
नारी अस्तित्व और गरिमा को प्रतिष्ठित करने के लिए शहर की महिला साहित्यकार निरंतर अपनी कलम को धार दे रही हैं। ये अपराजिता न केवल महिलाओं को सामाजिक संरचना में दूसरे दर्जे पर रखे जाने के विरोध में मुखर हैं बल्कि अपनी कलम से सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार भी कर रही हैं। इनके जीवन में संघर्ष आए लेकिन हौसले के दम पर उनका सामना कर न केवल खुद को स्थापित किया बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गईं।
कवयित्री डॉ. शशि तिवारी ने कहा है कि सामवेदी परंपरा के ब्राह्मण परिवार में मेरा जन्म हुआ। इसलिए काव्य, साहित्य, संगीत के संस्कार परिवार से ही मिले। मेरे पति वीरेन का सहयोग मिला। उनके अचानक दुनिया से चले जाने पर दो वर्ष तक के लिए सारी गतिविधियों का सूत्र मेरे हाथ से छूट गया। मैं असहाय महसूस करने लगी।
ऐसे में मेरी मां कुंती तिवारी ने मुझे हिम्मत दी। आगरा कॉलेज में संस्कृत विभागाध्यक्ष के रूप में 40 वर्षों तक सेवाएं दीं। संस्कृत व हिंदी की 27 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 2000 से अधिक पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। विदेशों में सेमिनार, काव्य समारोह में काव्यपाठ किया।
कवयित्री डॉ. शैलवाला अग्रवाल ने कहा है कि लेखक प्रकाशक पिता से साहित्य में रुचि और लेखन की प्रतिभा मुझे विरासत में मिली। विवाह के बाद मर्यादा वाले संयुक्त परिवार में कलम चलाना घर के सारे कामों से निवृत्त होकर ही हो पाता था।
मैं रात को लिखा करती थी। 1971 में मेरे पहले उपन्यास ‘मालिनी’ की पांडुलिपि तैयार हो गई थी। सारा लिखा दराज में जब्त होता रहा। गृहस्थी के दायित्वों से निवृत्त होकर वर्ष 2000 से प्रकाशन संभव हुआ। गद्य-पद्य दोनों विधाओं की 20 पुस्तकें सामने आ चुकी हैं, तीन इस समय प्रकाशन में हैं। 2000 में आगरा महानगर लेखिका समिति की स्थापना भी की।
कवयित्री रुचि चतुर्वेदी ने कहा है कि बचपन से ही वाद-विवाद, लेखन, मानस आदि प्रतियोगिताओं में भाग लेना प्रिय था। कई बार घर से अनुमति नहीं मिलती थी। लेखन के प्रति प्रेम कभी कम नहीं हुआ। बीएससी में आते ही विवाह हो गया।
ससुराल में घूंघट की प्रथा थी। पति रजनीश तिवारी के सहयोग से मुश्किल नहीं हुई। एमएससी करते हुए काव्य गोष्ठियों में जाना शुरू किया। 2009 में पहला कार्यक्रम किया। आकाशवाणी में प्रसारित होने का मौका मिला। करीब एक हजार काव्य मंचों पर काव्य पाठ कर चुकी हूं। 25 शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। कक्षा पांच की पुस्तक में मेरी कविता नीम को रखा गया है।
कवयित्री शांति नागर ने कहा है कि लेखन के प्रति शुरू से ही विशेष लगाव रहा। 1982 में दस साल की उम्र में सबसे पहली कविता पढ़ी। इंटर के बाद शादी हो गई। आगरा आने के बाद लगातार शिक्षण कार्य भी किया। आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि सर्विस छोड़ देती। इसकी वजह से सिर्फ आगरा में ही काव्य पाठ किया।
शादी से पहले अलीगढ़, कासगंज समेत कई जगह काव्य पाठ करने जाया करती थी। अब तक चार पुस्तकें लिख चुकी हूं। । आजकल वेदमंत्रों का भावार्थ लिख रही हूं। अब सबसे बड़ी समस्या यह है कि अकेले कहीं जा नहीं पाती हूं, इसलिए ऑनलाइन गोष्ठी करती हूं।