
महाराष्ट्र संकट बढ़ता जा रहा है। अब तो शिवसेना काडर भी बाहर निकल आया है। ठीक उसी तरह जैसे कोई भूखा शेर अपनी मांद से शिकार के लिए बाहर निकल आता है। आज चर्चा करेंगे कि महाराष्ट्र में शिवसेना काडर आखिर कर क्या रहा है?
मुंबई की सड़कों पर गरमा गरमी और तोड़फोड़
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। मुंबई की सड़कों पर गरमा गरमी और तोड़फोड़ शुरू हो गई है। इसे आप ठाकरे की सेना का शक्ति प्रदर्शन भी कह सकते हैं। लेकिन इस शक्ति प्रदर्शन से भाजपा के शीर्ष नेताओं ने दूरी बना रखी है। इसलिए बागियों और उद्धव ठाकरे के बीच यह सीधी कशमकश है।
सवाल यह है कि सभी बागी विधायक अभी तक गुवाहाटी में क्यों छिपे हैं? वे मुंबई क्यों नहीं आ रहे हैं, जहां पर सत्ता छीनने की साजिश रची गई? क्या आज का गोदी मीडिया आपको यह जानकारी दे पाएगा?
शिवसेना काडर के डर से घबरा गए थे शिंदे
दरअसल, मुंबई के थाणे में मेयर के आवास पर एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र के शिवसेना विधायकों की एक बैठक बुलाई थी। यह शिवसेना काडर का ही डर था कि शिंदे ने रातोरात विधायकों को लेकर गुजरात के सूरत जाने का फैसला किया। वहां भी शिंदे भयमुक्त नहीं हो सके और विधायकों की पलटन गुवाहाटी के एक होटल में पहुंचा दी गई।
अब शिंदे बागी विधायकों के साथ गुवाहाटी के होटल में छिपे हैं। वह इस परदे से बाहर आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। क्योंकि अब चुनौतियां देने का दौर शुरू हो गया है। संजय राउत ने तो यहां तक कह दिया है कि आप आइए और हमारा सामना कीजिए। शिवसेना प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने भी कहा है कि गुवाहाटी के फाइव स्टार होटल की तस्वीरें छापी जा रही हैं। क्या यही उनका शक्ति प्रदर्शन है?
राउत और प्रियंका की चुनौती हवा हवाई नहीं
संजय राउत और प्रियंका चतुर्वेदी ने जो चुनौती दी है, वह कोई हवा हवाई बात नहीं है। मुंबई में शिवसेना का जो नेटवर्क है, वह बहुत ही सघन और मजबूत है। जब जब शिवसेना का काडर सड़कों पर निकला है, तब तब मुंबई बेकाबू हुई है।
अब शिवसेना काडर जिस तरह से बागियों का घेराव कर रहा है और उनके दफ्तर और पोस्टर को निशाना बना रहा है, उसकी गूंज गुवाहाटी के फाइव स्टार होटल तक पहुंच रही है। कह सकते हैं कि शिंदे गुट राजनीतिक भूकंप का अनुभव कर रहा है।
शिवसैनिकों की काम करने की स्टाइल जग जाहिर
शिवसेना काडर अब अपने पर आ गया है। और बालासाहेब ठाकरे के नाम पर बाहर निकल पड़ा है। पिछले बीस वर्षों से बालासाहेब, शिवसैनिक और शिवसेना को लाठी के बल के लिए जाना जाता रहा है। यह पहचान है। और शिंदे को इसी पहचान का भय है।
यह कहावत पुरानी है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस। आज के संदर्भ में जिसकी लाठी उसकी सरकार। यह लाठी राजनीति के गलियारों में साफ नजर आती है। भाजपा के पास ईडी, सीबीआई और अन्य तमाम सरकारी एजेंसियों की लाठी है तो शिवसेना खुद में एक लाठी है। वैसे, एक लाठी भगवान के पास भी है। तभी तो कहा जाता है कि भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती। यह देखना दिलचस्प रहेगा कि किसके सिर पर किसकी लाठी बजेगी।