Morena Municipal Corporation: मुरैना नगर निगम में सभापति के चुनाव में भाजपा की हार से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को दूसरी बार झटका लगा है। कांग्रेस के सभापति उम्मीदवार राधारमण उर्फ राजा दंडोतिया ने 6 वोटों से भाजपा उम्मीदवार को मात दे दी है।
Morena Municipal Corporation: मुरैना में सभापति का चुनाव हार गई भाजपा
आईपी न्यूज डेस्क
Morena Municipal Corporation: जब केंद्र की सत्ता के प्रमुख नेता के क्षेत्र में भाजपा हारती है तो उससे एक बड़ा संदेश जाता है। लोगों को लगने लगता है कि सत्ता अपनी लोकप्रियता खो रही है। ऐसा ही कुछ मोदी सरकार में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के संसदीय क्षेत्र मुरैना में हुआ है। मुरैना नगर निगम में सभापति के चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस के सभापति उम्मीदवार राधारमण उर्फ राजा दंडोतिया 6 वोटों से जीते हैं।
मुरैना महापौर सीट हारने के बाद सभापति की भी सीट हारना केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। मेयर का पद गंवाने के बाद सभापति की सीट को हासिल करने के लिए सभी नवनिर्वाचित बीजेपी पार्षदों को केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दिल्ली बुलाकर अपने बंगले पर रातभर उनके साथ मंथन किया था।
भाजपा ने बैक टू बैक दो पद गंवा दिए
चंबल के मुरैना नगर निगम पर कांग्रेस ने महापौर पर जीत हासिल करने के बाद अब सभापति पद को भी अपने कब्जे में ले लिया है। कांग्रेस की तरफ से सभापति के लिए वार्ड 27 से राधारमण दंडोतिया को प्रत्याशी बनाया गया था। भाजपा की तरफ से वार्ड 33 से भावना मंडलेश्वर को उम्मीदवार घोषित किया गया था। बीजेपी को कुल 21 वोट मिले हैं तो कांग्रेस ने 27 वोट हासिल करके महापौर सभापति की सीट पर कब्जा कर लिया है।
मुरैना नगर निगम में बीजेपी के पास कुल 15 पार्षद और कांग्रेस के पास 19 पार्षद थे। बीएसपी के 6 पार्षद, आम आदमी पार्टी का एक और चार निर्दलीय पार्षद थे। कुल मिलाकर बीएसपी और निर्दलीय पार्षदों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया था। इस वजह से कांग्रेस का सभापति उम्मीदवार चुनाव जीत गया। इस जीत से कांग्रेस को बड़ा संबल मिला है।
नरेंद्र सिंह तोमर की साख पर उठने लगे सवाल
मुरैना मोदी सरकार में अहम मंत्रालय संभालने वाले नरेंद्र सिंह तोमर का संसदीय क्षेत्र है। मुरैना जिला उनका गढ़ भी माना जाता है। ऐसे में भी कांग्रेस ने सूपड़ा साफ कर नगर निगम पर पूरी तरह कब्जा कर दिया है। अब सबसे बड़ा सवाल केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की साख पर उठाए जा रहे हैं।
कहा जा रहा है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी तोमर के पर कतरने में लगा है। किसान आंदोलन के दौरान भी तोमर को फैसला करने का कोई अधिकार नहीं मिला था। और उस दौर में भी तोमर की छवि काफी धूमिल हुई थी। क्योंकि आंदोलनकारी किसानों से उन्हें वही बोलना पड़ता था, जो उन्हें केंद्रीय नेतृत्व बताता था। इस प्रकार अपने ही नेताओं की छवि खराब करके भाजपा लगातार बैकफुट पर आ रही है। उसके लिए 2024 की लड़ाई कठिन होती जा रही है।