
Politics1: देश की राजनीति में हमेशा किसानों, मजदूरों और बेरोजगारों की बात टालने के लिए नित नई चालें चली जाती रही हैं। कांग्रेस ने मुसलिम तुष्टीकरण करके भाजपा को मुफ्त में मुद्दा दे दिया। उसी के बलबूते वह न केवल सत्ता तक पहुंची, बल्कि सत्ता में बने रहने की रणनीति पर काम कर रही है। तभी तो हर चुनाव में लोग उसके भुलावे में आ जाते हैं।
Politics1: खो गया है किसानों की आमदनी दोगुनी करने का मुद्दा
श्रीकांत सिंह
Politics1: जिस जुमले से भाजपा ने किसान आंदोलन की आग को शांत किया, वही जुमला अब अजान और हनुमान की चर्चा में कहीं खो गया है। अब तो जगह जगह लाउडस्पीकर लगाए जाने की बात की जा रही है। ताकि किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वादे को भुलवाया जा सके।
दरअसल, किसानों की आमदनी बढ़ाए जाने के लिए खेती के प्रति सरकारी नीतियों में आमूल चूल परिवर्तन करना होगा। खेती के बजट को बढ़ाना होगा। लेकिन फ्री में अनाज का वितरण करके सरकार आत्मनिर्भर भारत के वायदे से मुकर रही है।
महंगाई ने तोड़ी किसानों की कमर
आज किसान अगर किसी बात से सबसे ज्यादा परेशान है, तो वह है महंगाई। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में लगातार बढ़ोतरी करके सरकार किसानों की मुसीबतें बढ़ा रही है। क्योंकि उससे खेती की लागत लगातार बढ़ रही है। बचत की बात करें, तो वह लगातार घट रही है। जब खेती के धंधे में बचत नहीं होगी, तो देश का किसान आखिर आत्मनिर्भर कैसे बनेगा?
कोई भी किसान आत्मनिर्भरता की ओर तभी बढ़ सकता है, जब उसके परिवार के एक सदस्य को कोई नौकरी मिल जाए। लेकिन बेरोजगारी इस कदर चुनौती बन गई है कि आज देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में भोजन कराना पड़ रहा है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। मुफ्त राशन देकर देश की एक बड़ी आबादी को अकर्मण्य और अपाहिज बनाया जा रहा है।
मजदूरों के शोषण से नहीं आ पा रही है आत्मनिर्भरता
रोजगार के नाम पर जो नौकरियां भारतीय बाजार में उपलब्ध भी हैं, उनसे आत्मनिर्भरता जैसे शब्द बेमानी साबित हो रहे हैं। श्रम कानूनों को कुछ इस तरह से तोड़ मरोड़ दिया गया है कि कारपोरेट जगत दबाकर मजदूरों का शोषण कर रहा है। यह शोषण इसलिए भी हो पा रहा है कि सरकार की मजदूरों के प्रति कोई स्पष्ट नीति नहीं है।
आज मजदूर श्रम अदालतों में धक्के खाने को मजबूर हैं। कहा जा रहा है कि मजदूरों को न्याय देने के लिए माननीय न्यायाधीश भी सरकार का मुंह ताक रहे हैं। मजदूर तो मजदूर, पढ़े लिखे लोग भी सरकार की ढुलमुल नीतियों के शिकार हैं। पत्रकारों को समाज का जागरूक तबका माना जाता रहा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद उन्हें मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ नहीं मिल पाया है। क्योंकि श्रम अदालतें टालमटोल का रवैया अपना रही हैं।
सत्तासीन भाजपा को मिल गई है चुनाव जीतने की चाभी
सबका साथ और सबका विकास का दम भरने वाली भाजपा ने समझ लिया है कि देश के लोगों को अजान और हनुमान में उलझा कर लंबे समय तक शासन किया जा सकता है। तभी तो भाजपा एक चुनाव जीतते ही दूसरे चुनाव की तैयारी में लग जाती है।
इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि अजान और हनुमान के जरिये भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव के प्रचार का श्रीगणेश कर दिया है। अब हनुमान चालीसा के जरिये भाजपा चुनाव प्रचार अभियान में उतरने जा रही है। भाजपा यही करके लगातार चुनाव जीत रही है। लोग आश्चर्य करते हैं कि बिना किसी जमीनी मुद्दे के भाजपा आखिर चुनाव कैसे जीत जाती है?
क्या यही सब चलेगा, लोगों को क्या करना होगा?
अगर आप परिवर्तन चाहते हैं, तो तैयारी बड़ी करनी होगी। एक जागरूक नागरिक के रूप में सामने आना होगा। जो लोग सत्ता की चासनी में डूबे हैं, उनकी संख्या ज्यादा नहीं है। वे मुट्ठीभर लोग इतने ज्यादा जागरूक हैं कि बहुसंख्यकों का हक आसानी से मार ले रहे हैं।
इसलिए देश की बहुसंख्यक जनता को जागरूक और एकजुट होना होगा। उसे रचनात्मक और विचारपरक आंदोलन चलाना होगा। आज के समय में ऐसे आंदोलन चलाना आसान हो गया है। इंटरनेट और हिंदी यूनिकोड ने वैचारिक संपर्क के संसाधनों को मजबूत बनाया है। बावजूद इसके, हम मजबूत नहीं बन पा रहे हैं।
कारण? कारण यह है कि हम अजान और हनुमान की धारा में आसानी से बह जाते हैं। हमें वैचारिक रूप से मजबूत और स्थिर बनना होगा। और एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा, जो मजबूत और स्थिर हो। संघ और भाजपा ने अपने तरह के व्यक्तियों का निर्माण किया। उन्हीं के बल पर सत्ता आज उनकी दासी है। क्या हम अपने तरह के व्यक्तियों वाले समाज का निर्माण नहीं कर सकते? आप अपने विचारों से अवगत कराने के लिए कमेंट लिख सकते हैं। हमारी चर्चा जारी रहेगी।