presidential election: इस बार राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक दलों का परिदृश्य कुछ बदल गया है। जाहिर है कि उसका प्रभाव चुनाव पर पड़ सकता है। क्योंकि देश के सांसद और विधायक राष्ट्रपति को चुनते हैं। लेकिन मनोनीत जनप्रतिनिधि और विधान परिषद के सदस्य मतदान में भाग नहीं ले सकते। संविधान के भाग पांच में अनुच्छेद 52 से 151 तक राष्ट्रपति चुनाव के बारे में विस्तार से बताया गया है। जानते हैं कि इस बार क्यों खास है राष्ट्रपति पद का चुनाव?
presidential election: सरकार खुद कर रही है संवैधानिक मूल्यों की अवहेलना?
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। presidential election: राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने कहा है कि इस बार देश में एक असाधारण और अशांत स्थिति पैदा हो गई है। इसका नतीजा यह हुआ है कि संविधान की मर्यादा समाप्त हो चुकी है। हालत यह है कि राजनैतिक, सामाजिक और संवैधानिक मूल्यों की अवहेलना रोज की जा रही है। क्योंकि सरकार बजाय इन मूल्यों को बचाने के, खुद मूल्यों के खिलाफ है।
उन्होंने कहा, अगर ऐसा ही चलता रहा तो हम पाएंगे कि संविधान नष्ट हो चुका है। तभी तो इस देश का नागरिक न्याय के लिए किसी भी फोरम पर नहीं जा पा रहा है। लोगों को उन्हीं के जनप्रतिनिधि न्याय नहीं दिला पा रहे हैं। जब वे अदालतों की शरण में जाते हैं तो यह पता ही नहीं होता कि कब सुनवाई होगी और कब न्याय मिलेगा?
देर से मिलने वाला न्याय अन्याय से कम नहीं
श्री सिन्हा के मुताबिक, कुछ मामलों की सुनवाई तो देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में तुरत फुरत हो जाती है, लेकिन तमाम महत्वपूर्ण मामले लटके रह जाते हैं। सोशल मीडिया पर आपको ऐसे बहुत से वीडियो मिल जाएंगे, जिनमें सवाल उठाए गए हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था सरकार के दबाव में चरमरा रही है या मजबूती से खड़ी है?
यही नहीं, विधिवत आंकड़ों की भाषा में बात की गई है कि किस प्रकार किन किन अदालतों में कितने महत्वपूर्ण मामले लंबित पड़े हैं। दो पत्रकारों रोहित और जुबेर के मामले ज्वलंत उदाहरण के रूप में सामने आए हैं, जिनमें सरकारी दबाव साफ नजर आ रहा है। इसलिए आपको चाहिए कि सोशल मीडिया के किसी भी मंच पर अपनी टिप्पणियां सावधानी से पोस्ट करें। तथ्यों की पड़ताल किए बिना कुछ भी पोस्ट न करें। नहीं तो आप मुसीबत में पड़ सकते हैं।
सरकार के दबाव में संविधान की मर्यादाओं का उल्लंघन?
संसद के सदनों की बात करें तो वहां भी कुछ घटनाएं इस बात की सबूत हैं कि किस प्रकार सरकार के दबाव में संविधान की मर्यादाओं को दरकिनार कर दिया जाता है। यह बात आप से छिपी नहीं है कि किस प्रकार खेती कानून पास कराए गए और किस प्रकार उन्हें वापस भी ले लिया गया। सैकड़ों आंदोलनकारी किसानों के जीवन की कीमत पर।
राज्य सरकारों की बात करें, तो यह पता ही नहीं होता कि किस प्रदेश की सरकार कब गिरा दी जाएगी? आज हालत यह है कि सत्ता और धन का लोभ—मोह हमारे नेताओं को किसी भी हद तक गिरने के लिए मजबूर कर देता है। इसलिए आज की राजनीति में दीन और ईमान की उम्मीद करना बेमानी सा हो गया है। और इन हालात की जानकारी संपूर्ण विश्व विरादरी को मिल रही है। उसकी देश के प्रति प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं।
संविधान की मर्यादाओं को कैसे बचाया जाए?
ऐसे में सवाल उठता है कि संविधान की मर्यादाओं को कैसे बचाया जाए? पहला उपाय यह है कि जनप्रतिनिधियों के चुनाव में सावधानी बरती जाए। हमेशा इस बात पर ध्यान देना होगा कि कोई भी पार्टी, नेता या समाचार स्रोत कहीं हमारी भावनाओं को भड़काने में तो नहीं लगा है। किसी भी जानकारी को तभी उपयोगी मानें, जब उसमें हमारे जीवन को अधिक बेहतर बनाने की बात की जा रही हो। अगर आपको किसी काल्पनिक डर से भयभीत किया जा रहा है तो सावधान हो जाएं। डरें नहीं और दूसरे समाचार स्रोतों से तुलना करके तथ्यों की जांच जरूर कर लें।
दूसरा उपाय यह है कि देश को एक मजबूत राष्ट्रपति मिले। अगर कोई मजबूत व्यक्ति देश का राष्ट्रपति बनेगा तो वह रबर स्टांप मात्र नहीं रहेगा। क्योंकि राष्ट्रपति के पास कुछ ऐसी शक्तियां होती हैं, जो संविधान की मर्यादा को बचाने के काम आती हैं। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने तो कहा भी है कि वह राष्ट्रपति चुने गए तो कभी भी रबर स्टांप नहीं बनेंगे। लेकिन इस देश का दुर्भाग्य यह है कि सच्चे लोग संख्या बल के सामने मात खा जाते हैं। और उसका खामियाजा बहुसंख्यक जनता को भुगतना पड़ता है।