
New Agricultural Law: नए कृषि कानून के तहत मोदी सरकार ने एक तरह से देश के शीर्षस्थ उद्योगपतियों को किसानों की फसल का फायदा लेने का ठेका दे दिया है।
New Agricultural Law: किसान अपने खेत में ही बन कर रह जाएगा बंधुआ मजदूर

New Agricultural Law: अपनी गलत नीतियों से देश को बेरोजगारी, महंगाई और अवसाद देने के बाद मोदी सरकार अब अपने आकाओं को खुश करना चाहती है। उसके लिए अन्नदाता को तबाह करने की साजिश रची गई है। देश के शीर्षस्थ उद्योगपतियों को किसानों की फसल का फायदा लेने का ठेका दे दिया गया है।
जैसे अंग्रेजी शासन में किसानों पर अपनी सोच थोप कर फसल उगवाई जाती थी। और उसे कम दामों पर खरीद कर मोटा मुनाफा कमाया जाता था। ठीक उसी प्रकार इन नए कृषि कानून से देश के पूंजपीति अपनी मर्जी की फसल किसानों से उगवाएंगे और उन्हें कम दाम पर बेचने के लिए मजबूर कर मोटा मुनाफा कमाएंगे।
किसान हैं कि वे अपने ही खेत में बंधुआ बनकर रह जायेंगे। इस नए कृषि कानून के खिलाफ देश भर में किसान सड़कों और रेल की पटरियों पर जमे हैं। अगले 25-26 नवम्बर को भारत बन्द और दिल्ली घेराव का ऐलान भी हो चुका है। मोदी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ रहा है।
किसान को बस ठगा ही गया
New Agricultural Law: मोदी सरकार के छह वर्ष के कार्यकाल की समीक्षा करें तो यह पाएंगे कि किसान को बस ठगा ही गया है। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मित्रों अडानी और अंबानी को किसान के खेत से मोटा मुनाफा दिलवाने की जुगत लगाई है।
कृषि ‘सुधार’ के नाम पर मोदी सरकार ये जो तीन कानून लाई है, वे उद्योगपतियों को किसान के खेत में पूरा हस्तक्षेप करने की अनुमति देते हैं। कृषि वाणिज्य व्यापार में लाए गए ये बदलाव सीधे तौर पर भी 80 करोड़ लोगों को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाले हैं।
हमें यह भी बात समझनी है कि इससे हर व्यक्ति प्रभावित होगा। क्योंकि खाना तो हर व्यक्ति खाता है। मोदी सरकार की नीयत देखिए कि उसने बदलाव लाने का बहाना बना कर यह अध्यादेश लाने के लिए 5 जून का दिन चुना।
आत्मनिर्भरता का राग
इस दिन तक देश में कोरोना की महामारी अपनी भयावहता का पूरा तांडव दिखा चुकी थी। देश में एक लाख से ज्यादा लोग अपनी जान से हाथ धो चुके हैं। और 70 लाख से अधिक संक्रमित हो चुके हैं। देश कोरोना संक्रमण के मामले में दुनिया में दूसरे नम्बर पर है। और मोदी सरकार आत्मनिर्भरता का राग अलाप रही है।
लोग भी तो मोदी की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ जा रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि मोदी सरकार जिन किसानों को फायदा पहुंचाने की बात कर रही है, उनसे तो सरकार ने बात करनी भी मुनासिब नहीं समझी।
हां, किसान कानून बनाने के लिए पूंजपीतियों से बैठक जरूर की। मतलब ये कानून पूंजपीतियों के हित में हैं। अब केंद्र सरकार मामला राज्यों पर छोड़ने की बात कर रही है। पर अध्याधेश लाने से पहले राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कृषि विभाग और मंडी समितियों के मामले में आमूल चूल परिवर्तन करने के लिए किसी भी राज्य से कोई सलाह मशविरा नहीं किया।
मोदी सरकार की तानाशाही
यह मोदी सरकार की तानाशाही और किसानों की जमीन हड़पने की नीति ही है कि राज्यसभा में अल्पमत होने के बावजूद अध्यादेश पास कराने के लिए सरकार ने धोखाधड़ी की। विपक्ष की विरोध में उठाई गई आवाज को ‘ध्वनि मत’ बता दिया।
कृषि बाज़ार में पूंजी के इस तरह से और बेरोकटोक हमले के बहुत भयानक परिणाम होने वाले हैं। देश के किसानों में जो लघु एवं सीमांत किसान 80 फीसद हैं, उनकी तबाही निश्चित है। ये छोटे किसान जोतों से बेदखल होकर बेरोजगारों की फौज में खड़े पाए जाएंगे। मजबूरन उन्हें शहरों की ओर रुख करना पड़ेगा। लेकिन वहां पहले ही रोजगार खत्म कर दिए गए हैं।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही संकट के दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था कोरोना काल में बुरी तरह से चौपट हो चुकी है। उत्पादन हर क्षेत्र में 50 फीसद से भी नीचे है। देश की इस बर्बादी पर मोदी सरकार के दरबारी अर्थशास्त्रियों ने भी आंखें बंद कर रखी हैं।
बेरोजगारी और आत्मनिर्भता का झांसा
मोदी सरकार के आत्मनिर्भता के झांसे में आकर 41 करोड़ छोटे किसानों, छोटे कारोबारी, व्यापारी बेरोजग़ारी की भेंट चढ़ चुके हैं। देश के हालात देखिए कि जब कोरोना काल में देश में बड़े स्तर पर छंटनी चल रही है। काम कर रहे श्रमिकों का वेतन 50 फीसद तक कम कर दिया गया है। ऐसे में मुकेश अम्बानी की सम्पत्ति हर घंटे 90 करोड़ रुपये से बढ़ रही है।
मतलब, जनता की खून-पसीने कमाई को पूंजीपतियोंं पर लुटाया जा रहा है। मोदी सरकार किसानों को व्यापारी बनाने का झांसा देकर पूंजीपतियों की मैनेजमेंट समिति, बड़े पूंजीपतियों को पूंजी निवेश और बेरोकटोक लाभ कमाने के अवसर दे रही है। कृषि क्षेत्र का लगभग 62 लाख करोड़ का व्यापार सोने की तश्तरी में रख कर पूंजीपतियों को दिया जा रहा है।
मोदी सरकार का कहना है कि इन कानूनों से किसान राज्य की सीमा के अंदर या फिर राज्य से बाहर, देश के किसी भी हिस्से में अपनी उपज का व्यापार कर सकेंगे। तर्क दिया जा रहा है कि किसान मंडियों के अलावा व्यापार क्षेत्र में फार्मगेट, वेयर हाउस, कोल्डस्टोरेज, प्रोसेसिंग यूनिटों पर भी बिजनेस करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होंगे।
फिर भी आशंकित हैं देश के किसान
बिचौलियों को दूर करने के लिए किसानों से प्रोसेसर्स, निर्यातकों, संगठित रिटेलरों का सीधा संबंध स्थापित करने की बात मोदी सरकार कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एमएसपी को खत्म न करने की बात कर रहे हैं।
पर बिल में यह बात मेंशन न होने की वजह से बाहर की मंडियों को फसल की कीमत तय करने की अनुमति देने पर किसान आशंकित हैं। मोदी सरकार के कार्यकाल की बात करें तो स्थिति साफ हो जाती है कि यह सरकार किसान, मजदूर और युवाओं का भविष्य दांव पर लगा कर कॉरपोरेट घरानों के लिए ही काम कर रही है।
चाहे नोटबंदी का मामला हो या फिर कोरोना वायरस के बहाने लॉकडाउन का। कॉरपोरेट घरानों ने भरपूर फायदा उठाया है। नोटबंदी में इन घरानों ने अपने काले धन को सफेद कर लिया। वहीं लॉकडाउन के बहाने बड़े स्तर पर छंटनी भी की।
साथ ही बचे कर्मचारियों को नौकरी जाने का भय दिखाकर उनका भरपूर शोषण किया जा रहा है। इन कॉरपोरेट घरानों का यही खेल अब किसानों के साथ भी खेले जाने की आशंका जताई जा रही है। मीडिया में काम कर रहे कर्मचारियों का भी उत्पीड़न किया जा रहा है।