सत्य ऋषि
अब विरोधी भी सत्यार्थ प्रकाश के प्रभाव को स्वीकार करके अन्धविश्वास से मुक्ति पा रहे हैं। ऐसे लोगों की अब भी कमी नहीं है, जो सत्यार्थ प्रकाश से प्रकाश भी पा रहे हैं और इसकी आलोचना भी कर रहे हैं। वे गुड़ का स्वाद भी लेते हैं और गन्ने को गालियां भी देते हैं।
पुराण बाइबिल व कुरान के ऐसे प्रसंगों की व्याख्याएं ही बदल गई हैं। अब रोगियों को चंगा करने का अर्थ मानसिक और आध्यात्मिक रोगों को दूर करना हो गया है। मृतकों को जिलाने का अर्थ नैतिक मृत्यु से बचाना है। यह व्याख्या कैसे सूझी? इन धर्म ग्रंथों के भाष्य बदल गए हैं।
सत्य असत्य की कसौटी
पहले धर्म की सच्चाई की कसौटी चमत्कारों को माना जाता था। आज है कोई जो कुमारी मरियम से ईसा की उत्पत्ति को इसाई मत की सचाई का प्रबल प्रमाण मानता हो? कौन है जो पुराणों की असंभव बातों को संभव व सत्य मानता हो? कौन है जो बुराक पर सवार होकर पैगम्बर मुहम्मद की आसमानी यात्रा को सत्य मानता हो? मुसलमानों के नेता सर सैयद अहमद खां ने बड़ी निर्भीकता से इन गप्पों को झुठलाया है।
लोगों का ध्यान नहीं गया
सत्यार्थ प्रकाश ने भारतीय जनमानस में मातृभूमि का प्यार जगाया। जन्म भूमि व पूर्वजों के प्रति आस्था पैदा की। जातीय स्वाभिमान को पैदा किया। एकादश समुल्लास की अनुभूमिका ने भारतीयों की हीन भावना को भगाया। सत्यार्थ प्रकाश की इसी अनुभूमिका का प्रभाव था कि आर्य लोग गाया करते थे।
कभी हम बुलन्द इकबाल थे तुम्हें याद हो कि न याद हो
हर फेन में रखते कमाल थे तुम्हें याद हो या न याद हो
सत्यार्थ प्रकाश ने देशवासियों को स्वराज्य का मंत्र दिया। इनके अतिरिक्त सत्यार्थ प्रकाश में वर्णित कुछ वाक्यों व विचारों की मौलिकता व महत्व को विचारकों ने जाना व माना परन्तु उनका व्यापक प्रचार नहीं किया गया। इन्हें हम संक्षेप में यहां देते हैं।
निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का सिद्धांत
ऋषि दयानन्द आधुनिक विश्व के प्रथम विचारक हैं जिन्होंने सत्यार्थ प्रकाश में सबके लिए अनिवार्य व निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का सिद्धांत रखा। उनके एक प्रमुख शिष्य स्वामी दर्शनानंद जी ने भारत में सबसे पहले निःशुल्क शिक्षा प्रणाली का प्रयोग किया।
ऋषि ने सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि कृषक व श्रमिक आदि राजाओं के राजा हैं। कृषकों व श्रमिकों का समाज में सम्मानजनक स्थान है। इस युग में ऐसी घोषणा करने वाले पहले धर्म गुरु ऋषि दयानन्द ही थे।
ऋषि ने अपने सत्यार्थ प्रकाश के 13वें समुल्लास में लिखा है कि यदि कोई गोरा किसी काले को मार देता है तो भी पक्षपात करते हुए न्यायालय उसे दोषमुक्त करके छोड़ देता है। इसाई मत की समीक्षा करते हुए ऐसा लिखा गया है। यह महर्षि की निर्भीकता व सत्य वादिता एवं प्रखर देशभक्ति का एक प्रमाण है।
बीसवीं शताब्दी में आरंभिक वर्षों में मद्रास कोलकाता व रावलपिंडी आदि नगरों में ऐसी घटनाएं घटती रहती थीं मरने वालों के लिए कोई बोलता ही नहीं था। प्रथम विश्व युद्ध तक गांधी जी भी अंग्रेज जाति की न्याय प्रियता में अडिग आस्था रखते हुए अंग्रेजी न्याय पालिका का गुणगान करते थे।
महर्षि दयानन्द प्रथम भारतीय महापुरुष हैं जिन्होंने विदेशी शासकों की न्याय पालिका का खुलकर अपमान किया। ऋषि ने विदेशियों की लूट खसोट व देश की कंगाली पर तो इस ग्रन्थ में कई बार खून के आंसू बहाए हैं।
सत्यार्थ प्रकाश के तेरहवें समुल्लास में ही इसाई मत की समीक्षा करते हुए लिखा है कि तभी तो ये इसाई लोग दूसरों के धन पर ऐसे टूटते हैं जैसे प्यासा जल पर व भूखा अन्न पर। ऐसी निर्भीकता का हमारे देश के आधुनिक इतिहास में कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता।