सत्य ऋषि
आप जान चुके हैं कि सत्य की खोज सबसे पहले ऋग्वेद के ऋषियों ने की। इसलिए यह हिंदू धर्म के ज्ञान का भंडार है। इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त और 10 हजार 627 मन्त्र हैं। मन्त्र संख्या के विषय में विद्वानों में कुछ मतभेद है। मंत्रों में देवताओं की स्तुति की गई है। देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिए भी मन्त्र हैं। यही प्रथम वेद है।
ऋग्वेद को इतिहासकार हिंद-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचना मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में है जिसकी मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिंदू धर्म ग्रंथ है।
ऋक् संहिता में 10 मंडल, बालखिल्य सहित 1028 सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है। उसमें एकदैवत्व और एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्यु निवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (7/59/12) वर्णित है। इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत और हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है और मृत्यु दूर हो जाती है। यह मंत्र सभी प्रकार के सुख प्रदान करता है।
विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ. 3/62/10) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सूक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ. 10/137/1-7), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ.10/129/1-7) और हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ.10/121/1-10) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ. 10/85/1-47) वर्णित हैं। इनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष भी है।
इस ग्रंथ को इतिहास की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रचना माना गया है। ईरानी अवेस्ता की गाथाएं ऋग्वेद के श्लोकों के जैसे स्वरों में हैं। उसमें कुछ विविध हिंदू देवताओं जैसे अग्नि, वायु, जल, सोम आदि का वर्णन है।
दरअसल, ऋग्वेद से ही अन्य तीन वेदों की रचना हुई है। ऋग, यजु, साम और अथर्व ये चार वेद हैं। ऋग्वेद पद्यात्मक है, यजुर्वेद गद्यमय है और सामवेद गीतात्मक है। ऋग्वेद दुनिया का प्रथम ग्रंथ और धर्मग्रंथ है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की लगभग 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। ऋग्वेद की रचना सप्त-सैंधव प्रदेश में हुई थी।
ऋग्वेद के मन्त्रों या ऋचाओं की रचना किसी एक ऋषि ने एक निश्चित अवधि में नहीं की। विभिन्न काल में विभिन्न ऋषियों ने इनकी रचना की और उन्हें संकलित कर लिया गया। इसमें आर्यों की राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के विषय में भी जानकारी प्राप्त होती है।
इसमें भौगोलिक स्थिति और देवताओं के आवाहन के मंत्रों के साथ बहुत कुछ है। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियां और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन से चिकित्सा का आदि की भी जानकारी मिलती है। ऋग्वेद में च्यवन ऋषि को पुनः युवा करने की कथा भी मिलती है। ऋग्वेद में यातुधानों को यज्ञों में बाधा डालने वाला और पवित्र आत्माओं को कष्ट पहुंचाने वाला कहा गया है।
ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान ऋग्वेद सबसे पहला वेद है जो पद्यात्मक है। इसमें सब कुछ है। यह अपने आप में एक संपूर्ण वेद है। ऋग्वेद अर्थात् ऐसा ज्ञान, जो ऋचाओं में बद्ध हो। इसका नवां मंडल सोम संबंधी आठों मंडलों के सूक्तों का संग्रह है। इसमें नवीन सूक्तों की रचना नहीं है।
दसवें मंडल में प्रथम मंडल की सूक्त संख्याओं को ही बनाए रखा गया है, लेकिन इस मंडल में सभी परिवर्तीकरण की रचनाएं हैं। दसवें मंडल में औषधि सूक्त यानी दवाओं का जिक्र मिलता है। इसमें औषधियों की संख्या 125 बताई गई है, जो कि 107 स्थानों पर पाई जाती है।
औषधि में सोम का विशेष वर्णन है। ऋग्वेद में कई ऋषियों ने विभिन्न छंदों में 400 स्तुतियां या ऋचाएं लिखी हैं। ये स्तुतियां अग्नि, वायु, वरुण, इन्द्र, विश्वदेव, मरुत, प्रजापति, सूर्य, उषा, पूषा, रुद्र, सविता आदि देवताओं को समर्पित हैं।
ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के रचयिता अनेक ऋषि हैं जबकि द्वितीय के गृत्समय, तृतीय के विश्वासमित्र, चतुर्थ के वामदेव, पंचम के अत्रि, षष्ठम् के भारद्वाज, सप्तम के वशिष्ठ, अष्ठम के कण्व व अंगिरा, नवम् और दशम मंडल के अनेक ऋषि हुए हैं।