Painter sahu: चित्रकार जितेंद्र साहू को मथुरा का परिवेश आत्मीय और प्रेमपूर्ण प्रतीत हुआ। क्योंकि मोतीकुंज में मकान मालिक चौहान साहब और चंदनवन के डॉ. जेड. हसन के सानिध्य सुख को भुला पाना आज भी इनके लिए नामुमकिन है।
इसके अलावा मथुरा में जितेंद्र साहू के लिए कलाकर्म के लिए विशद आयाम भी उद्घाटित हुए। इसीलिए इनकी जीवन यात्रा के कुछ पड़ाव ऐसे हैं, जो आपको काफी रोचक लग सकते हैं। जानते हैं उन्हीं की जुबानी…
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चित्रकार जितेन साहू का संक्षिप्त परिचय
जन्म : 15 सितम्बर 1969
जन्मस्थान: बिलासपुर छत्तीसगढ़
काला शिक्षा: B. F. A painting
देश के कई प्रतिष्ठित आर्ट गैलरी में कला प्रदर्शनी
कला साहित्य पर लेखन
केंद्रीय विद्यालय में कला शिक्षक के रूप मे कार्यरत Mob: 9685693046
Email: artistjiten99@gmail.com
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Painter jitendra sahu: किराये के मकान में एक मुकम्मल जिंदगी
Painter sahu: बस्तर के बचेली से मथुरा के केंद्रीय विद्यालय में मेरा पदस्थापन 1999 में हुआ। और यहां आने के बाद हम मोतीकुंज में किराये के एक मकान में रहने लगे। और यह मुहल्ला हाईवे के किनारे था। वहीं पर हम एक चौहान परिवार के मकान में रहने लगे।
Painter sahu: मेरे किराये के घर के पास में ही मकान मालिक का अपना घर भी था और इनके परिवार के साथ हमारा परिवार काफी घुलमिल गया था। उस समय मेरा लड़का काफी छोटा था और उसे रात में मकान मालिक के घर पर जाकर सोना खूब पसंद था। यह संभ्रांत परिवार था और इनके दो बेटे थे। जो भिलाई और आगरा में इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ायी कर रहे थे।
घर से बाहर जाने पर हम लोग दरवाजे के कुंडी की चाबी घर की किसी खुली खिड़की की ओट में चौखट के नीचे छोड़ जाते थे। लेकिन बाद में मकान मालिक चौहान को जब इसका पता चला तो उन्होंने हमें घर से बाहर जाने पर चाबी साथ लेकर जाने के लिए कहा।
मथुरा के लोगों की सरलता, सादगी और मन की सहजता
उन्होंने मथुरा को बस्तर से बेहद भिन्न बताया। इस बारे में मथुरा के लोगों के साथ घटित अपने जीवन के कुछ अनुभवों का बयान मैं करना चाहूंगा। लेकिन इसमें इस नगर के किसी के प्रति मेरे मन में क्षोभ नहीं है। बल्कि इन वाकयों में मथुरा के लोगों की सरलता, सादगी के साथ उनके मन की सहजता से जुड़े व्यवहार ही प्रकट होते प्रतीत होते हैं।
कलाकार के कलाकर्म को उसका जीवन परिवेश सबसे अधिक प्रभावित करता है। और मथुरा के जनजीवन से कायम होने वाले लगाव ने इस शहर के जीवन प्रसंगों को अपनी पेंटिंग में उकेरने के लिए मुझे गहराई से उत्प्रेरित किया। इस दौरान मथुरा और इसके आसपास के परिवेश के पौराणिक, आध्यात्मिक और धार्मिक जीवन को कैनवास पर उकेरने में मैं प्रवृत्त रहा।
चौहान साहब के यहां किरायेदार के तौर पर रहते हुए सदैव एक गहरा अपनापन उनसे महसूस होता रहा। आज भी मेरी पत्नी चौहान साहब, उनकी पत्नी और हम लोगों के प्रति उनके मन में समाये सहज स्नेह और प्रेम को याद करके अभिभूत हो जाती है।
पारिवारिक जीवन और संस्कृति की डोर
आज हमारे समाज में पारिवारिक जीवन संस्कृति की डोर में सभी लोगों के रिश्ते मिटते जा रहे हैं। और इसी माहौल में चौहान साहब का सानिध्य और उनके मन की मिठास मथुरा की यादों में सबसे सजीव प्रतीत होती है।
डॉ. जेड. हसन से भी निकट का परिचय हुआ। यद्यपि वह मुझसे उम्र में बड़े थे और अभी उनकी उम्र 82 साल हो गई है। वे चंदनवन में रहते थे और यहाँ के.आर. कालेज के रिटायर्ड प्रोफेसर थे। उनका बेटा बीएसएफ में था और असम में मारा गया था।
सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने एक स्कूल भी खोला था। उन्होंने मुझे कुछ पेंटिंग का काम दिया और मेरी पत्नी को स्कूल में अध्यापिका की नौकरी भी दे दी। जेड. हसन साहब की अपनी एक सुंदर निजी लाइब्रेरी थी। और वह चिंतनशील और अध्ययनशील व्यक्ति थे। कालिदास और गालिब उनके प्रिय लेखक और कवि थे।
ड्राइंगरूम में पेंटिंग की पहली प्रदर्शनी
वे मेरी पेंटिंग के प्रशंसक थे। जेड. हसन अँग्रेजी के प्राध्यापक थे और रिटायरमेंट के बाद काफी छात्र उनके निर्देशन में पीएचडी करते थे। उनका घर काफी बड़ा था और उन्होंने इसमें पेंटिंग के लिए एक कमरा भी दे दिया था। उनको नववर्ष का बधाई पत्र बनाकर मैंने दिया था। और अपने इस सुंदर घर के ड्राइंगरूम में उन्होंने मेरी पेंटिंग की पहली प्रदर्शनी भी आयोजित की थी।
इनसे आज भी मेरी बातचीत होती है। इस प्रकार मथुरा में मेरे जीवन के शुरुआती दो साल चौहान साहब और जेड. हसन के सानिध्य में व्यतीत हुए।
मथुरा के केंद्रीय विद्यालय में स्कूल की पेंटिंग के काम के सिलसिले में रूप कुमार नाम का एक स्थानीय पेंटर भी आता था।
स्कूटी की अजीबोगरीब कहानी
उन दिनों मेरे पास कार नहीं थी। और मैं घर से स्कूटी से स्कूल आता था। एक बार रूप कुमार पेंटिंग करने जब स्कूल आया तो उसने घर पर ब्रश छूट जाने की बात बताकर मेरी स्कूटी से उसे लाने गया। और तीन बजे तक लौटकर नहीं आया। मैं उसके लौटने की राह देख रहा और फिर स्कूल से सारे लोग चले गए।
वहां केवल थोड़े से किसी काम में संलग्न मजदूर रह गए। उन्हें मेरी परेशानी का पता चला तो वे शाम को ड्यूटी खत्म होने के बाद अपने साथ मुझे लेकर रूप कुमार को ढूंढ़ने के लिए उसके मुहल्ले में गए।
वे मथुरा के स्थानीय निवासी थे और रूप कुमार को पहचानते थे। वहां मेरी स्कूटी रूप कुमार के घर पर खड़ी मिली और पता चला कि वह आसपास में ही कहीं दूसरी जगह शराब पीकर बेसुध पड़ा है। अपनी स्कूटी लेकर काफी देर से घर लौटा।