
Skandmata: मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। ज्ञान और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। शत्रु और दुर्घटना का भय दूर होता है।
Skandmata: मां दुर्गा की पांचवीं शक्ति स्कंदमाता मूर्ख को भी बना देती हैं विद्वान
उपासना शक्ति
Skandmata: नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। मान्यता है कि मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। जो भक्त सच्चे मन और पूरे विधि-विधान से स्कंदमाता की अराधना करता है, उसे ज्ञान और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
देवी के पांचवें रूप मां स्कंदमाता की पूजा से साधक को दोषों से मुक्ति मिलती है। शत्रु और दुर्घटना का भय दूर होता है। बल और पराक्रम की प्राप्ति होती है। देवी की पूजा से रक्त, निर्बलता, कुष्ठ आदि रोगों में भी लाभ होता है।
उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वाली। कहते हैं कालिदास रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।
भगवान स्कंद यानी कार्तिकेय की माता
Skandmata: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी स्कंदमाता ही हिमालय की पुत्री हैं। इस वजह से इन्हें पार्वती भी कहा जाता है। महादेव की पत्नी होने के कारण इन्हें महेश्वरी भी पुकारते हैं। स्कंदमाता का वर्ण गौर है। इसलिए इन्हें देवी गौरी भी कहा जाता है। भगवान स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा।
स्कंदमाता की आरती
जय तेरी हो स्कंद माता
पांचवा नाम तुम्हारा आता
सब के मन की जानन हारी
जग जननी सब की महतारी
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं
हरदम तुम्हे ध्याता रहूं मैं
कई नामो से तुझे पुकारा
मुझे एक है तेरा सहारा
कहीं पहाड़ों पर है डेरा
कई शहरों में तेरा बसेरा
हर मंदिर में तेरे नजारे गुण गाये
तेरे भगत प्यारे भगति
अपनी मुझे दिला दो शक्ति
मेरी बिगड़ी बना दो
इन्दर आदी देवता मिल सारे
करे पुकार तुम्हारे द्वारे
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये
तुम ही खंडा हाथ उठाये
दासो को सदा बचाने आई
‘चमन’ की आस पुजाने आई
इस मंत्र से लगाएं ध्यान
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
पूजा विधि
नवरात्रि के पांचवें दिन सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब घर के मंदिर या पूजा स्थान पर स्कंदमाता की तस्वीर या प्रतिमा लगाएं। गंगाजल से शुद्धिकरण करें। अब एक कलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्के डालें। अब पूजा का संकल्प लें।
इसके बाद स्कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाएं और नैवेद्य अर्पित करें। अब धूप-दीपक से मां की आरती उतारें। आरती के बाद घर के सभी लोगों को प्रसाद बांटें। और आप भी ग्रहण करें। स्कंद माता को केले का भोग लगाएं। ऐसा करने से मां निरोगी रहने का आशीर्वाद देती हैं।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
स्कंदमाता के विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। स्कंदमाता प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं की सेनापति बनी थीं। इस वजह से पुराणों में स्कंदमाता को कुमार और शक्ति नाम से महिमा का वर्णन है।
इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं। और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।
शास्त्रों में इसका काफी महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रख कर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं होती।