
न्यूज डेस्क, मॉस्को। चीन का मुकाबला करने के लिए भारत मजबूती से डटा है, जिसका असर विश्व राजनीति पर पड़ने लगा है। शायद यही वजह है कि भारत-चीन के बीच सीमा विवाद पर रूस ने पैंतरा बदल दिया है। भारत और चीन के विवाद को आपसी मामला बताने वाल रूस अब मध्यस्थ की भूमिका में नजर आने लगा है।
शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान दोनों देशों की बीच शांति वार्ता होने पर रूस ने कहा कि उसने ही दो एशियाई ताकतों को मंच दिया, ताकि वे सुलह कर सकें। विवाद में रूस की एंट्री से सियासी पंडित भी अचंभित हैं। विवाद पर अमेरिका से ज्यादा रूस ने सक्रियता दिखाई है।
अब रूस की महत्वकांक्षा से पर्दा भी उठ गया है। जब भारत और चीन के विदेश मंत्री बॉर्डर पर शांति को स्थापित करने के लिए सहमत हुए तो रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने इसका क्रेडिट लिया। उन्होंने तब कहा था कि मॉस्को ने चीन और भारत को एक मंच प्रदान किया है, जिसका उद्देश्य सीमा पर शांति को स्थापित करना है।
साउथ चाइना मॉर्निग पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों को अब भी संदेह है कि मॉस्को में हुआ शांति समझौता वास्तव में कितनी देर तक टिका रहेगा। दोनों देशों के हजारों सैनिक एक दूसरे की फायरिंग रेंज में मौजूद हैं। इसके जरिये रूस एक बार फिर खुद को वैश्विक विवादों को हल करने वाले देश के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।
विशेषज्ञ रूस के इस कदम को दक्षिण एशिया में अपनी उपस्थिति को और मजबूत करने के रूप में देख रहे हैं। मॉस्को स्थित रूसी एकेडमी ऑफ साइंसेज से जुड़े एनजीओ IMEMO के एलेक्सी कुप्रियनोव ने कहा कि रूस कई कारणों से दक्षिण एशिया में अपनी वापसी कर रहा है।
इनमें से एक दक्षिण एशिया की राजनीति में फिर से वापस आना है, जिससे वह 1980 और 1990 के दशक में मॉस्को के खोए हुए प्रभाव को फिर से हासिल कर सके। दूसरा कारण अफगानिस्तान में मिली हार को भुलाना है।
साल 2000 में सत्ता में आते ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने देश की कमजोर स्थिति को लेकर दुख जाहिर किया था। उनके नेतृत्व में रूस एक बार फिर एशिया और अफ्रीका में अपनी खोई हुई शक्ति को दोबारा हासिल करने का प्रयास कर रहा है। तब से लेकर अब तक पुतिन खुद इसके लिए मेहनत कर रहे हैं। उन्हें भारत और चीन के बीच शांति स्थापित करने से एशिया में दोबारा ताकतवर होने का रास्ता दिखाई दे रहा है।
पुतिन का सपना फिर से एक ग्रेटर यूरेशिया बनाना है। उसके जरिये वे रूस की खोई हुई ताकत को वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं। वे रूस को अमेरिका के मुकाबले खड़ा कर किसी भी विवाद का निपटारा करने वाले एक मजबूत देश की छवि का निर्माण कर रहे हैं। अगर वास्तव में रूस की पहल से भारत और चीन के बीच शांति आ जाती है तो इससे एशियाई देशों में पुतिन का प्रभाव बढ़ जाएगा।