
Odyssey: सपना चौधरी के डांस की लोकप्रियता का ग्राफ देखें तो साफ हो जाएगा कि भारतीय समाज में नृत्य के प्रति कितना आकर्षण है। लेकिन यदि आप अपनी रुचि को परिष्कृत करें तो आनंद कई गुना बढ़ जाएगा। हम बात कर रहे हैं भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों की।
Odyssey: एक जीवंत नृत्य शैली है ओडिसी
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। Odyssey: साहित्य, संगीत और कला ऐसे माध्यम हैं जो हमें भौतिक जगत के पार ले जाने में समर्थ हैं। नृत्य कला की बात करें तो इस मामले में भारत काफी समृद्ध रहा है। देश की आठ प्रमुख नृत्य शैलियों में ओडिसी एक जीवंत नृत्य शैली है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की बात करें तो उड़ीसा प्रदेश जिसका नाम बदल कर ओडिशा कर दिया गया है, इस नृत्य शैली का उद्गम स्थल रहा है। इसका जन्म बुद्धकालीन सहजयान और वज्रयान शाखाओं की साधना से हुआ। विभिन्न तरह की भाव–भंगिमाओं के साथ यह नृत्य भगवान को समर्पित किया जाता है। जिसकी अपनी अलग विशेषता रही है।
लास्य और तांडव
Odyssey: इस नृत्य का प्रधान भाग लास्य और अल्प भाग तांडव से जुड़ा हुआ है। तभी तो इसमें भरतनाट्यम और कत्थक का स्वरूप देखने को मिलता है। इस्लामिक शासन काल के समय यह नृत्य कला कम होने लगी थी और ब्रिटिश शासन काल में इसे बंद करवा दिया गया था। कुछ समय बाद भारतीयों ने इसका विरोध किया और फिर इसका पुनर्विस्तार हुआ। भुवनेश्वर के पास ही उदयगिरि और खंडगिरी की गुफाएं इसके प्रमाण हैं।
यह नृत्य अत्यंत पुराने नृत्यों में एक है। इसकी शुरुआत देवदासियों (महरिस) के नृत्य के साथ हुई थी। देवदासी उन्हें कहा जाता था जो मंदिरों में नृत्य किया करती थीं। इस नृत्य के बारे में ब्रह्मेश्वर मंदिर के शिलालेखों में भी उल्लेख किया गया है।
जब पुरुषों ने मंदिरों में नृत्य शुरू कर दिया
देवदासियां जब शाही दरबारों में कार्य करने लगीं तो ओडिसी नृत्य का प्रचलन कम होने लगा। फिर इसी बीच पुरुषों ने मंदिरों में नृत्य करना शुरू कर दिया। पुरुषों के नृत्य समूह को गोटुपुआ कहा जाता था।
ओडिसा के हिंदू मंदिरों की मूर्तियों, हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के पुरातात्विक स्थलों में नृत्य मुद्राओं वाली मूर्तियों से इस नृत्य के अस्तित्व की प्राचीनता का पता चलता है।
इस पारंपरिक नृत्य को बीसवीं शताब्दी के मध्य में थियेटर कला के रूप में नया स्वरूप प्रदान किया गया। अपने नए स्वरूप में आडिसी नृत्य देश भर में प्रचलित हुआ।
नृत्य–नाटिका की शैली
ओडिसी नृत्य पारंपरिक रूप से नृत्य–नाटिका की शैली है। इसकी दो प्रमुख मुद्राएं होती हैं–चौक और त्रिभंग। चौक में नर्तकी अपने शरीर को थोड़ा झुकाती है और घुटने थोड़ा सा मोड़ लेती है। दोनों हाथों को आगे की तरफ फैला लेती है।
इस प्रकार नौ रसों और विभिन्न मुद्राओं को ओडिसी नृत्य के माध्यम से पेश किया जाता है। यह पुरुिषोचित मुद्रा कहलाती है। त्रिभंग मुद्रा में शरीर को तीन भागों में बांटा जाता है। सिर, शरीर और पैर। इन तीनों भागों पर ध्यान केंद्रित कर नृत्य को प्रस्तुत किया जाता है।
त्रिभंग मुद्रा स्त्रियोचित मुद्रा
त्रिभंग मुद्रा स्त्रियोचित मुद्रा कहलाती है। इसमें श्रंगार का बहुत महत्व होता है। क्योंकि शास्त्रीय नृत्य पौराणिक कथा—कहानियों पर आधारित होते हैं। और श्रंगार के माध्यम से ही पात्रों की पहचान को निर्धारित किया जाता है। श्रंगार करते समय दर्पण को देखा जाता है। इसे जब नर्तकी प्रस्तुत करती है तो इस मुद्रा को दर्पणीय भंगी कहते हैं।
इस नृत्य शैली के माध्यम से भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री जगन्नाथ जी की महिमा का वर्णन किया जाता है। इसलिए यह नृत्य भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। नृत्य की प्रस्तुति के दौरान गायक जिन छंदों को गाता है, वे जयदेव रचित संस्कृत नाटक गीत गोविंद से लिए जाते हैं। नृत्य को प्रस्तुत करते समय हाथ की सांकेतिक भाषा को हस्ता कहते हैं।
पुष्प हस्त मुद्रा
हाथ में पुष्प दर्शाने के लिए एक प्रतीकात्मक मुद्रा को प्रस्तुत किया जाता है, जिसे पुष्प हस्त मुद्रा कहते हैं। कुछ मुद्राएं प्रतीकात्मक या सजावटी रूप में प्रस्तुत की जाती हैं। इनमें बांसुरी मुद्रा प्रमुख है जो लगभग सभी प्रकार के नृत्यों का एक अनिवार्य अंग होती है। उड़ीसा में बांसुरी को वेणु कहा जाता है।
नृत्य की प्रस्तुति में एक गायक और कुछ वादक साथ देते हैं। वादकों में पखावज, बांसुरी और सितार के कलाकार होते हैं। नृत्य संचालक भी संगीतकारों के साथ बैठता है। नर्तकी विशेष प्रकार के आभूषणों को धारण करती है, जो चांदी के बने होते हैं।
केश सज्जा पर विशेष ध्यान
इस नृत्य में केश सज्जा पर विशेष ध्यान दिया जाता है। जो कि बहुत ही आकर्षक होती है। इसमें बड़े आकार का जूड़ा बनाया जाता है। जिसको पुष्पों और आभूषणों से सजाया जाता है। माथे पर चांदी का टीका लगाया जाता है।
साड़ी पहनने की भी विशेष प्रक्रिया होती है। स्थानीय रेशम से बनी साड़ी को सामने से प्लेट बनाकर पहना जाता है। इसमें उड़ीसा के पारंपरिक प्रिंट होते हैं। हाथों और पैरों में आलता लगाया जाता है।
Odyssey: दरअसल, ओडिसी नृत्य एक ऐसा अद्भुत नृत्य है जो आज भी अपनी कला को संजोए हुए है। इसमें नाटक, संगीत, श्रृंगार, साहित्य और आस्था का अनूठा संगम है। यदि इस आलेख से आपकी जानकारी में थोड़ा भी इजाफा हुआ हो तो आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं। ताकि हम आपके लिए अधिक सुरुचिपूर्ण जानकारी लेकर आ सकें।