
Spying Opponents: आरोप लगाए जा रहे हैं कि सरकार कभी पत्रकारों की पिटाई करा देती है तो कभी उनकी जासूसी में लग जाती है। तभी तो इजरायली स्पाइवेयर पेगासस के जरिये जासूसी का मामला आजकल छाया हुआ है।
Spying Opponents: गृह मंत्री शाह के इस्तीफे और मोदी के खिलाफ जांच की मांग
इंफोपोस्ट डेस्क
नई दिल्ली। Spying Opponents: राहुल गांधी समेत कई अन्य विपक्षी नेताओं, मीडिया समूहों और अलग अलग क्षेत्रों के प्रमुख लोगों की जासूसी की रिपोर्ट आने के बाद कांग्रेस ने गृह मंत्री अमित शाह का इस्तीफा मांगा है। पीएम मोदी के खिलाफ भी जांच की मांग की है। लेकिन सरकार ने एक बार फिर अपना पक्ष सामने रखा है।
सरकार ने कहा है कि देश में फोन सर्विलांस के लिए एक कानून सम्मत सिस्टम है। और सरकार उसी के अनुसार काम करती है। संसद में सरकार का पक्ष रखते हुए केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में ही फोन टैपिंग की अनुमति होती है।
Any form of illegal surveillance isn’t possible with checks & balances in our laws &robust institutions. In India, there’s a well-established procedure through which lawful interception of electronic communication is carried out for purpose of national security: IT Minister in LS pic.twitter.com/KL7mIjIvWe
— ANI (@ANI) July 19, 2021
उन्होंने कहा कि कथित ‘Pegasus Project’ पर सामने आई रिपोर्ट से पता चलता है कि उसमें एक खास अवधारणा के आधार पर काम किया गया है। जिसमें न तो कोई तथ्य है और न लॉजिक। ऐसा लगता है कि देश की छवि को धूमिल करने के इरादे से रिपोर्ट तैयार की गई है।
क्या कहते हैं दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थान
Spying Opponents: लेकिन दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थानों के कंसोर्टियम ने दावा किया है कि विभिन्न सरकारें अपने यहां पत्रकारों और ऐक्टिविस्टों की जासूसी करा रही हैं। रविवार को पब्लिश हुई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत कई देशों में करीब 180 पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और ऐक्टिविस्टों की जासूसी की गई।
इसके लिए इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप के हैकिंग साफ्टवेयर पेगासस का इस्तेमाल किया गया। रिपोर्ट में आशंका जताई गई कि भारत के दो केंद्रीय मंत्रियों, 40 से अधिक पत्रकारों, विपक्ष के तीन नेताओं और एक न्यायाधीश समेत बड़ी संख्या में कारोबारियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के 300 से अधिक मोबाइल नंबरों को हैक किया गया।
पेगासस सॉफ्टवेयर की कार्य प्रणाली
Spying Opponents: पेगासस एक मैलवेयर है जो आईफोन और एंड्रॉइड डिवाइस को हैक कर लेता है। इससे मैलवेयर भेजने वाला शख्स उस फोन में मौजूद मैसेज, फोटो और ईमेल तक को देख सकता है। यह साफ्टवेयर उस फोन पर आ रही कॉल को रिकॉर्ड भी कर सकता है। इस साफ्टवेयर से फोन के माइक को गुप्त रूप से एक्टिव किया जा सकता है।
द वायर समेत 16 मीडिया संगठनों की पड़ताल से पता चलता है कि इज़रायल के एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर से स्वतंत्र पत्रकारों, स्तंभकारों, क्षेत्रीय मीडिया के साथ हिंदुस्तान टाइम्स, द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, द वायर, न्यूज़ 18, इंडिया टुडे, द पायनियर जैसे राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को भी निशाना बनाया गया था।
लीक हुए डेटा की बात
Spying Opponents: लीक डेटा दिखाता है कि भारत में इस संभावित हैकिंग के निशाने पर बड़े मीडिया संस्थानों के पत्रकार, जैसे हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक शिशिर गुप्ता समेत इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस के कई नाम शामिल हैं।
इनमें द वायर के दो संस्थापक संपादकों समेत तीन पत्रकारों, दो नियमित लेखकों के नाम हैं। खोजी पत्रकार रोहिणी सिंह को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह के कारोबार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी कारोबारी निखिल मर्चेंट और प्रभावशाली केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के बिजनेसमैन अजय पिरामल के साथ हुए सौदों की पड़ताल से संबंधित रिपोर्ट लिखने के बाद निशाने पर लिया गया था।
सरकार के लिए मुश्किल बने पत्रकार निशाने पर!
इंडियन एक्सप्रेस में डिप्टी एडिटर सुशांत सिंह को जुलाई 2018 में तब निशाना बनाया गया, जब वह अन्य रिपोर्टों के साथ फ्रांस के साथ हुई विवादित रफ़ाल सौदे को लेकर पड़ताल कर रहे थे।
द गार्जियन, द वाशिंगटन पोस्ट, ल मोंद और सुडडोईच ज़ाईटुंग शामिल ने कम से कम 10 देशों में 1,571 से अधिक नंबरों के मालिकों की स्वतंत्र रूप से पहचान की है। पेगासस की मौजूदगी को जांचने के लिए इन नंबरों से जुड़े फोन के एक छोटे हिस्से की फॉरेंसिक जांच की है।
एनएसओ ने किया दावे को खारिज
एनएसओ ने इस दावे का खंडन किया है कि लीक की गई सूची किसी भी तरह से इसके स्पायवेयर के कामकाज से जुड़ी हुई है। हालांकि, निशाना बनाए गए फोन की फॉरेंसिक जांच में सूची में शामिल कुछ भारतीय नंबरों पर पेगासस स्पायवेयर के इस्तेमाल की पुष्टि हुई है। स्पष्ट किया गया है कि सर्विलांस का यह बेहद अनधिकृत तरीका पत्रकारों और दूसरे लोगों की जासूसी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
वर्ष 2010 में स्थापित एनएसओ ग्रुप को पेगासस के जनक के तौर पर जाना जाता है। पेगासस एक ऐसा स्पायवेयर है, जो इसे संचालित करने वालों को दूर से ही किसी स्मार्टफोन को हैक करने के साथ ही उसके माइक्रोफोन और कैमरा सहित इसके कंटेंट और इस्तेमाल तक पहुंच बना देता है।
किसे बेचा जाता है पेगासस?
कंपनी ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि पेगासस को निजी संस्थाओं या किसी भी सरकार को नहीं बेचा जाता है। असल में द वायर और उसके मीडिया सहयोगियों को लिखे पत्र में भी एनएसओ ने दोहराया कि वह अपने स्पायवेयर को केवल ‘जांची-परखी सरकारों’ को बेचता है।
लेकिन एनएसओ इस बात की पुष्टि नहीं करेगा कि भारत सरकार इसकी ग्राहक है या नहीं। लेकिन भारत में पत्रकारों और अन्य लोगों के फोन में पेगासस की मौजूदगी और संभावित हैकिंग के लिए चुने गए लोगों को देखकर यह स्पष्ट होता है कि यहां आधिकारिक एजेंसियां सक्रिय रूप से इस स्पायवेयर का उपयोग कर रही हैं।
सरकार का पेगासस के इस्तेमाल से इनकार नहीं
नरेंद्र मोदी सरकार ने अब तक स्पष्ट रूप से पेगासस के आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल से इनकार नहीं किया है। पर यह उन आरोपों को खारिज करती रही है कि भारत में कुछ लोगों की अवैध निगरानी के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया जा सकता है।
शनिवार को पेगासस प्रोजेक्ट के सदस्यों की ओर से इस बारे में भेजे गए सवालों के जवाब में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इसी बात को दोहराया है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब की ओर से लीक हुई सूची में शामिल कई देशों के लोगों के एक छोटे समूह के स्मार्टफोन के स्वतंत्र फॉरेंसिक विश्लेषण में आधे से अधिक मामलों में पेगासस स्पायवेयर के निशान मिले हैं।
भारत में जांचे गए 13 आईफोन
भारत में जांचे गए 13 आईफोन में नौ में उन्हें निशाना बनाए जाने के सबूत मिले हैं। जिनमें से सात में स्पष्ट रूप से पेगासस मिला है। नौ एंड्राइड फोन भी जांचे गए, जिनमें से एक में पेगासस के होने का प्रमाण मिला। आठ को लेकर निश्चित तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि एंड्रॉइड लॉग उस तरह का विवरण प्रदान नहीं करते हैं, जिसकी मदद से एमनेस्टी की टीम पेगासस की उपस्थिति की पुष्टि कर सकती है।
हालांकि, इस साझा इन्वेस्टिगेशन से यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि वे सभी पत्रकार, जिनके नंबर लीक हुई सूची में मिले हैं, की सफल रूप से जासूसी की गई या नहीं। इसके बजाय यह पड़ताल सिर्फ यह दिखाती है कि उन्हें 2017-2019 के बीच आधिकारिक एजेंसी या एजेंसियों द्वारा लक्ष्य के बतौर चुना गया था।
दिल्ली के इन पत्रकारों पर थी नज़र!
लिस्ट में शामिल अधिकतर पत्रकार राष्ट्रीय राजधानी के हैं और बड़े संस्थानों से जुड़े हैं। मसलन, लीक डेटा दिखाता है कि भारत में पेगासस के क्लाइंट की नजर हिंदुस्तान टाइम्स समूह के चार वर्तमान और एक पूर्व कर्मचारी पर थी।
इनमें कार्यकारी संपादक शिशिर गुप्ता, संपादकीय पेज के संपादक और पूर्व ब्यूरो चीफ प्रशांत झा, रक्षा संवाददाता राहुल सिंह, कांग्रेस कवर करने वाले पूर्व राजनीतिक संवाददाता औरंगजेब नक्शबंदी और इसी समूह के अख़बार मिंट के एक रिपोर्टर शामिल हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की ऋतिका चोपड़ा (शिक्षा और चुनाव आयोग कवर करती हैं), इंडिया टुडे के संदीप उन्नीथन (रक्षा और सेना संबंधी रिपोर्टिंग करते हैं), टीवी 18 के मनोज गुप्ता (इन्वेस्टिगेशन और सुरक्षा मामलों के संपादक हैं), द हिंदू की विजेता सिंह (गृह मंत्रालय कवर करती हैं)। इनके फोन में पेगासस डालने की कोशिशों के प्रमाण मिले हैं।
द वायर के किन पत्रकारों को बनाया गया निशाना
द वायर में जिन्हें निशाना बनाया गया, उनमें संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु शामिल हैं। उनके फोन की फॉरेंसिक जांच में इसमें पेगासस होने के सबूत मिले हैं। द वायर की डिप्लोमैटिक एडिटर देवीरूपा मित्रा को भी निशाना बनाया गया है।
रोहिणी सिंह के अलावा द वायर के लिए नियमित तौर पर राजनीतिक और सुरक्षा मामलों पर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा का नंबर भी रिकॉर्ड में मिला है। इसी तरह स्वतंत्र पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी को भी तब निशाना बनाया गया था, जब वे वायर के लिए लिख रही थीं।
द वायर के डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश नामों को 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले 2018-2019 के बीच निशाना बनाया गया था। कुछ पत्रकारों को कमोबेश एक ही समय में संभावित लक्ष्यों की सूची में जोड़ा गया।
देश की राजनीति में आया भूचाल
इजरायली स्पाइवेयर पेगासस के जरिए राहुल गांधी, कई अन्य विपक्षी नेताओं, केंद्रीय मंत्रियों, पत्रकारों आदि की जासूसी की रिपोर्ट सामने आने के बाद कांग्रेस मोदी सरकार और बीजेपी पर हमलावर है। कांग्रेस ने तो बीजेपी को ‘भारतीय जासूस पार्टी’ करार दे दिया है। मुख्य विपक्षी पार्टी ने पीएम मोदी के खिलाफ जांच और गृह मंत्री अमित शाह के इस्तीफे की मांग कर दी है।
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि इस मामले की जांच होने से पहले अमित शाह को इस्तीफा देना चाहिए। और मोदी जी की जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि 19 जुलाई से आरंभ हुए संसद के मानसून सत्र में पेगासस के मुद्दे को पुरजोर ढंग से उठाया जाएगा।
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि राहुल गांधी और मंत्रियों की जासूसी की गई है। हमारे सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों की भी जासूसी गई है। पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और कई मीडिया समूहों की भी जासूसी कराई गई। क्या किसी सरकार ने इस तरह का कुकृत्य किया होगा? भाजपा अब ‘भारतीय जासूस पार्टी’ बन गई है।
भाजपा ने पूछा, मामला मॉनसून सत्र से पहले ही क्यों?
उधर बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह मामला संसद के मॉनसून सत्र से पहले ही यह मामला जानबूझकर उठाया गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘क्या कुछ लोग योजनाबद्ध तरीके से लगे हुए थे कि यह मामला मॉनसून सत्र से पहले ही शुरू करना है, ताकि देश में एक नया माहौल बनाया जाए।’
गौरतलब है कि सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये भारतीयों की जासूसी करने संबंधी खबरों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि संसद के मॉनसून सत्र से ठीक पहले आरोप भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने का प्रयास है।
निष्कर्ष
Spying Opponents: जब तक आरोपों की ठीक से पुष्टि न हो जाए, तब तक उनको लेकर कोई धारणा नहीं बनाई जा सकती। लेकिन विरोधियों की जासूसी का यह कोई पहला मामला नहीं है। समय समय पर राजनीतिक जासूसी के मामले सामने आते रहे हैं और उन पर बवाल भी मचता रहा है।
क्योंकि किसी भी पार्टी की सरकार हो, अपनी कमजोरियों पर चोट से हमेश बचने का प्रयास करती ही है। उसकी जिज्ञासा विरोधियों के रहस्य जानने की होती है, ताकि वह शासन की रणनीति बना सके। भले ही यह कदम गैरकानूनी क्यों न हो। आपको क्या लगता है, कमेंट करके बताएं।