Resident doctors strike: इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए? चाहे रेजिडेंट डॉक्टरों की स्ट्राइक हो या नोएडा अथॉरिटी का घेराव अथवा किसान आंदोलन का जोर, लोग हड़ताल के मकड़जाल में बुरी तरह फंस गए हैं। ओमीक्रोन की जो टेंशन है सो अलग।
Resident doctors strike: बैठकों का क्यों नहीं निकलता कोई नतीजा?
श्रीकांत सिंह
Resident doctors strike: हड़ताल अथवा प्रदर्शन कर रहे लोगों का असंतोष दूर करने के लिए बैठकें तो बुलाई जाती हैं। लेकिन उनका कोई नतीजा नहीं निकलता। हड़ताली डॉक्टरों की केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के साथ बैठक तो हुई थी, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। इसी प्रकार किसान आंदोलन को शांत कराने के लिए कई बैठकें हुईं। प्रस्ताव भी भेजे गए, लेकिन हालत यह है कि किसानों का हुजूम एक बार फिर दिल्ली की सीमाओं पर जमा होने लगा है।
नोएडा की बात करें तो किसानों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए सेक्टर छह स्थित नोएडा अथॉरिटी के कार्यालय को घेर रखा है। लोगों का कामकाज प्रभावित हो रहा है। औद्योगिक विकास आयुक्त एवं नोएडा—ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के चेयरमैन संजीव मित्तल से मुलाकात का भी कोई नतीजा नहीं निकला। परिणाम यह हुआ कि सारे काम काज ठप हैं।
किसान और मजदूर नेता राघवेंद्र सिंह का कहना है कि किसी बैठक का कोई नतीजा तभी निकलता है जब सरकार की नीयत साफ हो। लेकिन सरकार तो खुद व्यापारी बन गई है। उसे आम जनता की तकलीफों की परवाह नहीं, वह तो पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के चक्कर में रहती है। तभी तो देश आंदोलन, धरना, प्रदर्शन और हड़ताल के मकड़जाल में फंसा है।
इलाज न मिला तो चली गई महिला की जान
दिल्ली में अस्पतालों के डॉक्टर नीट काउंसलिंग के मुद्दे पर हड़ताल पर हैं। लेकिन उसका बहुत बड़ा खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ा है। इलाज न मिल पाने की वजह से उत्तम नगर की महिला की हालत इतनी बिगड़ गई कि घर लौटते समय उनकी मौत हो गई।
सांस में दिक्कत की वजह से इलाज के लिए सफदरजंग अस्पताल पहुंची महिला मीरा देवी की सांस उखड़ रही थी। सोमवार को दोपहर इमरजेंसी के बाहर मीरा देवी बैठ पाने की भी स्थिति में नहीं थी। वह वहीं जमीन पर लेट गई। मीरा देवी के पति उत्तम कुमार ने इलाज न मिल पाने के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है।
दिल्ली के सुल्तानपुरी निवासी उत्तम ने कहा कि दो दिन पहले पत्नी को महावीर अस्पताल लेकर गए थे। वहां के डॉक्टर ने आरएमएल रेफर कर दिया। आरएमएल के डॉक्टर ने कहा कि बेड नहीं है। फिर हम मरीज को लेकर संजय गांधी गए। वहां के डॉक्टर ने सफदरजंग भेज दिया। रविवार से सफदरजंग में थी। लेकिन, यहां पर कोई इलाज ही नहीं हो रहा है। मेरे सामने कई मरीजों ने दम तोड़ दिया था।
रेजिडेंट डॉक्टरों की स्ट्राइक की वजह से अस्पताल में मरीज परेशान रहे। दर्जनों लोग इलाज के लिए भटकते रहे। मीरा देवी को डॉक्टरों की इस स्ट्राइक की कीमत अपनी जान से चुकानी पड़ी।
क्यों स्ट्राइक पर हैं रेजीडेंट डॉक्टर?
दरअसल, डॉक्टर काम के दबाव को कम करने के लिए जल्दी नीट काउंसलिंग चाहते हैं। और नीट काउंसलिंग में देरी के विरोध में वे अनिश्चितकालीन स्ट्राइक पर चले गए। रेजिडेंट डॉक्टरों ने सोमवार को सफदरजंग अस्पताल में इमरजेंसी का भी बहिष्कार कर दिया था। इस वजह से अस्पताल में इमरजेंसी के अंदर इलाज नहीं मिल पा रहा था। सफदरजंग अस्पताल एक ऐसा सेंटर है जहां पर नो रेफरल पॉलिसी है।
इस वजह से दिल्ली एनसीआर से अधिकतर इमरजेंसी मरीज यहीं पर आते हैं, क्योंकि यहां पर इमरजेंसी में उन्हें कुछ न कुछ इलाज मिल ही जाता है। लेकिन, सोमवार को अस्पताल के 1800 से अधिक रेजिडेंट डॉक्टरों ने काम नहीं किया। इस वजह से इमरजेंसी में मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा था।
नोएडा अथॉरिटी का क्या है मसला?
भारतीय किसान परिषद की अगुआई में किसान सेक्टर छह स्थित नोएडा अथॉरिटी के कार्यालय परिसर में धरना दे रहे हैं। प्राधिकरण का कहना है कि किसानों की कुछ मांगें मान ली गई हैं। कुछ ऐसी मांगें हैं जो नहीं मानी जा सकतीं। इसमें ‘जहां है..जैसी है’ के आधार प्राधिकरण जमीन नहीं छोड़ सकता।
प्राधिकरण के ओएसडी अविनाश त्रिपाठी के मुताबिक, किसानों की ओर से गांवों में 25 मीटर तक ऊंचाई की इमारत बनाने की अनुमति देने की मांग की जा रही है। इसे प्राधिकरण नहीं मान सकता। इतनी ऊंचाई की इमारत बनाने से पहले संसाधनों पर भी गौर करना होगा, जो संभव ही नहीं है।
किसानों की ओर से घर बनाने के लिए नक्शे पास कराने से छूट मांगी जा रही है। इन सभी मांगों पर शासन स्तर से ही निर्णय संभव है। प्राधिकरण अपने स्तर पर किसी तरह की छूट नहीं दे सकता। आबादी विनियमितीकरण को लेकर एजेंसी का चयन किया जा रहा है।
यह एजेंसी उन किसानों को हक जरूर दिलाएगी जो पात्र हैं। एजेंसी के सर्वे के आधार पर किसानों को जमीन मिलेगी। प्राधिकरण की ओर से किसानों को लगातार सहूलियतें दी जा रही हैं। इसमें किसान सहायता प्रकोष्ठ, बेटियों को हक सहित कई सुविधाएं हैं। लेकिन किसान वार्ता के बावजूद प्रदर्शन कर रहे हैं।
एमएसपी समेत छह मांगों के लिए आंदोलनरत किसानों से वार्ता नहीं
किसान आंदोलन को एक साल से अधिक हो गए हैं। लेकिन तीनों खेती कानून वापस ले लिए जाने के बावजूद किसानों का असंतोष दूर नहीं हुआ है। अब किसान एमएसपी समेत छह मांगों के समर्थन में एक बार फिर दिल्ली की सीमाओं पर एकत्र हो रहे हैं।
सरकार के प्रस्ताव के अनुरूप संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से पांच सदस्यीय कमेटी बनाई गई। उसके सदस्यों की सूची भी सरकार को भेज दी गई। लेकिन अब सरकार बात करने को ही राजी नहीं है। इस प्रकार किसान आंदोलन के भी संदर्भ में गतिरोध बना हुआ है।