
New agricultural laws: नए कृषि कानून किसान विरोधी हैं। इसीलिए किसान विरोध में आंदोलन की राह पर हैं। क्योंकि अब न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं रह गई।
New agricultural laws: खेती कंपनियों के हवाले, तो किसान भगवान के
सी एस राजपूत
नई दिल्ली। (New agricultural laws) हाल ही में केंद्र सरकार ने तीन कृषि विधेयक पारित करवाए हैं। वे किसान विरोधी हैं। उसी के खिलाफ किसान सड़क पर उतरे हैं। यदि ये विधेयक किसान विरोधी नहीं होते तो राज्यसभा में बिना चर्चा और मत विभाजन के इसे पारित नहीं कराते।
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का राज्यसभा में बहुमत था। लेकिन सरकार को यह भरोसा नहीं था कि सभी सहयोगी दल साथ देंगे। आखिर शिरोमणि अकाली दल गठबंधन से बाहर ही आ गया। अब उसके नेता सुखबीर सिंह बादल किसानों के साथ हैं।
किसान को अब न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं रह गई। निजी क्षेत्र को कृषि उत्पाद के असीमित भंडारण की छूट मिल गई है। और खेती कंपनियों के हवाले की जा रही है। ये सारे कदम किसान विरोधी हैं। इसीलिए आज किसान सड़क पर है।
अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण क्षेत्र कृषि
करोना काल में सारे उद्योग धंधे बंद थे। उस समय लोगों की समझ में आया कि अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण क्षेत्र कृषि है। बाकी उत्पादों के बिना मनुष्य का काम चल सकता है। लेकिन कृषि उत्पाद के बिना नहीं।
यह राष्ट्रीय शर्म का विषय होना चाहिए कि हमारा किसान कर्ज के बोझ में आत्महत्या कर लेता है। क्योंकि उसे अपने उत्पाद का लाभकारी मूल्य नहीं मिलता। सरकार कहती तो है कि वह किसान को अपनी लागत का डेढ़ गुणा देती है। लेकिन वह ईमानदारी से यह नहीं तय करती। और अब न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई गारंटी नहीं रहेगी।
तो हम किसान को (New agricultural laws) निजी खरीददारों के भरोसे शोषण के लिए छोड़ देंगे। कायदे से किसान की आय सबसे अधिक होनी चाहिए। क्योंकि वह अर्थव्यवसथा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। जब हम किसान कहते हैं तो हमारा तात्पर्य खेती की मजदूरी करने वाले से है।
तो नहीं रहेगी बेरोजगारी की समस्या
यानी, जो व्यक्ति स्वयं खेती करता है। यदि कृषि की आय अन्य उद्योगों में काम करने या सरकारी-गैर सरकारी नौकरी करने वालों से ज्यादा होगी तो इस देश की बेरोजगारी की समस्या हल हो जाएगी। क्योंकि ज्यादातर लोग पढ़ने-लिखने के बाद भी खेती करना ही पसंद करेंगे।
एक अन्य संकट खड़ा होने वाला है। जब किसान अपना उत्पाद निजी क्षेत्र की कम्पनियों को बेचेगा तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद बंद हो जाएगी। और भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में अनाज आना बंद हो जाएगा।
उससे सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। राशन की दुकान की व्यवस्था का महत्व भी कोरोना काल में और स्पष्ट हो गया। जिनके माध्यम से गरीबों तक अनाज पहुंचाया गया।
क्या सरकार ने सोचा है कि (New agricultural laws) उन गरीब परिवारों का क्या होगा जो अपनी खाद्य सुरक्षा के लिए पूरी तरह से राशन से मिलने वाले अनाज पर निर्भर हैं? यह सरकार की गरीब विरोधी सोच को उजागर करता है।