
सी एस राजपूत
नई दिल्ली। आजकल सहारा के चैयरमैन सुब्रत राय फिर चर्चा में हैं। चर्चा का कारण वही निवेशकों से ठगी बताया जा रहा है। सहारा पर निवेशकों से उगाही के जरिये 86 हजार 673 करोड़ रुपये ठगे जाने की आशंका व्यक्त की गई है। हाल ही में सहारा के लखनऊ स्थित मुख्यालय पर केंद्र सरकार की एक एजेंसी ने छापा मारा था। इस एजेंसी का नाम सीरियस फ्राड इनवेस्टिगेशन आफिस (एसएफआईओ) बताया जा रहा है।
कारपोरेट मंत्रालय को सेंट्रल रजिस्ट्रार ने एक पत्र लिखा था। ऐसा दर्शाया जा रहा है कि जैसे केंद्र सरकार सहारा के चैयरमैन पर शिकंजा कस रही है। क्या मोदी सरकार निवेशकों से ठगे गए पैसों को दिलवाने या उनकी सुरक्षा के प्रति वास्तव में ही गंभीर है?
प्रश्न उठता है कि जिस सरकार ने मजीठिया वेज बोर्ड अवमानना मामले में सुब्रत राय को राहत दिलवाई हो। जिस सरकार के संरक्षण में सुब्रत राय चार साल से तिहाड़ जेल से पैरोल पर बाहर घूम रहे हों। जिस सरकार के विधायक समय समय पर सहारा परिसर में देखे जाते हों। जिस सुब्रत राय ने अपना नाम आने पर मोदी सरकार से सांठगांठ से नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज बैड बॉय बिलियनेयर्स को कोर्ट से रुकवा दिया हो। क्या उस सुब्रत राय पर मोदी सरकार शिकंजा कसेगी?
दरअसल, यह सब बिहार चुनाव जीतने के लिए किया जा रहा है। बेरोजगारी के अलावा कोरोना वायरस से जो दुर्दशा प्रवासी बिहारियों को हुई है, उसके चलते बिहार के लोग नीतीश कुमार की अगुआई में एनडीए सरकार से बहुत नाराज हैं। वैसे भी नीतीश कुमार ने प्रवासी बिहारियों को वापस बुलाने में असमर्थता जाहिर कर दी थी।
बाढ़ से राहत न मिलना नाराजगी का और बड़ा कारण है। बिहार के लोग बड़े जागरूक माने जाते हैं। बदलाव करने में बिहारी पहली पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं। उधर, राजद नेता तेजस्वी यादव का नीतीश सरकार की विफलता को लेकर बनाया गया माहौल अलग से है। उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश सरकार के खिलाफ हैं। ऐसे में जब बिहार की एनडीए सरकार चारों ओर से घिरी है तो भावनात्मक मुद्दों को भुनाने कवायद जारी है।
दरअसल, सहारा की बिहार में सबसे अधिक देनदारी है। बिहार में निवेशकों और एजेंटों का आंदोलन लगातार चल रहा है। बिहार की राजधानी पटना और विभिन्न जिलों में सहारा के निवेशक और एजेंट देनदारी को लेकर आए दिन सड़कों पर उतरते रहते हैं। बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी सहारा पर शिकंजा कसने की बात कर चुके हैं। हालांकि नीतीश सरकार ने किया कुछ नहीं है।
विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनाकर बिहार के निवेशकों और एजेंटों की नाराजगी को भुनाया जा सकता है। उसकी तैयारी एनडीए ने शुरू कर दी है। सहारा पर शिकंजा कसने के दिखावे की शुरुआत उत्तर प्रदेश से करने का भी बड़ा कारण है। इससे एनडीए को दोहरा फायदा दिखाई दे रहा है। एक तो सहारा का मुख्यालय लखनऊ में होने की वजह से जनता में अच्छा संदेश जाएगा। दूसरा 2022 के विधानसभा चुनाव में भी सहारा की घेरेबंदी का फायदा एनडीए की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को मिल सकता है।
दरअसल, सुब्रत राय और सपा के संरक्षक मुलायम सिंह के संबंध बड़े प्रगाढ़ रहे हैं। आज की तारीख में उत्तर प्रदेश में सपा मुख्य विपक्षी पार्टी है और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी। खबर यह निकल कर आ रही है कि मोदी सरकार ने सहारा को एक्सपोज करने के लिए अपनी टीम लगा दी है। इंडियन एक्सप्रेस के लगातार खबरें प्रकाशित करने की बात सामने आ रही है।
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खुश्बू नारायण की रिपोर्ट में बताया गया है कि सहारा समूह ने 2012 और 2014 के बीच तीन कोआपरेटिव सोसाइटीज को लांच कर चार करोड़ जमाकर्ताओं से 86 हजार 673 करोड़ रुपये जमा किए। ये वही वक्त है जब सुब्रत राय अरेस्ट हुए थे और सहारा की दो कंपनियां दोषी ठहराई गई थीं। सरकार ने उस दौर में बनाई गई कोआपरेटिव सोसाइटीज के कामकाज को टारगेट किया है।
अब जमाकर्ताओं के हजारों करोड़ रुपये को महाराष्ट्र के लोनावाला में एंबी वैली प्रोजेक्ट में डाल देने की बात कही जा रही है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि इस प्रोजेक्ट पर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक भी लगाई और प्रोजेक्ट की नीलामी की भी कई बार कोशिश की गई। पर क्या हुआ, वही ढाक के तीन पात। इसी एंबी वैली प्रोजेक्ट में सहारा के 4 करोड़ जमाकर्ताओं के 86 हजार 673 करोड़ रुपये का निवेश करने की बात सामने आ रही है। क्या यह सब मोदी सरकार के रहते हुए नहीं हुआ है?
अब केंद्र सरकार की एजेंसियां जिन चार समितियों सहारा क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, हमारा इंडिया क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, सहारयन यूनिवर्सल मल्टीपरपज सोसायटी लिमिटेड, स्टार्स मल्टीपरपज कोआपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड की जांच कर रही हैं, क्या वे मोदी राज में नहीं बनी हैं? जो लोग सहारा पर कसे जा रहे शिकंजे को सहारा की ठगी के खिलाफ़ कारवाई समझ रहे हों, या फिर जो निवेशक और एजेंट अपने पैसे मिलने की उम्मीद लगाने लगे हों, वे भलीभांति समझ लें कि यह सब बिहार विधानसभा चुनाव के लिए हो रहा है।
सुशांत राजपूत आत्महत्या प्रकरण में भी यही हो रहा है। भले ही सुशांत के परिजनों को इस केस में कोई राहत न मिले पर भाजपा और जदयू सुशांत प्रकरण को बिहार विधानसभा चुनाव में भुनाने का भरपूर प्रयास करेंगी। सुशांत प्रकरण को भुनाने के लिए बाकायदा पोस्टर छपवा लिए गए हैं। वैसे भी इस तरह के मुद्दों को चुनाव में भुनाना भाजपा का पुराना हथकंडा है।
आप हरियाणा विधानसभा चुनाव देख लीजिए। कहां हैं भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, ओमप्रकाश चौटाला, अजय चौटाला के खिलाफ जांच ? ऐसे ही महाराष्ट्र चुनाव में देख लीजिए। कहां हैं शरद पवार के खिलाफ जांच? ऐसे ही उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव देख लीजिए। कहां हैं मायावती, अखिलेश यादव व मुलायम सिंह यादव के खिलाफ जांच?
सुब्रत राय और सुशांत प्रकरण का भी यही हश्र होगा। बिहार के चुनाव खत्म तो जांच खत्म। हां, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में फिर से सुब्रत राय पर शिकंजा कसने का ड्रामा जारी रह सकता है। मोदी सरकार पूंजीपतियों की ठगी पर शिकंजा नहीं कस रही है बल्कि इन्हें तो संरक्षण दे रही है। इसी मोदी सरकार ने अडानी के राजस्व को हजारों करोड़ का चूना लगाने की आडिट रुकवा दी थी। मोदी राज में अडानी की संपत्ति कई गुना बढ़ी है।
कोरोना काल में देश में सब कुछ तबाह हो चुका है। देश में करोड़ों लोग भुखमरी के कगार पर हैं। खुद प्रधानमंत्री 80 करोड़ लोगों को राशन बंटवाने की बात कर रहे हैं। ऐसे में मुकेश अम्बानी के पास इतना पैसा कहां से आ गया कि वह विश्व के चौथे अमीर बन गए। क्या देश में अडानी और अम्बानी के कारोबार की जांच नहीं होनी चाहिए। दिखाने के लिए तो मोदी सरकार इनकी भी जांच करवा देती पर इनकी जांच से चुनावी फायदा होता नहीं दिख रहा है।