Opposition Mobilization: मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की लामबंदी जोर पकड़ रही है। लेकिन इस कवायद की कमजोर कड़ी ममता बनर्जी की भाषा, शरद पवार का ढुलमुल रवैया तो कांग्रेस, सपा और राजद में वंशवाद पर टिका नेतृत्व है।
Opposition Mobilization: ममता बनर्जी और शरद पवार महत्वपूर्ण भूमिका
चरण सिंह राजपूत
नई दिल्ली। Opposition Mobilization: लोकसभा के आम चुनाव होने में भले ही अभी तीन साल बाकी हों पर विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ अभी से लामबंदी शुरू कर दी है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और एनसीपी प्रमुख शरद पवार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
ममता बनर्जी ने दिल्ली पहुंचकर जहां सोनिया गांधी, राहुल गांंधी, आनंद शर्मा और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की तो शरद पवार राजद प्रमुख लालू प्रसाद से मिले हैं।
लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा ने जिस फोटो को ट्वीट किया है, उसमें लालू प्रसाद यादव के साथ शरद पवार, सपा के महासचिव रामगोपाल यादव और कांग्रेस के अखिलेश सिंह भी दिखाई दे रहे हैं।
इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला भी सक्रिय
उधर, इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी विपक्ष की लामबंदी में शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं। पहली अगस्त को उनका नीतीश कुमार के साथ लंच है।
इसी बीच शिव सेना के प्रवक्ता संजय राउत ने शरद पवार को आज की राजनीति का भीष्म पितामह क्या कह दिया कि भाजपा के नेता सुब्रमण्यम ने शरद पवार को पांडवों के साथ होने की बात कहकर विपक्ष की लामबंदी की नींव को ही हिला दिया।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या आज के हालात में ममता बनर्जी और शरद पवार का यह प्रयास मोदी सरकार को हराने के लिए कोई कारगर गठबंधन का रूप ले पाएगा ?
राजनीति में कोई काम असंभव नहीं
कहा जाता है कि राजनीति में कोई काम असंभव नहीं है पर आज की परिस्थितियां मोदी सरकार की तमाम खामियों के बाजवूद विपक्ष के साथ नहीं हैं। इसके लिए खुद विपक्ष ही जिम्मेदार है।
मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल में विपक्ष एक भी बड़ा आंदोलन मोदी सरकार के खिलाफ नहीं खड़ा कर पाया है। विपक्ष के कमजोर होने की वजह से ही नये किसान कानूनों के विरोध में किसान आठ माह से सड़कों पर हैं।
श्रम कानून में संशोधन से श्रमिकों को निजी कंपनियों का बंधुआ बनाने की पटकथा मोदी सरकार के लिखने के बावजूद विपक्ष मोदी सरकार के विरोध में कोई प्रभावशाली छाप नहीं छोड़ पा रहा है। मानसून सत्र में भी विपक्ष के राजनीतिक स्वार्थ ज्यादा झलक रहे हैं।
अपना चेहरा चमका रहे हैं विपक्ष के नेता
विपक्ष के नेता जनहित के मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने के बजाय अपने चेहरे को चमकाने में ज्यादा लगे हैं। यह विपक्ष की कमजोरी ही है कि कांग्रेस, टीएमसी और आप को छोड़ दें तो लगभग सभी क्षेत्रीय दलों पर मोदी सरकार ने पूरी तरह से शिकंजा कस रखा है।
हां, तमाम हथकंडे के बावजूद लालू प्रसाद और उनके बेटे तेजस्वी यादव उनके इस दबाव में नहीं आ पाए हैं। संपूर्ण विपक्ष के खुलकर मोदी सरकार का विरोध न करने का बड़ा कारण राजनीतिक दलों के शीर्षस्थ नेताओं का अथाह संपत्ति अर्जित करना भी है।
यदि इन नेताओं के पास अथाह संपत्ति है तो निश्चित रूप से ये लोग भ्रष्टाचार में लिप्त रहे होंगे। शरद पवार को संजय राउत भले ही भीष्म पितामह बता रहे हों पर यही शरद पवार कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में कसीदे पढ़ चुके हैं।
पंचायत अध्यक्ष चुनाव में जीत कर भी हार गई सपा
उत्तर प्रदेश में सपा मुख्य विपक्षी पार्टी होते हुए भी बैक फुट पर है। यह सपा की कमजोरी ही कही जाएगी कि हाल ही में पंचायत अध्यक्ष चुनाव में वह जीत कर भी हार गई। पंचायत चुनाव में हुई हिंसा के विरोध में हुए सपा के प्रदर्शन में यादव परिवार के एक भी सदस्य का सड़कों पर न उतरना गलत संदेश दे गया।
सपा पर तो यहां तक आरोप लग रहे हैं कि यादव परिवार को बचाने के लिए आजम खां की बलि दी गई है। बसपा ने तो लगभग पूरी तरह से मोदी और योगी सरकार के सामने समर्पण कर दिया है।
आप मौका देखकर मोदी सरकार के खिलाफ मुखर और नरम होती रही है। कांग्रेस, टीमएसी और राजद खुलकर मोदी सरकार के खिलाफ हैं पर ममता बनर्जी की भाषा उत्तर भारत में प्रभावी छवि बना पाने में आड़े आ रही है तो कांग्रेस और राजद में वंशवाद।
विपक्ष की कमजोरी का बड़ा कारण संघर्ष का अभाव
देश में मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की कमजोरी का बड़ा कारण संघर्ष का अभाव माना जा रहा है। विपक्ष क्षेत्रीय और जातीय आंकड़े बनाकर ही मोदी सरकार को हराने की रणनीति बनाता रहता है। विपक्ष राजनीतिक इतिहास से कोई सबक नहीं ले रहा है।
सत्तर के दशक में इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल करने के लिए जेपी जैसा ईमानदार और निर्भीक नायक था तो चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, मधु लिमये, जार्ज फर्नांडिस, किशन पटनायक, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे मंझे हुए नेता।
इसके अलावा देशभर के छात्र संगठन इंदिरा गांधी की अराजक नीतियों के खिलाफ सड़कों पर थे। अस्सी के दशक में राजीव गांधी को सत्ता से बेदखल करने के लिए वीपी सिंह की ईमानदार छवि उनके साथ चौधरी देवीलाल, चंद्रशेखर, लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव, अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवानी जैसा नेतृत्व था। ये सभी नेता संघर्ष की कोख से निकले थे।
बर्बादी की पटकथा
Opposition Mobilization: यदि आज की तारीख की बात करें तो ममता बनर्जी और लालू प्रसाद को छोड़ दें तो एक भी नेता संघर्ष करके राजनीति में स्थापित नहीं हुआ है। शरद पवार तो नेता कम उद्योगपति ज्यादा हैं।
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल अन्ना के आंदोलन को भुनाकर नेता बने हैं। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव, बिहार में तेजस्वी यादव, केंद्र में राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं जो वंशवाद के बल पर राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर स्थापित हुए हैं।
निश्चित रूप से मोदी सरकार में अराजकता का आलम है। आम जनता का हक मार कर पूंजीपतियों को दिया जा रहा है। नये किसान कानून और श्रम कानून में संशोधन कर आम आदमी की बर्बादी की पटकथा लिख दी गई है।