सी.एस.राजपूत।
सीमा पर तनाव हमेशा से ही रहा है। चाहे पाकिस्तान हो या फिर चीन हमारी सेना आजादी के बाद से ही दोनों देशों से जूझती रही है पर किसी सरकार ने सीमा विवाद को राजनीतिक रूप नहीं दिया। मोदी सरकार बार-बार सीमा विवाद को भावनात्मक रूप से भुना रही है।
अब जब एक ओर देश कोरोना के कहर से जूझ रहा तो दूसरी ओर रोजी-रोटी का बड़ा संकट देश के सामने खड़ा हो गया है। आये दिन बेरोजगारी, भुखमरी और पारिवारिक कलह के चलते लोगों के आत्महत्या करने की खबरें आ रही हैं। बड़े स्तर पर लोग पूरे परिवार के साथ आत्महत्या कर ले रहे हैं।
विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे लोग डिप्रेशन में आ रहे हैं। दिल्ली में एक जवान ने अपने सीनियर की हत्या कर खुद आत्महत्या कर ली। गाजियाबाद में एक युवक ने कुल्हाड़ी से काटकर अपनी मां की हत्या कर दी और खुद परिवार वालों के सामने आकर अपना जुर्म कबूल कर लिया। पिछले दिनों दसवीं की छात्रा ने बोर्डिंग स्कूल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। दिल्ली में आर्थिक तंगी से जूझ रहे सिक्योरिटी गार्ड ने अपनी पत्नी के साथ आत्महत्या कर ली थी।
मौतों के बढ़ते आंकड़ों पर चुप्पी
देश में लोग विभिन्न कारणों से जान दे रहे हैं। कोरोना मामले में देश के लोगों को बचाने का दावा करने वाली मोदी सरकार अब संक्रमण के साथ ही मौतों के बढ़ते आंकड़ों पर चुप है। यदि मोदी सरकार इसी तरह से लोगों का ध्यान बांटने के लिए लोगों को अंतरराष्ट्रीय मुद्दों में उलझाए रही तो वह दिन दूर नहीं कि देश में गृह युद्ध छिड़ जाए।
याद रहे कि देश में जातिवाद और धर्मवाद का जहर पहले ही इतना घुल चुका है लोग आपे से बाहर हो गये तो देश को बर्बाद होने से कोई नहीं रोक पाएगा। देश और समाज के संकट के दौर से गुजरने में सबसे उदासीन रवैया लोकतंत्र की रक्षा के लिए बनाए गये तंत्र, न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका के साथ ही मीडिया का है।
युद्ध का राग या धंधा
बुद्धिजीवी भी व्यक्तिगत स्वार्थ देख रहा है। जो लोग युद्ध-युद्ध चिल्ला रहे हैं, उन्हें यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए। ये जितने भी देश हैं, ये सब धंधा कर रहे हैं। इनके धंधे में हथियारों का धंधा प्रमुख है। युद्ध कोई देश नहीं करने जा रहा है। सब जनता का ध्यान बांटने के लिए युद्ध-युद्ध चिल्ला रहे हैं। अमेरिका में चुनाव के कारण वहां के राष्ट्रपति युद्ध का राग ज्यादा अलाप रहे हैं।
देश में सबसे गैर जिम्मेदाराना रवैया वे लोग अपना रहे हैं, जिन्हें पेंशन मिल रही है। वे लोग अपने बच्चों के भविष्य के प्रति बिल्कुल लापरवाही दिखा रहे हैं। जरा सोचिए। देश में नौकरी पेशा लोगों के लिए पेंशन पूरी तरह से बंद कर दी गई है। रोजगार मिलने से तो क्या रहा छीना और जा रहा है। देश के उद्धारक की उपाधि लिये घूम रहे प्रधानमंत्री कर्मचारियों की छंटनी के मामले में चुप्पी साधे बैठे हैं।
जान नहीं सरकार बचाने की फिक्र
सत्तारूढ़ पार्टी का ध्यान लोगों की जान बचाने, बच्चों के भविष्य से ज्यादा सरकार बनाने और गिराने में है। दूसरे दलों को भ्रष्ट बताने वाली भाजपा में इन दलों के जो नेता आकर समर्पण कर रहे हैं तो ये दूध के धुले बन जा रहे हैं। भाजपा के नेता कांग्रेस को गाली देते-देते थकते नहीं है पर मध्य प्रदेश में बिना चुनाव जीते कांग्रेस छोड़कर आये पूर्व विधायकों को भाजपा नेताओं को दरकिनार कर मंत्री बना दिया गया।
सरकार को रोटी से ज्यादा पूजा की है। एक ओर लोग भूखे मर रहे हैं वहीं दूसरी ओर सरकार में बैठे लोग मौज मार रहे हैं। मुट्ठीभर लोग इस व्यवस्था से लड़ रहे हैं। उनके दुश्मन न केवल सत्ता पक्ष में बैठे लोग हैं बल्कि विपक्ष के लोग भी उन्हें नहीं पचा पा रहे हैं। खुद उनके परिवार के लोगों को ये लोग आंखों के किरकिरी बने हुए हैं।
हर ओर गुलामी का आलम
हर ओर गुलामी का आलम है। व्यक्तिगत स्वार्थ आदमी पर इतना हावी हो गया है कि रिश्ते-नाते घर परिवार सब तबाह हो रहे हैं। देश में जरूरत है कि लोग आपस में मिलकर इस व्यवस्था से लड़ें। इतना तो तय है कि सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्ष में बैठे लोगों को देश और समाज की चिंता नहीं है। इन्हें तो बस किसी तरह से सत्ता हासिल कर अय्याशी करनी है।
सबसे अधिक चिंता नई पीढ़ी के लिए है। यदि खड़े होकर इस व्यवस्था को ठीक नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ी पूरी तरह से तबाह हो जाएगी। यदि हम अभी भी न संभले तो वह दिन दूर नहीं कि लोग अपने ही सामने अपने बच्चों को मरते देखेंगे। समय की मांग है कि गुलामी, चाटुकारिता छोड़कर अन्याय का विरोध किया जाए।