positive and negative corona discharge: तर्क दिया जा रहा है कि कुछ राज्यों की सरकारें कोरोना महामारी से निपटने में सकारात्मक रुख नहीं अपना रही हैं। मसलन वे आक्सीजन, बेड और वैक्सीन के अभाव का रोना रो रही हैं। क्या वास्तव में ऐसा है? आज चर्चा इसी पर।
positive and negative corona discharge: तुम मुझे कुर्सी दो, हम तुम्हें कोरोना
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। positive and negative corona discharge: सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि आखिर पाजिटिव और निगेटिव होता क्या है? विज्ञान की बात करें तो पदार्थ पाजिटिव और निगेटिव कणों से मिल कर बना है। विचार की बात करें तो अच्छे दिन आएंगे यह पाजिटिव विचार है। और यदि प्रश्न कर लिया जाए कि कहां हैं अच्छे दिन? तो यह निगेटिव विचार।
इसी प्रकार संगीत में प्रवेश करें तो सात सुरों में एक प्रतिवादी सुर होता है। उसे निगेटिव भी कह सकते हैं। यह सुर प्रतिवाद करता है और बताता है कि कमी कहां है? लेकिन बिना उसके संगीत का कोई राग बनता ही नहीं। बंगाल चुनाव की बात करें तो वहां के बारे में कहा जा रहा है कि हमारे नेता कुर्सी छीनने की धुन में कोरोना महामारी को नजरअंदाज कर रहे हैं।
सकारात्मक पत्रकारिता बनाम नकारात्मक पत्रकारिता
हमारे समाज में भी ऐसे किरदार मिल जाएंगे, जो यही बताते हैं कि कमी कहां है? आपने किसी समारोह का आयोजन किया है तो आपकी व्यवस्था की अच्छाइयां उन्हें नहीं दिखेंगी। वे तो मुखर होकर बोल देते हैं—भाई साहब पानी नहीं रखवाया। अगर आपने पानी रखवा भी दिया तो कहेंगे—भाई साहब आपने गिलासें नहीं रखवाई हैं। अगर गिलासें भी रखवा दी तो बोलेंगे—भाई साहब आपने सिर्फ गिलासें रखवाई हैं। ये तो इधर—उधर फैल रही हैं। आपने टोकरी तो रखवाई नहीं।
कहने का मतलब यह कि नकारात्मकता भी सकारात्मक परिणाम तय कर सकती है। शायद इसीलिए पत्रकारिता का उदभव और विकास हुआ। कह सकते हैं कि नकारात्मकता के बगैर पत्रकारिता कैसी? लेकिन आज सकारात्मक पत्रकारिता का आग्रह किया जा रहा है। और यह आग्रह छोटे—मोटे नहीं, नागीगिरामी पत्रकार भी कर रहे हैं।
दोनों तरह की पत्रकारिता में एक द्वंद्व
इन दोनों तरह की पत्रकारिता में एक द्वंद्व चल रहा है। एक पक्ष को गोदी मीडिया कहा जा रहा है तो दूसरे पक्ष को डिजाइनर मीडिया। सोशल मीडिया भी इस तरह के दो गुटों बंटा है। मजे की बात यह है कि पत्रकार यदि किसी प्रदेश सरकार की तारीफ करता है तो उसमें तारीफ कम, उसकी विरोधी पार्टी वाली राज्य सरकार की आलोचना अधिक होती है।
इस प्रकार सकारात्मकता और नकारात्मकता एक दूसरे में गड्डमगड्ड से हो गए लगते हैं। एक बात किसी को सकारात्मक लगती है तो वही बात किसी दूसरे को नकारात्मक लग सकती है। अब कोरोना महामारी को ही ले लीजिए। इसका फैलना चीन के लिए नकारात्मक नहीं सकारात्मक है। क्योंकि उसे आपदा में अवसर उपलब्ध हो गए हैं। जिससे उसकी अर्थव्यवस्था नकारात्मक नहीं, सकारात्मक सफर पर है।
वैक्सीन में मुनाफाखोरी केंद्र के लिए सकारात्मक तो राज्यों के लिए नकारात्मक
टीवी समाचारों में बताया जा रहा है कि 150 रुपये की वैक्सीन खुराक 400 से 600 रुपये में केंद्र सरकार बेच रही है। जिसका विरोध भी हो रहा है। एसआईआई यानी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कहा कि कोविड-19 वैक्सीन की कीमत राज्य सरकारों के लिए 400 रुपये प्रति खुराक और निजी अस्पतालों के लिए 600 रुपये प्रति खुराक होगी। कोरोना वायरस के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं और ऐसे में वैक्सीन की जरूरत और कीमत दोनों पर खास ध्यान दिया जा रहा है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने टीकाकरण से जुड़ी नई नीति को लेकर चिंता जाहिर की है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया है कि इस नीति में बदलाव किया जाए और पूरे देश में टीकों की एक समान कीमत सुनिश्चित की जाए। उनका कहना है कि केंद्र सरकार ने 18 से 45 साल के लोगों को मुफ्त टीका उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है।
पत्रकारिता के अभाव में सिस्टम ही लीक
दरअसल, सकारात्मक का मतलब आमतौर पर यही समझा जाता है कि सबकुछ ठीक चल रहा है। राजा राज कर रहे हैं। परजा सुख कर रही है। इससे इतर कुछ भी लिखा जाता है तो उसे नकारात्मक पत्रकारिता करार दे दिया जाता है। पत्रकारिता को भले ही हतोत्साहित किया जाता रहे, लेकिन सकारात्मक पत्रकारिता के परिणाम हकीकत सामने ला ही देते हैं। आक्सीजन गैस लीक कांड इसका एक ज्वलंत उदाहरण है। जो यह साबित करने के लिए काफी है कि सघन पत्रकारिता के अभाव में पूरा सिस्टम ही लीक हो रहा है। पत्रकारों ने आक्सीजन व्यवस्था पर ठीक से नजर डाली होती तो हादसे से बचा जा सकता था।
कुछ पत्रकार तो यही साबित करने में मरे जा रहे हैं कि किसान आंदोलन फेल हो चुका है। दाग अच्छे हैं की तर्ज पर खेती कानून अच्छे हैं। तभी तो दिल्ली बार्डर पर एक ओर किसानों की जान जा रही थी तो दूसरी ओर हमारे देश का कर्णधार बनारस में ठुमके लगा रहा था। किसी नेता की संवेदनहीनता का इससे सटीक और कोई उदाहरण हो ही नहीं सकता। आप कैसे अपनी ही निर्दोष जनता की मौत पर खुश हो सकते हैं, जिसके वोट से आपको सिंहासन मिला है? ऐसी सकारात्मकता से भगवान बचाए।
निष्कर्ष
Positive and negative corona discharge: पत्रकार भाइयों से आग्रह है कि सकारात्मकता और नकारात्मकता में उलझने की जरूरत नहीं है। सकारात्मकता और नकारात्मकता निरपेक्ष रूप से कुछ नहीं होती। कहीं सकारात्मकता को अच्छा माना जाता है तो कहीं नकारात्मकता को। आप में कोरोना सकारात्मक पाया गया तो आपका जीवनकाल नकारात्मक होने की आशंका बलवती हो जाएगी। आप क्यों सरकार के प्रति सकारात्मक हुए जा रहे हैं? यकीन मानिए। सभी पत्रकारों को राज्यसभा की सीट नहीं मिल जाया करती।
इसलिए दबाके पत्रकारिता कीजिए। सरकार हमारी सेवक है और उसका मुखिया प्रधानसेवक। सेवक से काम लिया जाता है, उसकी ज्यादा तारीफ नहीं की जाती। तारीफ करवाने के लिए तो सरकार के पास बहुत पैसा है। हम धनहीन लोग अपने जमीर को बुलंदियों पर रखें, तो ही अच्छे दिनों का आना संभव हो पाएगा। अगर मेरे विचार सकारात्मक हैं तो कमेंट कीजिए। अगर नकारात्मक हैं तो जरूर कमेंट कीजिए। आपके हर तरह के कमेंट का स्वागत है।