
Seventh Global Literary Festival: एएएफटी यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. संदीप मारवाह ने कहा है कि भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर दस किलोमीटर में बोली बदलती जाती है। और हर प्रदेश की भाषा बदलती जाती है।
Seventh Global Literary Festival: दस किलोमीटर पर बदल जाती है बोली: मारवाह
इंफोपोस्ट न्यूज
Seventh Global Literary Festival: हम भारत की मातृ भाषा हिंदी को लेते हैं। जैसे कि माँ अपने सारे बच्चों को एक जैसा प्यार करती है। और उसके अंदर हर चीज़ को अपनाने की क्षमता होती है। ठीक उसी प्रकार हिंदी ने भी कई भाषा के शब्दों को इस तरह अपनाया है कि वो शब्द हिंदी के ही लगते हैं।
हिंदी दिवस पर मैं पूरे देशवासियों को मुबारकबाद देना चाहूंगा और साथ ही कहना चाहूंगा कि ज्यादा से ज्यादा हिंदी भाषा का प्रयोग करें। यह कहना था एएएफटी यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. संदीप मारवाह का जो सातवें ग्लोबल लिटरेरी फेस्टिवल नोएडा का वर्चुअल आयोजन कर रहे हैं।
देश विदेश की जानी मानी हस्तियों की मौजूदगी
कार्यक्रम में देश विदेश की जानी मानी हस्तियां कंबोडिया के राजदूत सिन युंग, भारत के आयरलैंड में राजदूत अखिलेश मिश्रा, शोभित यूनिवर्सिटी के चांसलर कुंवर शेखर विजेंद्र, लेखक अशोक अरोड़ा और अशोक कुमार शर्मा ने भाग लिया।
सिन युंग ने कहा कि कोविड ने हम सबको बदल कर रख दिया है। आज हम डिजिटल ज़िंदगी जी रहे हैं। और दूरी बनाकर भी एक साथ हैं। जहां तक भाषा का सवाल है, हम सब अपनी भाषा से अपने देश से प्रेम करते हैं। और मैं कहना चाहूंगा कि न सिर्फ अपनी भाषा का सम्मान करें बल्कि अन्य भाषाओं को सीखें भी।
विचारों की संवाहिनी और प्राणशक्ति
अखिलेश मिश्रा ने कहा कि भारतीय संस्कृति में चिंतन, दर्शन, परंपरा में वाणी, भाषा, शब्द व अक्षर केवल संवाद और विचारों के सम्प्रेक्षण मात्र नहीं हैं। बल्कि, यह विचारों की संवाहिनी भी है और प्राणशक्ति भी।
कुंवर शेखर विजेंद्र ने कहा, हमें अपनी भाषा को जीवित रखना है तो उसे मात्र हिंदी दिवस के रूप में न मनाकर उसे अपनाना ज़रूरी है। आज मैं युवाओं को देखता हूँ तो लगता है कि उन्होंने हिंदी की जगह इंग्लिश को पूर्णतः अपना लिया है जोकि गलत है।
जिन्होंने असंख्य शब्द हिंदी को दिए
अपनी भाषा का सम्मान उतना ही ज़रूरी है जितना आपके गुरुजन का सम्मान। लेखक अशोक अरोड़ा ने कहा कि इस तरह के फेस्टिवल होते रहने चाहिए। जिससे लोगों को पता चले कि हमारी भाषा हिंदी इतनी विशाल है कि उसमें एक वाक्य को हज़ारों तरीके से बोला जा सकता है।
और समझने वाला भी हज़ारों तरीक़े से समझ सकता है। हिंदी दिवस पर मैं उन लेखकों को याद करना चाहता हूं जिन्होंने असंख्य शब्द हिंदी को दिए।