
आर के तिवारी
नई दिल्ली। जब कोई कर्तव्यबोध के प्रति समर्पित हो जाता है तो उसे किसी भी प्रतिकूलता की परवाह नहीं होती। हालांकि देश के लोगों ने सत्ता के डर से बोलना बंद कर दिया है। क्योंकि किसी को लोभ सताता है तो किसी को भय। इस लोभ और भय से मुक्त होकर एक इंसान, एक अधिवक्ता और एक राजनेता देश की सर्वोच्च अदालत में डट कर खड़ा है। जी हां। हम बात कर रहे हैं वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण की।
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ कोर्ट की अवमानना केस में सुनवाई के दौरान उन्हें दोषी ठहराने के बाद उनसे बिना शर्त माफी मांगने को कहा गया है। उन्हें 24 अगस्त तक अपने बयान पर पुनर्विचार कर माफी मांगनी है। अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो कोर्ट उन्हें सजा सुना देगी।
फिर भी प्रशांत भूषण ने कोर्ट में जाहिर कर दिया कि उनके इरादे माफी मांगने के नहीं हैं। इस पर कुमार विश्वास ने अपनी प्रतिक्रिया कहा है कि वह प्रशांत भूषण को जितना जानते हैं, उसके अनुसार प्रशांत भूषण माफी नहीं मांगेंगे। प्रशांत भूषण ने गांधी के कथन को दोहराते हुए कहा है—मैं न दया की भीख मांगता हूं और न ही नरमी की अपील करता हूं। मैंने ट्वीट आवेश में नहीं किए, मैंने अपने वास्तविक विचार रखे हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने सजा की प्रकृति को किसी अन्य पीठ के पास भेजने की अपील की थी। न्यायमूर्ति अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि प्रशांत भूषण के खिलाफ तब तक कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, जब तक कोई फैसला नहीं आ जाता। अर्थात उन्हें दी जाने वाली सजा लागू नहीं होगी।
प्रशांत भूषण ने अदालत से कहा है कि उन्हें इस बात से पीड़ा हुई है कि उन्हें बहुत गलत समझा गया। मैंने ट्वीट के जरिये अपने परम कर्तव्य का निर्वहन करने का प्रयास किया है। मैं यहां किसी भी सजा को शिरोधार्य करने के लिए आया हूं जो मुझे उस बात के लिए दी जाएगी, जिसे कोर्ट ने अपराध माना है। लेकिन वह मेरी नजर में गलती नहीं, बल्कि नागरिकों के प्रति मेरा कर्तव्य है।
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने ट्विटर पर न्यायाधीशों को लेकर की गई टिप्पणी के लिए 14 अगस्त को प्रशांत भूषण को दोषी ठहराया था। प्रशांत भूषण ने 27 जून को न्यायपालिका के छह वर्ष के कामकाज को लेकर टिप्पणी की थी। इसी प्रकार 22 जून को शीर्ष अदालत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे और चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों पर दूसरी टिप्पणी की थी।
इस सप्ताह न्यायिक हलकों के साथ पूरे देश की नज़र अगर किसी अदालती कार्यवाही पर टिकी थी, तो वो थी जाने-माने वकील प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना के मामले में चल रही सुनवाई। इस मुद्दे पर राय बंटी हुई नज़र आने लगी थी।