
बिहार में नटवर लाल के नाम से प्रसिद्ध सुब्रत राय का तिलिस्म राजनीति, बॉलीवुड और खेल हस्तियों तक ही सीमित नहीं है। सुब्रत राय अपने खिलाफ होने वाली हर गतिविधि को प्रभावित करने की पूरी कोशिश करता है और काफी हद तक सफल भी हो जाता है। यहां तक कि यह अपने हित में कोर्ट के फैसले भी प्रभावित कर देता है।
भारत में चलने वाली नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज ‘बैड बॉय बिलेनियर’ सुब्रत राय के प्रभाव के चलते रोक दी गई है। यह रोक कोर्ट ने लगाई है। दरअसल नेटफ्लिक्स ने अपनी इस वेब सीरीज में सुब्रत राय के नाम का इस्तेमाल कर लिया था। पहले बिहार अररिया की एक अदालत ने सुब्रत राय के नाम का इस्तेमाल करने पर रोक लगाई जब नेटफ्लिक्स ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी तो सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर पटना हाई कोर्ट जाने को कहा। यह सीरीज गत बुधवार को भारत में रिलीज होनी थी।
हालांकि मामले पर फिल्म निर्माता हंसल मेहता ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि फिल्म निर्माताओं के लिए भारत में सच्ची कहानियां बताने के लिए कोई जगह नहीं है। हंसल ने ट्वीट किया, “आप वहां जाते हैं। यह देश सच्ची कहानियों के लिए नहीं है। प्रिय नेटफ्लिक्स कृपया इस उल्लंघन से लड़े।
दरअसल समय समय पर सुब्रत राय के कारनामे सामने आते रहते हैं। सेबी-सहारा विवाद जगजाहिर है। जगह जगह सुब्रत राय की ठगी के खिलाफ निवेशकों और एजेंटों के आंदोलन चल रहे हैं। अब सुब्रत राय की कंपनी सहारा में एक और फ्राड का बड़ा मामला सामने आया है। दरअसल 2012 और 2014 के दौरान जब इसकी दो कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट ने दोषी पाया था और तो उसी समय इसकी कंपनी सहारा समूह ने तीन कोऑपरेटिव सोसाइटी लांच की थी और उनके जरिये उसने चार करोड़ जमाकर्ताओं से तकरीबन 86673 करोड़ रुपये वसूले थे। यह बात इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में सामने आयी है।
तीन सोसाइटी- चौथी 2010 में स्थापित की गयी थी- और उनकी जमा राशि पर सरकार ने लाल झंडी लगा दी है और उसे बेहद संदिग्ध करार देते हुए इन अनियमितताओं की जांच का आदेश दिया गया है जिसमें कहा गया है कि मेहनत से कमायी गयी जमाकर्ताओं की इस राशि को गंभीर खतरा है।
ऐसा नहीं है कि यह कोई पहला मामला हो। 2016 में जब सहारा मीडिया में कर्मचारी बकाया वेतन को लेकर आंदोलन पर थे तो नोएडा परिसर में इनकम टैक्स की छापेमारी में डेढ़ सौ करोड़ रुपये बरामद हुए थे। कहना गलत न् होगा कि सुब्रत राय की कंपनी सहारा का तिलिस्म देवकी नंदन खत्री के उपन्यास चंद्रकांता से कम नहीं है।
जमीनी हकीकत यह है कि सुब्रत राय ने देश के कानून को ठेंगा दिखा रखा है। ऐसा लग रहा है कि इसके सामने हर तंत्र फेल है। यह हाल तब है जब निवेशकों से लेकर एजेंट और कर्मचारियों में हा हा कार मचा है। मामला विधानसभा से लेकर संसद तक उठ चुका है।
सहारा की स्थिति यह है कि कर्मचारियों, एजेंटों और निवेशकों के बारे में सभी को पता है कि वे क्या कर रहे हैं। पर सहारा के कर्णधार सुब्रत राय, ओपी श्रीवास्तव, जेबी राय, स्वप्ना राय और उनके परिवार के बारे में किसी को स्पष्ट रूप से मालूम नहीं है कि ये लोग कहां हैं और क्या कर रहे हैं।
बताया जा रहा है कि सहारा से अपने को अलग कर सबने अपने अपने धंधे जमा लिए हैं। ओपी श्रीवास्तव बाबा राम देव के साथ मिलकर धंधा कर रहा है। जेबी राय ने पानी का धंधा कर रखा है। सुब्रत राय ने अपने बच्चों को विदेश में स्थापित कर दिया है। यह भी अपने आप में रहस्य है कि इस जानकारी के पीछे कोई मजबूत आधार नहीं है।
सहारा के बारे में लोगों मन में संदेह पैदा होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि सहारा ने अपनी किसी कम्पनी को कभी प्रॉफ़िट में नहीं दिखाया। तो फिर 2000 रुपये से शुरू किया गया व्यवसाय दो लाख करोड़ तक कैसे पहुंच गया, यह अपने आप में एक प्रश्न है। संस्था में ब्यूरोक्रेट, नेता और अभिनेताओं का पैसा लगा होने की बातें बाजार में आती रही हैं।
सहारा इंडिया ग्रुप और मार्केट रेग्युलेटर सेबी के बीच चल रही कानूनी लड़ाई अब जगजाहिर हो चुकी है। यह भी अपने आप में रहस्य है कि कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। इसे लेकर बड़े कानूनी जानकारों में कौतूहल है। वैसे सहारा पर आरोप तो लोग दबी जुबान में लगाते ही रहते थे पर मार्च 2014 में जब सहारा ग्रुप सरगना सुब्रत राय को सुप्रीम कोर्ट ने जेल भेजा तो लोगों का ध्यान इस ओर गया।
सुब्रत राय पर निवेशकों के पैसे न लौटाने का आरोप है। सहारा ग्रुप पर सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इनवेस्ट कॉरपोरेशन नाम की दो कंपनियों के जरिये अवैध रूप से डिबेंचर जारी करने का आरोप है। यही वजह रही कि सहारा ग्रुप की इन दोनों कंपनियों की ओर से जारी किए गए पब्लिक इश्यू को सेबी ने अगस्त 2012 में ही अवैध करार दे दिया था।
6 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से सहारा ग्रुप को उस समय भारी झटका दिया गया जब सुप्रीम कोर्ट ने धरती का कृतिम स्वर्ग के नाम से प्रसिद्ध सहारा ग्रुप की सबसे महत्वाकांक्षी हाउसिंग प्रोजेक्ट एंबी वैली को अटैच करने का आदेश दे दिया। मुंबई-पुणे एक्सप्रेस—वे पर मौजूद एंबी वैली प्रोजेक्ट 39 हजार करोड़ की लग्जरी टाउनशिप है। सुब्रत राय ने बड़े शौक से इसे बनवाया था।
बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के निवेशकों के बकाया 14,779 करोड़ रुपये की वसूली को लेकर ये सख्त कदम उठाया था। सुब्रत राय का कहना है कि हमें सेबी को देना नहीं बल्कि उससे लेना है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ सहारा ग्रुप के एंबी वैली प्रोजेक्ट को अटैच किया है बल्कि सहारा से उन संपत्तियों की सूची भी मांगी थी, जिसकी नीलामी कर ग्रुप की बकाया राशि को प्राप्त किया जा सके।
यह भी एक रहस्य है कि सुप्रीम कोर्ट के तमाम दावे के बावजूद जमीनी स्तर पर कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। कोर्ट की कार्रवाई किसी की समझ में नहीं आ रही है। यह भी कोई नहीं जानता कि किस कानून के तहत सुब्रत राय को कैद किया गया है। कांग्रेस प्रवक्ता पेशे से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने तो सुब्रत राय को जेल भेजने के आदेश पर ही सवाल खड़े कर दिए थे।
सुब्रत राय प्रवचन देने के लिए तो बहुत लोकतंत्र की बात करते हैं पर जमीनी हकीकत यह है कि वह संस्था में विरोध का एक भी स्वर बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। 2016 में जब कई महीने तक मीडियाकर्मियों को वेतन नहीं मिला, तो आंदोलन हुआ। इस आंदोलन से घबराकर सुब्रत रॉय ने आंदोलन की अगुआई कर रहे मीडिया कर्मियों को टर्मिनेट कर दिया।
ऐसा भी नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट इस बात को समझ नहीं रहा है। सुप्रीम कोर्ट को पता है कि सहारा ग्रुप धड़ल्ले से अपनी मेंबर कंपनियों के बीच फंड को मूव करता है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सहारा ग्रुप की दो दोषी कंपनियों सहारा इंडिया रियल इस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन को अकेले सबक सिखाने का ही मन नहीं बनाया है बल्कि सर्वोच्च अदालत ने पूरे ग्रुप के कामकाज पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर रखा है।
पैरोल का फायदा उठाते हुए सुब्रत राय ने मोदी सरकार में काफी कुछ मैनेज भी किया है। पिछले साल हुई नोटबन्दी में सहारा के काफी काले धन के सफेद धन में तब्दील करने की खबरें भी आईं थीं। सहारा, सेबी और सुप्रीम कोर्ट का खेल गजब मोड़ पर पहुंच चुका है।
सुब्रत राय ने अपने समर्थकों और कर्मचारियों को संदेश दे दिया है कि कोई दावेदार न होने की वजह से ग्रुप को सेबी को जमा किया गया पैसा वापस मिलने वाला है। अब कोई दिक्कत सहारा के सामने नहीं रहेगी। उधर, सुप्रीम कोर्ट के पूरे सहारा ग्रुप और उसके चतुर प्रमोटरों को उन्हीं की चाल में मात देने की रणनीति की जानकारी मिल रही है।
सुप्रीम कोर्ट की रणनीति का एक हिस्सा यह भी था कि उसने 6 फरवरी 2017 को कपिल सिब्बल की उस फरियादी याचिका को भी दरकिनार कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि इनकम टैक्स अपीलेंट ट्रिब्यूनल ने भी इन दोनों दोषी कंपनियों के 85 फीसदी निवेशकों को सही बताया है।
बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सेबी की जांच पर ज्यादा भरोसा जताया है, जिसमें बताया गया है कि कंपनी के ज्यादातर निवेशक बेनामी और काल्पनिक हैं। सहारा ग्रुप भी इस बात को अब तक साबित नहीं कर पाया है कि उसने निवेशकों को बैंकिंग चैनल के जरिये ही पैसा वापस किया है। यही वजह है कि काफी लोग सहारा को हिन्दुस्तान का स्विस बैंक बताते रहे हैं।
इन दिनों खबरें मिल रही हैं कि सुब्रत राय ने सुप्रीम कोर्ट को भी काफी मैनेज किया। पिछले साल कपिल सिब्बल के इस तर्क कि कोई भी ऐसा बैंक या निवेशक नहीं है जो पैसे वापस करने की मांग कर रहा हो, को भी सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया था।
यह इसलिए माना जाता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि सहारा ग्रुप मनी लांड्रिंग की भूमिका निभा रहा है। सुप्रीम कोर्ट को भी पता है कि इस पूरे खेल के पीछे के असल खिलाड़ी कोई और हैं जो सामने नहीं आ पा रहा है। शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च संस्था भी सहारा के सामने बेबस नजर आ रही है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट सहारा ग्रुप के उस क्लाइंट की सूची के बारे में जानना चाहता है जिसमें विशिष्ट और ऊंचे लोगों के नाम शामिल हैं। उनमें अमीर और मशहूर फिल्म कलाकार, क्रिकेटर और नेता भी शामिल बताए जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की यह बेनामी संपत्ति के खिलाफ चोट करने की एक बड़ी रणनीति भी हो सकती है, जो पिछले वर्ष मोदी सरकार के बेनामी संपत्ति के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की घोषणा से पहले से जारी है। यह भी कड़वा सच है कि भले ही सुब्रत राय पैरोल पर जेल से बाहर आकर मजे लूट रहा हो पर जेल भेजे जाने की तलवार अभी भी लटक रही है।