Sarhasa: ब्रिटिश काल में एक छोटे प्रशासनिक केंद्र के रूप में स्थापित यह शहर आजादी के बाद बिहार की कोशी कमिश्नरी का मुख्यालय बन गया। सिंदरी से सहरसा के सफर पर आधारित एक संस्मरण, जो आपको कहीं खो जाने के लिए मजबूर कर देता है।
Sarhasa: आजादी के बाद यह शहर बिहार के कोशी कमिश्नरी का मुख्यालय बन गया
Sarhasa: हमलोग 1980 में सहरसा आए और अब यह शहर काफी बदल गया है। पिछले साल जाड़े में मां की पेंशन के काम से जब मैं सहरसा गया। तो इस शहर को मैंने काफी बदला हुआ पाया। ब्रिटिश काल में एक छोटे प्रशासनिक केंद्र के रूप में स्थापित यह शहर आजादी के बाद बिहार के कोशी कमिश्नरी का मुख्यालय बन गया।
और इस दौरान इस शहर के नए बाहरी इलाकों के खेतों में अनेक सरकारी आफिस, दफ्तर, अस्पताल, जेल, स्टेडियम और स्कूल कालेज स्थापित हुए। आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से आकर भी लोग बसने लगे। लेकिन शहर की यह भूमि बरसात में बारिश के पानी से भर जाती थी।
बिहार सरकार के नगर विकास विभाग ने यहां कुछ साल पहले बड़े पैमाने पर मिट्टी भरवा कर कमोबेश शहर के सरकारी क्षेत्र को अब काफी हद तक समतल बना दिया है। दिन के बारह बजे के आसपास सहरसा पहुंचने के बाद शाम तक मैं दिन भर वहां कलक्टर के दफ्तर में ही भटकता रहा।
परिवार की स्मृतियां
मेरे पिता यहां डिप्टी कलक्टर थे। और मैं मां की पेंशन के पुनरीक्षण से संबंधित काम के लिए वहां गया था। लेकिन यह काम अधूरा पड़ा था और पटना के महालेखाकार परीक्षक कार्यालय को मेरे पिता के इस पुराने दफ्तर से उनकी सेवा के पुराने रिकार्ड नहीं उपलब्ध कराए जा रहे थे। सहरसा के कलेक्ट्रेरियट से वे शायद 1990 में सेवानिवृत्त हुए थे।
सिंदरी से सहरसा आना मेरे जीवन का यादगार अनुभव था। और कई तरह से इस शहर को देख कर मेरा मन आज भी अभिभूत हो जाता है। यहां का परिवेश अद्भुत रूप से बेहद आत्मीय था। और सहरसा के जिला स्कूल में छठी कक्षा में पिताजी ने मेरा नाम लिखवाया। और दसवीं कक्षा तक इस स्कूल में मेरी पढ़ाई पूरी हुई। यह एक सुंदर स्कूल था। हम लोग यहां गंगजला मुहल्ले में रहते थे।
सहरसा एक बड़ा शहर था। और अब यह शहर बड़ी रेल लाइन से जुड़ गया है। लेकिन उस समय बरौनी से छोटी लाइन की रेलगाड़ी से लोगों का यहां आना होता था। गंगजला वाले मकान से एक-डेढ़ साल के बाद हम लोग पुरानी जेल के पास बने मकान में रहने चले आए थे। और शहर के इस हिस्से में मैं 1988 में दिल्ली जाने तक रहा।
जब चौधरी चरण सिंह विमान से उतरे
Sarhasa: सहरसा में मैंने एक बार वहां के हवाई अड्डे पर एक छोटे से चार्टर्ड विमान से पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को विमान के रुकने के बाद बाहर खड़े लोगों का अभिवादन करते देखा था। शायद वह छुट्टी का कोई दिन था।
और मैं लोकदल के किसी स्थानीय नेता के पुत्र के साथ चौधरी साहब की पार्टी के कार्यकर्ता के तौर पर गया था। चौधरी चरण सिंह काफी वृद्ध दिखाई दे रहे थे। और विमान से उतरने से पहले हाथ जोड़ कर उन्होंने उपस्थित जनसमूह का अभिवादन किया था।
बिहार में उस समय कांग्रेस पार्टी का शासन था। और जगन्नाथ मिश्रा मुख्यमंत्री थे। सहरसा कालेज के मैदान में एक बार उनकी जनसभा में भी मैं शामिल हुआ था। और थोड़ी देर तक भाषण सुनने के बाद फिर घर चला आया था।
इंदिरा गांधी के देहांत के बाद …
इंदिरा गांधी के देहांत के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जो चुनाव लड़ा। उसमें सहरसा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में राजीव गांधी की विशाल रैली पटेल मैदान में हुई थी।
और इस रैली में उत्सुकतावश मैं भी शामिल हुआ था। राजीव गांधी का व्यक्तित्व आकर्षक था। और इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चन्द्रकिशोर पाठक ने बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन को भारी मतों से हराया था। और देश के हर हिस्से में कांग्रेस को इस चुनाव में इसी प्रकार की जीत हासिल हुई थी।
मिथिलांचल की सीमारेखा में सहरसा जिले को भी शामिल किया जाता है। और यहां मैथिली का प्रचलन है। सहरसा के पास ही महिषी स्थित है। यह एक पुराना गांव है। और इसकी पहचान प्राचीन महिष्मती के तौर पर होती है।
शंकराचार्य का शास्त्रार्थ
जनश्रुति के अनुसार, यहां शंकराचार्य का शास्त्रार्थ मंडन मिश्र और उनकी धर्मपत्नी भारती से हुआ था। और इसमें भारती ने शंकराचार्य को हरा दिया था। इस प्रकार भारती एक विदुषी नारी थीं। और मिथिला की संस्कृति की ज्ञान गरिमा के प्रतीक के रूप में उन्हें देखा जाता है।
महिषी में उग्रतारा देवी का मंदिर प्रसिद्ध है। और इसे शक्तिपीठ माना जाता है। अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ एक बार मैं भी महिषी गया था। इसके पास ही वनगांव स्थित है। और प्रसिद्ध सिद्ध संत लक्ष्मीनाथ गोसाई इसी गांव के निवासी थे। यहां उनकी कुटिया स्थित है। इसके पास कन्दाहा में प्राचीन सूर्य मंदिर के अवशेष मिले हैं।
कोशी के तटबंध
Sarhasa: सहरसा बिहार का पिछड़ा जिला है। और कोशी नदी की बाढ़ की विभीषिका से यहां के दूरदराज के इलाके त्रस्त रहे हैं। आजादी के बाद यहां वीरपुर में कोशी नदी पर बांध बनने के बाद इस जिले को बाढ़ और इससे जनित समस्याओं से मुक्ति मिली। लेकिन वह स्थायी सिद्ध नहीं हो पाई।
कोशी के तटबंध के टूटने से अब फिर बाढ़ की समस्या से यह जिला बरसात में घिरने लगा है। कुछ साल पहले मानसी-सहरसा रेलखंड के विकास से इस शहर का देश के दूरदराज के नगरों से अब सीधा सम्पर्क भी कायम हो गया है। और डुमरीघाट पुल के बन जाने से पटना-सहरसा सड़क यात्रा भी सुगम हो गई है।