगीत प्रेमियों से मनवाया।
आदमी मुसाफिर है…
रफी साहब ने अपने आखिरी समय तक गाने रिकॉर्ड कराए। गीत गाते-गाते इस दुनिया से विदा हुए। 31 जुलाई 1980 को प्रसिद्ध संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ एक गीत के रिकार्ड के बाद उन्हें सीने में दर्द की शिकायत हुई और सुरों के यह महान फनकार इस दुनिया से विदा हो गए। रफी साहब आज हमारे बीच नहीं हैं, परन्तु उनके कर्णप्रिय नगमे आज भी करोड़ों संगीत प्रेमियों के दिल पर राज कर रहे हैं। फनकार तो चला जाता है, परन्तु उसकी कला उसे सदियों तक जिंदा रखती है।
रफी साहब का ही गाया एक गीत है जो आनंद बक्शी साहब ने लिखा था। यह गीत फिल्म अपनापन का है। आदमी मुसाफिर है, आता है जाता है। आते-जाते रास्ते में, यादें छोड़ जाता है। झोंका हवा का, पानी का मेला। मेले में जो रह जाए अकेला। फिर वो अकेला रह जाता है। आदमी मुसाफिर है…