अन्याय के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई में जितना नुकसान मैंने उठाया है, किसी ने सोचा भी न होगा। मुझे साफ दिखाई दे रहा है कि यदि आज हम नुकसान, परेशानी और संघर्ष से डरकर चुप बैठ गए तो आने वाली पीढ़ी को गुलाम बनाने से कोई नहीं रोक सकता है।
राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और निजी संस्थानों में गुलाम बनाने की प्रवत्ति लंबे समय से चल रही है। अब राजनेताओं, ब्यूरोक्रेट्स और पूंजीपतियों ने देश में ऐसा माहौल बना दिया है कि उससे डर कर हम अपने बच्चों को खुद गुलाम बनाने में लग गए हैं।
यदि कोई बच्चा घर, स्कूल या फिर किसी सार्वजनिक स्थान पर अन्याय का विरोध करता है तो हम उसे समझौतावादी बना कर शांत करा देते हैं। बच्चा समझौता कर अंदर से बहुत कमजोर हो जाते हैं। इसका असर यह होता है कि जिस बच्चे का भविष्य हम समझौता करने में सुरक्षित मान कर चल रहे थे वही समझौता एक दिन उसके लिए अभिशाप बन जाता है।
समझौता करने वाले बच्चे थोड़ी सी भी परेशानी में टूट जाते हैं, जिससे वे गलत कदम उठा लेते हैं। गलत बात का विरोध करने वाला बच्चा अंदर से बहुत मजबूत हो जाता है। हर परेशानी उसे मजबूती प्रदान करती है। क्या किसी ने संघर्ष करने वाले व्यक्ति को आत्महत्या करते देखा है? क्या किसी ने व्यवस्था से लड़ने वाले व्यक्ति को बीमार पड़ते देखा है? क्या आजादी की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारी अंग्रेजों की किसी यातना के सामने झुके थे ?
जो लोग ये सोचकर गलत बात सह जाते हैं कि हमने अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ कमाकर रख दिया है, वे समझ लें देश में जो कुछ चल रहा है वह यदि ऐसे ही आगे बढ़ता रहा तो देश में कुछ सुरक्षित नहीं बचेगा। देश में एक अजीब सा माहौल बना दिया गया है। जो व्यक्ति गलत बात का विरोध करे उसे नकारात्मक सोच वाला व्यक्ति करार दे दिया जाता है।
जो व्यक्ति सरकारों की गलत नीतियों के खिलाफ आंदोलन करे उसे देशद्रोही, नक्सली न् जाने क्या क्या कहना शुरू कर दिया जाता है। इस माहौल के लिए न केवल सत्तापक्ष बल्कि विपक्ष औऱ समाज भी जिम्मेदार है।
संविधान की रक्षा के लिए बनाए गए तंत्र सरकार के लिए काम कर रहे हैं। जो लोग मोदी सरकार की मनमानी को अपने हित में समझ रहे हैं वे समझ लें ये सब पूंजीपतियों के भले के लिए हो रहा है। लोगों को कोरोना काल में उलझाकर सरकार निजीकरण करने में लगी है।
यदि लोग अभी भी न संभले तो आने वाले समय में जनता की रक्षा के लिए बनाए गए तंत्र इतने पंगु बना दिए जाएंगे कि निजी संस्थानों में इतना शोषण और दमन होगा कि न कोई आने और जाने का समय होगा। न कोई वेतन का मापदंड। न कोई सुनने वाला होगा न् कोई मदद करने वाला। छोटी सी लालच में अपने बच्चों का भविष्य बर्बाद न करें।
समझौतावादी जिंदगी एक बोझ के समान होती है। बच्चों को निर्भीक और जुझारू बनाना होगा। डरपोक नहीं। निजी स्वार्थ में पड़कर देश और समाज का नुकसान रोकना होगा। यदि अनगिनत परेशानियों को झेलते हुए स्वतंत्रता सेनानी आजादी की लड़ाई को अंजाम न देते तो हम लोग इस खुले आसमान में सांस न ले रहे होते।
तो नई पीढ़ी के लिए गलत को गलत और सही को सही कहना सिखाना होगा। क्रांति जनता से आती है। राजनीतिक दलों या फिर पूंजीपतियों से नहीं। अपने मान सम्मान और अधिकार की लड़ाई के लिए आगे आना होगा। देश में इंक़लाब लाना होगा।