Navratri: नवरात्रों को नवदिन क्यों नहीं कहा जाता?
Navratri: भारतीय संस्कृति में रात और नवरात्रि का विशेष महत्व है। भारतीय ऋषियों और मुनियों ने दिन की अपेक्षा रात को अधिक महत्व दिया है। शायद यही वजह है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र जैसे प्रमुख पर्वों को रात में ही मनाने की परंपरा है।
Navratri: नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों यानी विशेष रात्रियों का बोध होता है। इन रात्रियों में शक्ति के नवरूपों की उपासना की जाती है। क्योंकि रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक माना गया है। यदि रात्रि का विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। लेकिन नवरात्र के नौ दिनों को नवदिन नहीं कहा जाता।
दरअसल, जन्म के समय से ही हमें मां से कुछ शक्तियां मिली होती हैं। जिनका इस्तेमाल कर हम जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं। लेकिन अलग अलग लोगों में इन शक्तियों की मात्रा अलग अलग होती है। जिनके पास अधिक शक्ति होती है, वे जीवन में ज्यादा आगे बढ़ जाते हैं। जिनके पास कम शक्ति होती है, वे तमाम प्रयासों के बावजूद जीवन में पीछे रह जाते हैं। इन्हें प्रकृति प्रदत्त शक्तियां कहते हैं।
क्या प्रकृति प्रदत्त शक्तियों को बढ़ाया जा सकता है?
आमतौर पर रात को हम सो कर गुजार देते हैं। इसी सोने को निद्रा कहा जाता है। निद्रा दो प्रकार की होती है। एक सामान्य निद्रा और दूसरी योगनिद्रा। सामान्य निद्रा में हम उतनी ही प्रकृति प्रदत्त शक्तियां अर्जित कर पाते हैं, जिनका कि दिनभर के काम काज में ह्रास हुआ रहता है। लेकिन योगनिद्रा के जरिये हम अतिरिक्त शक्तियां अर्जित करते हैं, जो हमें जीवन में आगे बढ़ने के काम आती हैं। योगनिद्रा पर हम विशेष चर्चा बाद में करेंगे। अभी नवरात्रों के रहस्यों को समझते हैं।
नवरात्रों में पूजा और उपासना का विधान
Navratri: साधना और सिद्धि की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इन नवरात्रों में लोग आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति का संचय करने के लिए कई प्रकार के व्रत, नियम, संयम, यज्ञ, भजन, पूजन और योग साधना करते हैं। सभी विधियों का एक ही उद्देश्य शक्ति अर्जित करना होता है।
बीज मंत्रों के जप से विशेष सिद्धियां
वैसे भी आज कल ज्यादातर उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं, दिन में ही पुरोहित को बुला कर संपन्न करा देते हैं। अब तो कुछ साधु महात्मा भी नवरात्रों में पूरी रात जागना नहीं चाहते। और न ही कोई आलस्य को त्यागने के लिए तैयार है। बहुत कम उपासक आलस्य को त्याग कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति, और यौगिक शक्ति पाने के लिए रात का उपयोग करते हैं। शायद इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है—
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनं। अधनस्य कुतो मित्रम, अमित्रस्य कुतो सुखं।।
अर्थात—आलसी व्यक्ति को विद्या प्राप्त नहीं होती। और जिसके पास कोई विद्या नहीं होती, उसके पास धन नहीं आता। जिसके पास धन नहीं होता, उसके मित्र नहीं होते हैं। जिसके मित्र नहीं होते, उसे सुख नहीं मिलता। इसलिए उम्मीद है कि आप आलस्य को त्याग कर साधना के लिए जरूर तैयार होंगे। आगे हम साधना के विधि विधान पर चर्चा करेंगे। सांचे दरबार की जय।