भारत के कम्युनिस्टों को इस मामले में ईमानदार कहा जाएगा कि उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था तो उसकी चेतना और उसमें भाग लेने वाली भारत की जनता और नेताओं से भी उनका सरोकार नहीं था। हालांकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने बाद में भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए गांधी और कांग्रेस से माफ़ी मांग ली थी।
लेकिन आज भी ज्यादातर कम्युनिस्ट नेता और बुद्धिजीवी भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अपनी विरोधी भूमिका के पक्ष में अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का तर्क देते पाए जाते हैं। वे 1947 में भारत की आज़ादी को आज़ादी की इच्छा से प्रेरित भारतीय जनता के संघर्ष और कुर्बानियों का परिणाम कम, अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम अधिक मानते हैं।
इस लेख में भारत छोड़ो आंदोलन में भागीदारी करने वाली भारत की जनता की आज़ादी की चेतना पर लोहिया के हवाले से विचार किया गया है। लोहिया ने आज़ादी की चेतना की जगह ‘आज़ादी की इच्छा’ पद का प्रयोग किया है।
विभिन्न स्रोतों से आजादी की जो इच्छा और उसे हासिल करने की जो ताकत भारत में बनी थी, उसका अंतिम प्रदर्शन भारत छोड़ो आंदोलन में हुआ। भारत छोड़ो आंदोलन ने यह बताया कि आजादी की इच्छा में भले ही नेताओं का भी साझा रहा हो, उसे हासिल करने की ताकत निर्णायक रूप से जनता की थी।
यह आंदोलन देश-व्यापी था, जिसमें बड़े पैमाने पर भारत की जनता ने हिस्सेदारी की और अभूतपूर्व साहस और सहनशीलता का परिचय दिया। लोहिया ने रूसी क्रांतिकारी चिंतक लियों ट्राटस्की के हवाले से लिखा है कि “रूस की क्रांति में वहां की महज़ एक प्रतिशत जनता ने हिस्सा लिया, जबकि भारत की (अगस्त) क्रांति में देश के 20 प्रतिशत लोगों ने हिस्सेदारी की।”
8 अगस्त 1942 को ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ; अरुणा आसफ अली ने गोवालिया टैंक मैदान पर तिरंगा फहराया; और 9 अगस्त की रात को कांग्रेस के बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए। नेताओं की गिरफ्तारी के चलते आंदोलन की सुनिश्चित कार्य-योजना नहीं बन पाई थी। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सीएसपी) का अपेक्षाकृत युवा नेतृत्व सक्रिय था, लेकिन उसे भूमिगत रह कर काम करना पड़ रहा था।
ऐसे में जेपी ने क्रांतिकारियों का मार्गदर्शन और हौसला अफजायी करने तथा आंदोलन का चरित्र और तरीका स्पष्ट करने वाले दो लंबे पत्र अज्ञात स्थानों से लिखे। कहा जा सकता है कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जनता खुद अपनी नेता थी।
लोहिया ने भारत छोड़ो आंदोलन की पच्चीसवीं सालगिरह पर लिखा, “नौ अगस्त का दिन जनता की महान घटना है और हमेशा बनी रहेगी। पंद्रह अगस्त राज्य की महान घटना थी। … नौ अगस्त जनता की इस इच्छा की अभिव्यक्ति थी- हमें आजादी चाहिए और हम आजादी लेंगे।
हमारे लंबे इतिहास में पहली बार करोड़ों लोगों ने आजादी की अपनी इच्छा जाहिर की। … बहरहाल, यह 9 अगस्त 1942 की पच्चीसवीं वर्षगांठ है। इसे अच्छे तरीके से मनाया जाना चाहिए। इसकी पचासवीं वर्षगांठ इस प्रकार मनाई जाएगी कि 15 अगस्त भूल जाए, बल्कि 26 जनवरी भी पृष्ठभूमि में चला जाए या उसकी समानता में आए।’’