New farmers law: पंजाब से शुरू हुई किसान आंदोलन की आग बिहार पहुंच गई है। बिहार के लखीसराय जिले में भी नए किसान कानून के विरोध में जनसभाओं का दौर शुरू हो गया है।
New farmers law: नए किसान कानून के विरोध में लखीसराय जिले में धरना प्रदर्शन
राजीव कुमार झा
लखीसराय, बिहार। New farmers law: पंजाब से शुरू हुई किसान आंदोलन की आग बिहार पहुंच गई है। केंद्र सरकार के इस दावे के विपरीत कि किसान आंदोलन केवल पंजाब का मसला है, बिहार के लखीसराय जिले में भी नए किसान कानून के विरोध में जनसभाओं का दौर शुरू हो गया है।
जनसभा में वक्ताओं ने केंद्र की भाजपा सरकार के किसान कानूनों को देश के करोड़ों किसानों के हितों के खिलाफ बताया। और आरोप लगाया कि सरकार उद्योगपतियों और अन्य तबकों से सांठगांठ कर रही है।
वहां नेताओं ने सरकार को चेतावनी दी कि वह नए कृषि कानून को वापस ले। इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह का आह्वान किया गया कि सभी किसान कानून के खिलाफ देशव्यापी जन आंदोलन में शामिल हों।
क्या है नया कृषि कानून
नए कृषि कानून को सबसे पहले अध्यादेश के जरिये जून में लाया गया। बाद में उससे संबंधित तीन विधेयक सदन में लाए गए। लोकसभा में विधेयक विपक्ष के विरोध के बावजूद आसानी से पास हो गया। क्योंकि वहां सरकार बहुमत में थी।
राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण सरकार को विपक्ष के जोरदार विरोध का सामना करना पड़ा। यहां तक कि सदन में माइक तक तोड़ दिए गए। सदन के शोरशराबे को सरकार ने ध्वनिमत बता कर विधेयक को पास करा लिया।
आवश्यक वस्तु अधिनियम
अब समझते हैं कि वे तीन विधेयक क्या हैं और उनमें प्रावधान क्या हैं। पहला है एसेंशियल कमोडिटी बिल 2020 यानी आवश्यक वस्तु अधिनियम या भंडारण नियमन। यह नियम उन आवश्यक वस्तुओं से संबंधित है, जिनके बिना हमारा काम नहीं चलता। जैसे गेहूं, चावल, दाल, आलू, प्याज आदि।
अगर कोई भी इन वस्तुओं का भंडारण कर लेता है तो बाजार में इनकी कीमतें इतनी ज्यादा बढ़ जाती हैं कि आम आदमी इन्हें खरीद पाने में अक्षम हो जाता है। ऐसा 1955 तक चलता रहा। लेकिन उस समय सरकार ने कानून बना दिया कि निर्धारित मात्रा से अधिक कोई भी व्यापारी इन वस्तुओं का भंडारण नहीं कर सकता।
अब 2020 में सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर असीमित भंडारण की अनुमति दे दी है। केवल युद्ध और आपदा की स्थिति में भंडारण पर रोक लगाई जा सकती है। यह विधेयक वास्तव में जनविरोधी है, जिसका विरोध हो रहा है।
मूल्य आश्वासन पर बंदोबस्त और सुरक्षा समझौता
दूसरा विधेयक है मूल्य आश्वासन पर बंदोबस्त और सुरक्षा समझौता। इसी को कांट्रैक्ट फार्मिंग यानी ठेके पर खेती भी कहते हैं। इसके तहत व्यवस्था है कि बड़ी बड़ी कंपनियां अनुबंध कृषि कर सकती हैं। वे किसान को फसल की बुआई के समय ही फसल के मूल्य तय करती हैं। वैसे यह विधेयक अच्छा है। लेकिन इसमें किसानों के लिए कानूनी सुरक्षा की व्यवस्था नहीं हैं।
विधेयक के अनुसार किसी भी विवाद की स्थिति में किसान अदालत की शरण नहीं ले सकता। इसमें केवल एसडीएम को विवाद सुलझाने की शक्तियां प्रदान की गई हैं। इस विधेयक की इसी खामी का विरोध किया जा रहा है।
कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य
इस विधेयक में कहा गया है कि किसान अपनी उपज को मंडियों से बाहर भी बेच सकता है। लेकिन विडंबना यह है कि महज छह प्रतिशत किसान अपनी उपज मंडियों में बेच पाते हैं। तो फिर इसमें नया क्या है?
इसमें जिस बात का विरोध हो रहा है, वह है न्यूनतम समर्थन मूल्य। दरअसल, सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसान की उपज खरीदती है। किसानों को आशंका है कि बड़े बड़े व्यापारी अनाज के बाजार में आ जाएंगे और वे अपनी शर्तों पर किसानों का शोषण करेंगे।
किसानों का कहना है कि जब अनाज के बाजार में निजी क्षेत्र को लाया जा रहा है तो न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी बाध्यता बनाई जाए। यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर यदि कोई किसान की उपज खरीदेगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।