
Mother House: मातृसदन के ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद कुछ संकल्पों के साथ हरिद्वार स्थित अपने आश्रम में तपस्या पर बैठे हैं। मातृसदन एक आध्यात्मिक संस्था है, जो प्राकृतिक आपदा और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करती है। आज हम जानेंगे कि यह तप क्यों किया जा रहा है?
Mother House: मातृसदन के मुकदमों का हो त्वरित निस्तारण
अंकित तिवारी
Mother House: मातृसदन के ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के अनशन के एक माह पूरे होने के मौके पर एक बैठक बुलाई गई है। उनका पहला संकल्प है कि स्वामी निगमानंद की हत्या की जांच कराई जाए। उसके लिए उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के नेतृत्व में विशेष जांच दल का गठन हो। और सीबीआई जांच को अंजाम तक पहुंचाए।
वर्ष 2011 में स्वामी निगमानंद की हत्या कर दी गई थी। इसी प्रकार वर्ष 2018 में स्वामी सानंद की हत्या कर दी गई थी। वर्ष 2020 में साध्वी पद्मावती के साथ भी कुछ अप्रिय घटित हुआ था। ये सारे मामले हरिद्वार के जिला न्यायालय में लंबित हैं। इनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इन मुकदमों का त्वरित निस्तारण करने के लिए एक विशेष पैनल बनाए जाने की मांग ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने की है।
प्रभावशाली लोगों का गठजोड़
मातृसदन के सूत्रों के अनुसार, धर्म नगरी कहे जाने वाले हरिद्वार में पिछले कुछ वर्षों में माफिया, राजनेता, पुलिस, प्रशासन और जिला न्यायालय के कुछ जजों का गठजोड़ बन गया है। श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य डॉक्टर निरंजन मिश्रा की गिरफ्तारी इसी गठजोड़ का परिणाम है।
केंद्र सरकार से मांग की गई है कि एक पैनल बनाकर आरोपितों के खिलाफ जांच बैठाई जाए। ताकि संतों को समय पर न्याय मिल सके। मातृसदन की ओर से कहा गया है कि एक आश्रम अपने सदस्यों को गंगा के लिए उत्सर्ग करने का संकल्प ले चुका है। लेकिन हम सब के पास समय ही कहां है, जो सरकार पर दबाव बनाकर न्याय के लिए आवाज बुलंद कर सकें। शायद हम रहट के बैल बन कर रह गए हैं।
गंगा को अवैध खनन से मुक्त कराने की चाह
मातृसदन ने अपने दो संतों की बलि दे दी। स्वामी निगमानंद और स्वामी सानंद की हत्या के साथ साध्वी पद्मावती को भी शिकार बनाया गया। इन्हें न्याय दिलाने के संकल्प के साथ ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद चाहते हैं कि अवैध खनन के कारण कंपनियों के लिए धन की गंगोत्री बन चुकी गंगा को अवैध खनन से मुक्त कराया जाए।
इसके लिए समय समय पर अनशन कर चुके महात्माओं को शासन प्रशासन ने बजाय कोई राहत देने के, प्रताड़ित ही किया है। संसद के सदनों में भी मातृसदन की मांगों को उठया गया। कागज पर आश्वासन भी मिले। लेकिन धरातल पर माफिया राज ही कायम है। श्री परशुराम अखाड़ा के पदाधिकारियों ने ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद की तपस्या का समर्थन किया है।
प्रकृति और राष्ट्र के लिए समर्पण
प्रकृति और राष्ट्र के लिए समर्पण बहुत कम देखने को मिलता है। लेकिन इन महात्माओं ने तो जान की बाजी तक लगा दी। ऐसे में इन महात्माओं के प्रति क्या हमारा कोई कर्तव्य नहीं बनता? यह एक ऐसा सवाल है, जो सरकार, प्रशासन और न्याय के मंदिर में बैठे लोगों को झकझोरने के लिए पर्याप्त प्रासंगिक है।
इसी संदर्भ में सामाजिक चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने कहा है कि कोरोना संकट ने पूरी दुनिया को बता दिया है कि प्रकृति केंद्रित विकास ही ठीक है। भारत की ताकत ही पर्यावरण में निहित है।प्रकृति का संतुलन बिगड़ा तो आपदाएं आएंगी ही। वह प्रयागराज स्थित हिंदुस्तानी एकेडमी में आयोजित यमुना दर्शन यात्रा एवं प्रकृति केंद्रित विकास संवाद में बतौर मुख्य अतिथि लोगों को संबोधित कर रहे थे।
