आर के तिवारी
नई दिल्ली। देश भर में कुछ बिल्डर खरीदारों को झांसा देकर मुनाफाखोरी कर रहे हैं, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल इसके खिलाफ आवाज तक नहीं उठा रहा है। कुछ मामले अदालतों में लंबे इंतजार के बाद सुलझ जाते हैं, लेकिन खरीदार को धक्के खाने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसा लगता है कि राजनीतिक दल के नेता चुनाव जीतने के बाद बिल्डर के ही काम में लग जाते हैं और इसे राजनीतिक धंधा बना लेते हैं।
दिल्ली में तमाम ऐसे बिल्डर हैं, जो पैसा लेकर घर दिलाने की बात तो करते हैं, लेकिन समय पर घर उपलब्ध नहीं कराते। पहले घर के नाम पर आधा पैसा ले लेते हैं और बाद में खरीदार को गुमराह करने लगते हैं। लोग पुलिस और नेताओं के पास जाते हैं तो बिल्डर से डील हो जाती है और खरीदार मारा मारा सड़क पर घूमने को मजबूर हो जाता है।
आम आदमी अदालतों का खर्च उठाने में समर्थ नहीं
ऐसा इसलिए है कि निवेशकों की सुरक्षा के लिए पुख्ता व्यवस्था नहीं है। आम आदमी अदालतों का खर्च उठाने में समर्थ नहीं होता है। उसी का फायदा बिल्डर उठाते हैं। उसमें भी आग में घी का काम करते हैं हमारे नेता, जो बिल्डर के साथ खड़े हो जाते हैं।
हरिद्वार के कनखल में बिना नक्शा पास कराए फ्लैट को एचआरडीए से स्वीकृत बताकर बेचने वाले बिल्डर के खिलाफ एक महिला ने मुकदमा दर्ज करा दिया है। एचआरडीए ने पिछले महीने फ्लैट को ध्वस्त कर दिया था। तब महिला को पता चला कि फ्लैट का नक्शा पास नहीं था और बिल्डर ने धोखाधड़ी की है। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है।
कनखल के भारामल बाग पहाड़ी बाजार निवासी दीपरतन कौर ने पुलिस को तहरीर देकर बताया कि 2017 में उन्होंने कृष कॉलोनी में एक फ्लैट खरीदा था। फ्लैट बेचने वाले जैन एसोसिएट्स हजारी बाग कनखल के स्वामी जनक जैन ने उन्हें यह विश्वास दिलाया था कि फ्लैट का नक्शा एचआरडीए से पास है। इसी वर्ष जुलाई में एचआरडीए ने नक्शा पास न होने पर फ्लैट को ध्वस्त कर दिया। बिल्डर ने तथ्य छुपाते हुए धोखाधड़ी की और बिना नक्शा पास हुए फ्लैट उसे बेच दिया।
बिल्डर से 11 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी वसूला जा रहा है
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग यानी नेशनल कंज्यूमर कमीशन एनसीसी ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसमें आठ लाख 20 हजार रुपये का निवेश करने वाले फ्लैट खरीदार को 48 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। मामला नवी मुंबई का है। खरीदार को पिछले 25 वर्षों से बिल्डर फ्लैट पर कब्जा नहीं दे रहा था। बिल्डर से 11 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी वसूला जा रहा है, जो 39 लाख 40 हजार रुपये बनता है।
अपीलकर्ता आर के सिंहल के मुताबिक, आयोग का यह फैसला आने के बाद बिल्डर उन्हें 47 लाख 60 हजार रुपये देगा। अदालत ने बिल्डर को आदेश दिया है कि वह 45 दिनों के अंदर जुर्माने की राशि का भुगतान कर दे, अन्यथा 45 दिन के बाद भुगतान की तिथि तक 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज अतिरिक्त देना होगा।
सिंहल 2015 में सुदृढ़ कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग गए थे, जिसकी सुनवाई के बाद फैसला आया। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने राज्य उपभोक्ता आयोग के एक फैसले पर सहमति जताते हुए सिंहल को फ्लैट के हक से वंचित कर दिया है। यह फ्लैट 2014 में ही बन कर तैयार हो गया था। लेटलतीफी के लिए अदालत ने बिल्डर पर निवेश राशि का छह गुना जुर्माना लगाया है।
कोर्ट के मुताबिक, 2001 में अपीलकर्ता ने सिर्फ अपने मरे हुए पैसे दिलाने की मांग की थी। लेकिन 2015 में उसने फ्लैट पर कब्जा भी दिलाने की मांग की थी। इसी के मद्देनजर दोनों अदालतों ने अपीलकर्ता की फ्लैट पर कब्जा दिलाने की मांग को खारिज कर दिया।