Navdurga: नवदुर्गा के कुछ भक्त औषधियों से दूर रहते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ औषधियों में नवदुर्गा का वास होता है। आज इसी पर चर्चा करेंगे।
Navdurga: मार्कंडेय चिकित्सा पद्धति और नवदुर्गा
सत्य ऋषि
Navdurga: मां दुर्गा किन नौ रूपों में कल्याण करती हैं? क्या सारे संकट हर लेती हैं? इस बात का क्या प्रमाण है? इसका प्रमाण हैं कुछ औषधियां। जिन्हें मां दुर्गा का ही स्वरूप माना जाता है। नवदुर्गा के औषधीय गुणों को सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया।
चिकित्सा प्रणाली का यह रहस्य वास्तव में ब्रह्माजी ने दिया था। दुर्गा कवच में इसका संदर्भ मिल जाता है। ये औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली हैं।
ये शरीर की रक्षा के लिए कवच के समान कार्य करती हैं। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बच सकता है। दिव्य गुणों वाली नौ औषधियां इस प्रकार हैं, जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है।
प्रथम शैलपुत्री यानी हरड़
Navdurga: प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है। जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है। इसमें हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है।
पथया हित करने वाली है। कायस्थ शरीर को बनाए रखने वाली है। अमृता अमृत के समान है।
हेमवती हिमालय पर मिलती है। चेतकी चित्त को प्रसन्न करने वाली है। श्रेयसी (यशदाता) शिवा कल्याण करने वाली है।
द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानी ब्राह्मी
Navdurga: ब्राह्मी यानी दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली है। रुधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है। इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।
यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है। गैस और मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र के जरिये रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए।
तृतीय चंद्रघंटा यानी चन्दुसूर
Navdurga: तीसरा रूप है चंद्रघंटा। इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है। बहुत लाभदायक होती है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है।
इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली औषधि है। हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को चंद्रघंटा की पूजा करनी चाहिए।
चतुर्थ कूष्मांडा यानी पेठा
Navdurga: चौथा रूप कूष्मांडा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं। यह पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक और रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है।
मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत के समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को पेठा का उपयोग करना चाहिए और कूष्मांडा देवी की आराधना करनी चाहिए।
पंचम स्कंदमाता यानी अलसी
नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है। उन्हें पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ आदि रोगों की नाशक औषधि है।
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा। अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:। उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की आराधना करनी चाहिए।
षष्ठम कात्यायनी यानी मोइया
छठा रूप कात्यायनी है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है। जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीड़ित रोगी को इसका सेवन और मां कात्यायनी की आराधना करनी चाहिए।
सप्तम कालरात्रि यानी नागदौन
सप्तम रूप कालरात्रि है। उन्हें महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है।
इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाए तो घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। इसलिए कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए।
अष्टम महागौरी यानी तुलसी
अष्टम रूप महागौरी है। इस पौधे को प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है। क्योंकि इस औषधि का नाम तुलसी है। तुलसी हर घर में लगाई जाती है।
तुलसी सात प्रकार की होती है-सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है। हृदय रोग का नाश करती है। इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करनी चाहिए।
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी। अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि:।
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत। मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।
नवम सिद्धिदात्री यानी शतावरी
नवम रूप सिद्धिदात्री है। औषधि को नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार एवं वात पित्त नाशक और हृदय को बल देने वाली महा औषधि है।
सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करनी चाहिए।
इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधियों के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर स्वस्थ बनाती हैं। अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।