
Popularity of BJP: अटल जी ने भले ही कभी विश्वास मत खो दिया था, लेकिन उन्होंने जनता का जो विश्वास अर्जित किया था उसी का बड़ा प्रतिफल बेपनाह ताकत के रूप में सामने आया। लेकिन उसके विपरीत आज तमाम जोड़ तोड़ के जरिये भाजपा भले ही कुछ प्रदेशों में सत्ता पर काबिज होती जा रही है, लेकिन क्या उससे जनता में उसका विश्वास भी बढ़ रहा है? यह बड़ा सवाल है। आज इसी की पड़ताल।
Popularity of BJP: उत्तर प्रदेश में क्या बीत रही थी भाजपा पर?
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। Popularity of BJP: सबसे पहले बात उत्तर प्रदेश की। उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनावों के हालात आप भूले नहीं होंगे। जब दो युवकों ने मिल कर भाजपा के तीन दिग्गजों को घुटनों पर ला दिया था। उस समय भीड़ न जुटने के कारण भाजपा के इन दिग्गजों की रैलियां फ्लाप हो रही थीं। जगह जगह विधायक तक खदेड़े जा रहे थे और पार्टी कार्यकर्ताओं में आक्रोश व्याप्त हो रहा था।
इस प्रकार जनता को रिझाने का हर दांव फेल हो रहा था। भाजपा हार के कगार पर थी तो अखिलेश यादव के साथ जनसैलाब उमड़ रहा था। और इसी जनसैलाब ने दिल्ली दरबार को पूरी तरह हिला कर रख दिया था। तभी तो नवंबर 2021 में भाजपा ने एक बड़ा सर्वे कराया था। मोदी और शाह के इस सर्वे का जब परिणाम सामने आया तो उनके पैरों तले जमीन खिसकने लगी।
उत्तर प्रदेश को जीतने के लिए क्या था मेगा प्लान?
Popularity of BJP: मोदी, शाह, नड्डा और अशोक प्रधान की बैठक में यह तय पाया गया कि कोविड काल में गरीबों को जो राशन बांटा जा रहा था, उसे दिसंबर, जनवरी, फरवरी और मार्च तक चार महीने के लिए बढ़ा दिया जाए। इस पर लगभग 55 हजार करोड़ रुपये की लागत आ रही थी। कैबिनेट की बैठक हुई और 53 हजार करोड़ रुपये जारी किए जाने को स्वीकृति मिली। कहां से आई यह भारी भरकम धनराशि? हमारे और आपके टैक्स के पैसों से।
वैसे, गरीब कल्याण की बात बुरी नहीं है। लेकिन सिर्फ चुनाव जीतने के लिए हमारे और आपके टैक्स से जुटाई गई धनराशि पानी की तरह बहाई जाए तो यह कहां तक उचित है? विचार कीजिएगा। खैर। जनवरी में इस मेगा प्लान का फीडबैक लिया गया, जिसके निष्कर्ष के तौर पर बताया गया कि लाभार्थी जाग गए हैं। इसलिए अखिलेश और जयंत की परवाह करने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन पहले और दूसरे चरण का मतदान हुआ तो फीडबैक बहुत ही खराब आया। भाजपा को लगने लगा कि मेगा पलान फेल हो चुका है।
और गरीबों को कोसने लगे भाजपा के कुछ उम्मीदवार
भाजपा को लगने लगा था कि राशन के बदले वोट मिलेंगे। लेकिन जब ऐसा होता नजर नहीं आया तो भाजपा के कुछ उम्मीदवार गरीबों को कोसने लगे। सरिता भदौरिया ने तो हद कर दी। उन्होंने गरीबों को प्रकारांतर से नमकहराम तक कह डाला। लेकिन गरीब तो यह कहने लगे कि राशन कोई अपने घर से नहीं न दे रहे हैं। यह तो सरकारी पैसे से आ रहा है। सरिता भदौरिया ने जो ओछी बात की है, वह ठीक नहीं।
दरअसल, जब नीयत खराब होती है तो हर दांव उलटा पड़ने लगता है। कुछ ऐसा ही हुआ मेगा प्लान के साथ। आयकर के छापे भी कुछ रंग नहीं ला सके। क्योंकि छापों में किसी के पास से कुछ भी नहीं मिला। अंत में मेगा प्लान दो लाना पड़ा। इसमें शामिल थी मुफ्त में मकान देने की योजना। गांव में मकान बनाने पर एक से दो लाख रुपये तो शहर में मकान बनाने पर दो से ढाई लाख रुपये दिए जाने की योजना बनी। सरकार को लगा कि यह योजना जरूर रंग लाएगी।
भ्रष्टाचार निगल गया मुफ्त मकान दिए जाने की योजना
शहर में मकान बनाने के लिए फाइल पास करने की एवज में भाजपा निगम पार्षद 20 से 25 हजार रुपये लेने लगे। गांव की बात करें तो गरीबों को लेखपाल की मुट्ठी गरम करनी पड़ रही थी। इस प्रकार मुफ्त मकान दिए जाने की योजना भ्रष्टाचार के कारण फेल हो गई। और व्यापक तौर पर रिश्वत की बात करें, तो उसके रेट काफी बढ़ गए।
अवकाश प्राप्त आईएएस सूर्यप्रताप सिंह कहते हैं, उत्तर प्रदेश में हर स्तर पर भ्रष्टाचार बढ़ा है। कहां से शुरू करें और कहां पर खतम करें कुछ पता नहीं चलता है। तभी तो तीसरे चरण के मतदान तक मोदी और शाह ने जैसे मान लिया था कि उत्तर प्रदेश का चुनावी सेमीफाइनल हाथ से निकल रहा है। शायद यही वजह रही होगी कि जिस योगी जी को मोदी और शाह पैदल चलाने लगे थे और पोस्टर से उनकी तस्वीरें गायब की जा रही थीं, उन्हीं योगी की हर चुनाव सभा में चर्चा की जाने लगी।
दिनोंदिन उजागर हो रही है भाजपा की अंतर्कलह, छवि पर लगे दाग
भाजपा ने अपने कितने वरिष्ठ नेताओं के पर कतरे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। लेकिन योगी आदित्यनाथ पर किसी का वश नहीं चला। अंत में उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद अपने बल पर सुशोभित कर दिया। योगी जी भले ही अपने हर अच्छे काम का श्रेय मोदी जी को देते हैं, लेकिन योगी जी पर जिस कदर पहरा बैठाया गया है, उसकी चर्चा राजनीतिक गलियारों में बखूबी होती है।
महाराष्ट्र की बात करें तो देवेंद्र फडणवीस किस कदर नाराज हुए और उन्हें अपमान के घूंट पीने पड़े, यह भी किसी से छिपा नहीं है। हाल ही में कुछ आतंकियों के फोटो वरिष्ठ भाजपा नेताओं के साथ पाए गए। लेकिन किसी भी शीर्ष नेता ने उस पर कुछ नहीं कहा। अब ऐसा लगने लगा है कि भाजपा के शीर्ष नेताओं को पार्टी की छवि की कोई परवाह ही नहीं है। ऐसे में पार्टी क्या अपनी नकारात्मक छवि के साथ 2024 के चुनाव में उतरेगी या छवि को सुधारने के लिए कोई उपाय करेगी? आज की तारीख में यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है।
संपादक की नजर में उचित अनुचित का विवेक
Popularity of BJP: दोस्तो, मीडिया और पत्रकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग भाजपा के गलत सही किसी भी कदम की सराहना करने में लगा रहता है। और उससे पार्टी में अहंकार का प्रवेश हो जाता है। कहा जाता है कि यदि किसी को बर्बाद करना है तो उसके अहंकार को बढ़ा दीजिए। यही काम गोदी मीडिया कर रहा है।
तभी तो भाजपा के तमाम नेता पार्टी की छवि के प्रति संजीदा नजर नहीं आते हैं। लेकिन पत्रकारों का एक छोटा सा समूह है, जो पार्टी, सरकार और उसके कर्ताधर्ताओं को आइना दिखाता है। ताकि पार्टी अपने गलत फैसलों पर पुनर्विचार करने को मजबूर हो और जनता में उसकी लोकप्रियता बनी रहे। अगर आप खबरों से जुड़े रहते हैं तो इन पत्रकारों को आसानी से पहचान सकते हैं। आप तय कर सकते हैं कि कौन सा पत्रकार भाजपा का हितैषी है और कौन पत्रकार पार्टी का गुप्त दुश्मन।
किसान आंदोलन के संदर्भ में आपने देखा होगा कि कुछ पत्रकार किसान आंदोलन को कुचल देने तक की बात करने से गुरेज नहीं कर रहे थे। जब उन्हीं किसानों की प्रमुख मांगों को सरकार ने मान लिया और कृषि कानून वापस ले लिए गए तो यही पत्रकार सरकार के कदम को मास्टर स्ट्रोक बताने से नहीं चूक रहे थे। इन पत्रकारों की रीढ़ में हड्डी है भी या नहीं। लेकिन जुझारू पत्रकारों की ओर से सिर्फ इतना कहना है, ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तो।