Removal of Article 370: जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के तीन साल पूरे होने पर इस्लामिक सहयोग संगठन यानी आर्गनाइजेशन आफ इस्लामिक कोआपरेशन ने भारत सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। कश्मीरी पंडितों, टारगेटेड किलिंग, परिसीमन, पर्यटन समेत तमाम मुद्दों पर जम्मू-कश्मीर लगातार चर्चा में बना हुआ है।
Removal of Article 370: क्या हुआ तेरा वादा?
आईपी न्यूज डेस्क
Removal of Article 370: केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया था। अब इस फैसले के तीन साल पूरे हो गए हैं। केंद्र सरकार ने राज्य को बांटकर दो नए केंद्र शासित प्रदेश बना दिए थे। केंद्र की ओर से तब सुरक्षा, विकास और रोजगार के तमाम वादे किए गए थे।
लद्दाख की बात करें तो करगिल में हिमालय और ट्रांस-हिमालयी अध्ययन केंद्र, जनजातीय अनुसंधान केंद्र स्थापित हो चुके हैं। जैव उर्वरक के वितरण के लिए 64 गांवों का चयन रासायनिक मुक्त गांव के लिए किया गया है। लद्दाख में पांच हजार से अधिक सरकारी पद खाली हैं और जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी की दर 25 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
फिर भी लोग मानते हैं कि सुविधाएं बढ़ीं
दरअसल, लोगों को लगता है कि केंद्र शासित प्रदेश बनने से लद्दाख को काफी फायदा हुआ है। बुनियादी ढांचे के विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए फंड कई गुना बढ़ा है। अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ी हैं और आधुनिकीकरण जारी है। लद्दाख के लिए पहली बार केंद्रीय विश्वविद्यालय, मेडिकल और पैरामेडिकल कॉलेज और 500 बिस्तरों वाले अस्पताल की घोषणा की गई है।
लद्दाख-कश्मीर को जोड़ने वाली रणनीतिक 18 किलोमीटर लंबी जोजिला सुरंग पर काम तेजी से चल रहा है। यह 2024 तक तैयार हो जाएगी। हालांकि, लोग यह भी कहते हैं कि शिक्षा-स्वास्थ्य के अलावा सरकार के बाकी वादे अधूरे ही हैं। पांच हजार 958 करोड़ रुपये के बजट को लद्दाख एक साल में खर्च नहीं कर पाया है। अंतर जिला स्तर पर करगिल और लेह के दोनों नेता लगातार बैठक कर रहे हैं और नए रास्ते पर चल रहे हैं।
बाहरी लोगों से आशंकित हैं लद्दाख के लोग
केडीए के सदस्य सज्जाद कारगिली ने कहा कि सरकार ने हमारी मांगों पर बातचीत करने का वादा किया था, लेकिन इसमें देरी हो रही है। इससे लद्दाख के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। एक विशेषज्ञ ने कहा कि लद्दाख के पास पैसे की कमी नहीं है। विकासात्मक परियोजनाएं, यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज फैंसी चीजें हो सकती हैं।
यदि सब कुछ बाहरी लोग नियंत्रित करते हैं और स्थानीय लोगों के पास कोई अधिकार नहीं होगा, ताे यह चीजें मदद नहीं करेंगी। लोगों को अधिकार दें तो लद्दाख का कायाकल्प हो सकता है। लद्दाख के लोगों के लिए रोजगार की कमी बड़ी चिंता का विषय है।
बहुत से लाेगाें का मानना है कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद उन्होंने नौकरियों, भूमि के स्वामित्व और व्यवसाय समेत सभी क्षेत्रों में सुरक्षा खो दी है। डर है कि बाहरी लोग आएंगे तो नौकरियां, व्यवसाय सब छीन लेंगे। लद्दाख ट्रैवल ट्रेड बॉडीज ने उन 6 व्यावसायिक संपत्तियों के साथ असहयोग करने की घोषणा की, जहां बाहरी लोगों ने निवेश किया है।
इस्लामिक सहयोग संगठन का कश्मीरियों के अधिकारों को समर्थन
उधर, इस्लामिक सहयोग संगठन ने कहा है कि हम कश्मीरी लोगों के आत्म निर्णय के उनके वैध अधिकारों का समर्थन करते हैं और उनके साथ खड़े हैं। कश्मीरी लोगों के बुनियादी मानवाधिकारों के प्रति सम्मान होना चाहिए और एकतरफा ढंग से लिए गए फैसलों को वापस लिया जाना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्तावना के अनुरूप जम्मू कश्मीर विवाद के समाधान के लिए सख्त कदम उठाने की प्रतिबद्धता भी दोहराई गई है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी भारत पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि भारत की अवैध और एकतरफा कार्रवाई का उद्देश्य जम्मू कश्मीर के विवादित मामले की अंतरराष्ट्रीय मान्यता को बदलना और कब्जे वाले कश्मीर की डेमोग्राफिक संरचना में बदलाव करना है। पिछले कुछ दशकों में भारत ने कश्मीरियों के खिलाफ जमकर बल प्रयोग किया। पीढ़ी दर पीढ़ी बहादुर कश्मीरियों ने डर, उत्पीड़न, यातना और मानवाधिकार उल्लंघनों के सबसे खराब स्वरूप का सामना किया है।