Movie Ghoomar: इस फिल्म के टाइटल से आपको लग सकता है कि घूमर नृत्य की बात की गई होगी। लेकिन यहां घूमर विज्ञान के घूर्णन सिद्धांत से संबंधित है। जिसे फिल्म की कहानी में बखूबी पिरोया गया है। जैसा कि जीवन में कभी कभी हम हिम्मत हार कर बैठ जाते हैं। लेकिन उसी जीवन में एक ऐसा भी मोड़ आता है जब अचानक आशा की एक नई किरण चमक उठती है। कुछ ऐसा ही अभिषेक बच्चन और सैयामी खेर की नई फिल्म ‘घूमर’ के जरिये बताने की कोशिश की गई है।
Movie Ghoomar: जिंदगी लॉजिक का खेल नहीं, मैजिक का खेल
श्रीकांत सिंह
Movie Ghoomar: अभ्यास के जरिये जीवन में मैजिकल बदलाव लाया जा सकता है। तभी तो फिल्म घूमर जिंदगी को लॉजिक का नहीं, मैजिक का खेल बताती है। इस फिल्म को लॉजिक लगा कर आप नहीं समझ पाएंगे। ‘चीनी कम’, ‘पा’ और ‘चुप’ जैसी फिल्मों के निर्माता-निर्देशक आर बाल्कि की नई फिल्म ‘घूमर’ पर भले ही लॉजिकल सवाल उठाए जाएं, लेकिन फिल्म को फिल्म की तरह देखेंगे तो भरपूर मजा आएगा। क्योंकि यह फिल्म असंभव को संभव कर दिखाने वाली एक प्रेरणादायी कहानी है।
फिल्म मुश्किल से मुश्किल हालात में भी हार न मानने की सीख देती है। कहानी एक हाथ न होने पर भी ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतने का कारनामा करने वाले शूटर कैरोली टकाक्स की असल जिंदगी से प्रेरित है। पर यहां नायिका अनीना (सैयामी खेर) का सपना क्रिकेट है। अनीना भारतीय क्रिकेट टीम में देश के लिए खेलना चाहती है। अपनी मेहनत और बैटिंग के दम पर वह नेशनल टीम में जगह भी बना लेती है। मगर जब वह अपने इस सपने से बस एक कदम दूर होती है, तो एक हादसे में अपना दायां हाथ गवां बैठती है। अब क्या एक हाथ से कोई क्रिकेट खेल सकता है? अगर हां तो कैसे? यही जानने के लिए सिनेमाघर तक जाना होगा।
अलहदा विषय चुनना निर्माता-निर्देशक आर बाल्कि की खासियत
हर बार एक चौंकाने वाला अलहदा विषय चुनना बाल्कि की खासियत रही है। फिर वह एक अधेड़ शेफ की प्रेम कहानी ‘चीनी कम हो’, या बचपन में बुजुर्ग दिखने वाले प्रोजेरिया ग्रस्त बच्चे की कहानी ‘पा’, जेंडर रोल की अदला-बदली वाली की ‘ऐंड’ का हो या मूक स्टार और उसके वॉयसओवर आर्टिस्ट वाली ‘शमिताभ’, जिसे वह अपने ह्यूमर और हल्के-फुल्के अंदाज में सुनाते हैं। यहां भी उन्होंने एक विस्मित करने वाली बेहद इंटेस कहानी चुनी है। फिर भी हंसी मजाक के पल खूब जुटाए हैं।
अनीना के एक हाथ वाले क्रिकेटर बनने के इस सफर में उसका द्रोणाचार्य बनता है, अतरंगी पदम सिंह सोढ़ी उर्फ पैडी (अभिषेक बच्चन), जो शराब में डूबा पूर्व टेस्ट क्रिकेटर है। वहीं, घर पर उसका पूरा परिवार, खासकर दादी शबाना आजमी और बचपन का प्यार जीत (अंगद बेदी) सपोर्ट सिस्टम बनते हैं। वहीं, राहुल सेन गुप्ता और ऋषि विरमानी संग मिल कर लिखी बाल्कि की फिल्म के डायलॉग इसका एक और मजबूत पक्ष है।
इंटेंस रोल में सैयामी को मिला दमदार किरदार
जिंदगी जब आपके मुंह पर दरवाजा बंद करती है, तो उसे खोलना नहीं, तोड़ना पड़ता है। मैं एक दिन क्रिकेट खेलना चाहता था, मैं एक दिन ही क्रिकेट खेल पाया जैसे कई बढ़िया डायलॉग हैं फिल्म में। ऐक्टिंग की बात करें, तो सैयामी को बहुत ही दमदार किरदार मिला है और उन्होंने उसे जीने के लिए भरपूर मेहनत भी की है। लेकिन ऐसे इंटेंस रोल में उनके चेहरे पर जो दर्द, गुस्सा, जुनून दिखना चाहिए था, उसके लिए अभी उन्हें खुद को और तराशना पड़ेगा।
अभिषेक बच्चन ने पैडी के रूप में बेहतरीन पारी खेली है। ऐसा लगता है कि मणिरत्नम के बाद बाल्कि ही ऐसे डायरेक्टर हैं, जो अभिषेक के भीतर छिपे ऐक्टर को निचोड़ने की कला जानते हैं। वहीं, दादी बनीं शबाना आजमी की जितनी तारीफ करें, कम होगी। अनीना के प्रगतिशील और प्रैक्टिकल दादी के रूप में अपने सहज अभिनय से वह दिल जीत लेती हैं। अंगद बेदी और इवांका दास ने भी बढ़िया काम किया है।
हकीकत से दूर पर मजेदार क्लाइमेक्स
Movie Ghoomar: फिल्म की कमियों की बात करें, तो कई सवाल मन में उठते हैं। क्या क्रिकेट नियमों के आधार पर यह संभव भी है कि कोई एक हाथ वाला खिलाड़ी नेशनल टीम में चुना जा सकता है? क्या गोल गोल घूम कर बॉलिंग की जा सकती है? बाल्कि ने उदाहरणों के जरिये इन संशयों को दूर करने की कोशिश भी की है। लेकिन उनके तर्क ऐसे लोगों को समझा नहीं पाते जिन्हें घूर्णन सिद्धांत का व्यावहारिक अनुभव नहीं है।
सेकंड हाफ प्रिडिक्टेबल तो है ही, क्लाइमैक्स का क्रिकेट वाला हिस्सा बेहद नाटकीय हो गया है। जिस तरह लोग विमंस क्रिकेट के दीवाने दिखाए गए हैं, वह हकीकत से दूर ही लगता है। लेकिन घूमर फिल्म के सार की तरह सिनेमा भी तो लॉजिक का नहीं, बल्कि मैजिक का खेल है। इस दृष्टि से बाल्कि के इस मैजिक को एक बार जरूर देखा जा सकता है। यह अलग बात है कि पुरातनपंथी सिनेमा प्रेमियों को शराब का जस्टीफिकेशन और मुख्य किरदार को दिव्यांग बना कर दिखा देना अखरता है।