हिंदी की वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया का मानना है कि यह कहानी के अवसान और उपन्यास के उत्थान का वक्त है। चेतन भगत ने जिस तरह अपने अनुभवों को अंग्रेजी साहित्य में उतारा है, हिंदी साहित्य को भी उसी प्रकार के लेखक का इंतजार है। इसलिए साहित्य की दिशा अनुभवों पर आधारित होनी चाहिए।
ममता कालिया ने कहा था कि अंग्रेजी में चेतन भगत ने लोगों को लेकर लिखा और उन्हें लोगों ने खूब सराहा। इसी तरह के युवा लेखक हिंदी को समृद्ध कर सकते हैं। उन्हें प्रचलित परिपाटी के बजाय अपने अनुभवों को लिखना चाहिए ताकि उनकी रचना के कई संस्करण प्रकाशित हो सकें।
उन्होंने कहा था कि इस वक्त कहानी दो दिशाओं की तरफ जा रही है। एक तरफ सामाजिक प्रगति की दिशा पर जा रही है तो दूसरी तरफ युवा रचनाकार हैं जो अपने आप में सिमटे लगते हैं। ऐसा लगता है कि कुछ युवा लेखक दिग्भ्रमित हैं, जिससे उनकी कहानी एकांतवादी हो जाती है। ऐसे रचनाकार कहानी को मानसिक धर्म में डाल देते हैं और केवल अपनी बात करते रहते हैं। स्वयं के अंतर्मन तक सिमटे रहने के कारण कहानी जैसी विधा का अपव्यय हो रहा है।
ममता जी ने कहा था कि सूचना और प्रौद्योगिकी के कारण समाज में आत्म केंद्रित दृढ़ता की प्रवृत्ति बढ़ी है और इसे एक दूसरे को अनदेखा करने का बहाना बनाया जा रहा है। कई दफा विवादों से बचने के लिए कहानीकार अहम मुद्दों को छूना नहीं चाहते हैं।
उनके मुताबिक, नई कहानी के आंदोलन के दौरान लिखी गई कहानियां इसकी प्रगति में मील का पत्थर साबित हुई हैं, जहां तक लंबी कहानी की बात है तो कहानी निश्चित पृष्ठ संख्या में समाप्त हो जानी चाहिए। उनके अनुसार महानगरों के बजाय छोटे शहरों में लोगों के पास अपने अंदर झांकने का वक्त होता है, जिसमें सृजन के प्रति समर्पण होता है।
इलाहाबाद जैसे शहरों में लोगों को अपने जीवन से अधिक उम्मीद नहीं रहती। वहां आर्थिक चुनौतियां नहीं हैं, लेकिन सृजनात्मक चुनौतियां हैं। महानगरों में लोगों की अपने जीवन से उम्मीदें बढ़ जाती हैं और जीवन की कशमकश में व्यक्ति की सृजनात्मकता का पहलू पीछे छूट जाता है।
उन्होंने कहा था कि युवाओं का पलायन बेहतर जीवन की तलाश में नहीं, जीविका की तलाश में महानगरों की तरफ हो रहा है। पेशेगत मजबूरियों के कारण वे अंधी दौड़ में फंस जाते हैं और रचनात्मकता से दूर होते जाते हैं। महानगरों के जीवन का हिस्सा बने छोटे शहरों के युवाओं के पास अनुभव का विस्तृत संसार होता है और जब कभी ऐसे युवा अपने अनुभवों को कागज पर उतार देंगे तो बेहतरीन लिख पाएंगे।
ममता कालिया हिंदी नई कहानी आंदोलन का हिस्सा रही हैं। अंग्रेजी में भी उनका लेखन सराहा गया है। उनको रोजमर्रा के जीवन में स्त्री संघर्ष को अपने लेखन में उतारने के लिए जाना जाता है। उनके अनुसार, साहित्य में स्त्री विमर्श को हाशिये पर समेट दिया गया है, जिसके बारे में गंभीर विचार-विमर्श का अभाव दिखाई देता है।