Superstition business: देश में आस्था के नाम पर चल रहा अंधविश्वास का धंधा फलफूल रहा है। जगह-जगह दरबार लगते हैं और लोगों को इस माहौल में ढाला जा रहा है। इस धंधे में ठगना, बेवकूफ बनाना, छोटे-मोटे नुकसान कराना तो आम बात है।
Superstition business: छिपे धन के लालच में मासूम की हत्या
चरण सिंह राजपूत
Superstition business: अंधविश्वास की आड़ में मासूमों की हत्या भी की जाने लगी हैं। उत्तर प्रदेश के बांदा की चमड़ा मंडी में अंधविश्वास में आकर मां-बेटी ने पांच साल की एक मासूम की चाकू से गला रेतकर इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उनके ऐसा करने से उन्हें छिपा धन मिलने की किसी ने उम्मीद जगा दी थी।
हत्या भी किसी और की नहीं बल्कि पड़ोसी की बच्ची की गई है। मामला इतना दर्दनाक है कि मारी गई बच्ची के पिता का 10 दिन पहले ही निधन हो चुका है।
दरअसल, चमरौड़ी निवासी चुन्नी वर्मा की मौत 10 दिन पहले गंभीर बीमारी से हो गई थी। वर्मा की पांच वर्षीय बेटी आरती सोमवार दोपहर दो बजे अचानक लापता हो गई। मां माया वर्मा ने उसकी काफी खोजबीन की, लेकिन कोई पता नहीं चला।
बच्चे ने किया हत्या का खुलासा
जानकारी पुलिस को दी गई। पुलिस के तलाशी अभियान में माया वर्मा के पड़ोसी मूलचंद्र के दस साल के बच्चे ने पुलिस को बताया कि मां रानी और बहन ने मिलकर आरती की हत्या कर दी है। बच्चे ने बताया कि चाकू से आरती का गला रेता गया और शव को नाली में फेंक दिया गया।
पुलिसिया पूछताछ में मां-बेटी ने छिपा धन पाने के अंधविश्वास में हत्या की बात कबूल की है। रानी का पति मूलचंद्र दिन में काम पर गया था। देर रात घर लौटा तो उसको पत्नी और बेटी की करतूत का पता चला। यह जानकारी मिलने पर उसने भी अपनी जुबान बंद कर ली।
दरअसल, आस्था के नाम पर अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले बहुत से संगठन और बहुत से लोग हैं। उन्हीं की वजह से देश में अंधविश्वास को बढ़ावा मिल रहा है। इन संगठनों का प्रयास होता है कि अंधविश्वास के नाम पर अच्छे-खासे समर्थक बना लिए जाएं।
धन और जनाधार जुटाने वाले संगठन
इन समर्थकों से संगठनों को आर्थिक सहयोग तो मिलता ही है, राजनीतिक दलों पर दबाव बनाने के लिए एक बड़ा जनाधार भी इनके पास हो जाता है। जेल में बंद आसाराम बाबू, राम पाल, राम रहीम जैसे बाबा इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं।
जगजाहिर है कि राजनीतिक दलों के बड़े बड़े नेता कैसे इनके सामने नतमस्तक रहते हैं। इस अंधविश्वास का असर कोरोना महामारी में भी देखने को मिला। हद तो तब हो गई जब उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने गंगा में नहाने से कोरोना भाग जाने की बात कह दी।
कोरोना संक्रमण को ठीक करने के लिए एक ओर दुनिया के वैज्ञानिक दवा की खोज में लगे हुए थे तो दूसरी ओर भारत में दैवीय चमत्कार की उम्मीद को बढ़ावा दिया जाने लगा। कोई गो-मूत्र से कोरोना ठीक होने की बात करने लगा तो कोई कोरोना भगाने के लिए यज्ञ करने लगा।
खुद प्रधानमंत्री ने फैलाया अंधविश्वास
यहां तक कि पहली लहर में खुद प्रधानमंत्री ने कोरोना भगाने के लिए लोगों से थालियां और तालियां बजवाईं, टार्च जलवाईं। लेकिन हद की पराकाष्ठा तब हो गई जब ओडिशा में कोरोना को भगाने के लिए नरबलि दे दी गई। यह कारनामा किसी आम आदमी ने नहीं बल्कि एक पुजारी ने किया। मंदिर में गए एक इंसान की गला काट कर बलि दे दी गई।
यह घटना पिछले साल ओडिशा के प्रमुख शहर कटक में घटी। कटक के बाहुड़ा गांव में ब्राह्मणी देवी नाम का मंदिर है। यहीं पर यह हैरान कर देने वाली घटना घटी। हालांकि बलि देने के आरोप में 70 साल के पुजारी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
पुलिस को दिए बयान में पुजारी ने कहा कि चार दिन पहले उसे मां मंगला देवी का सपना आया था कि नरबलि देने से यह इलाका कोरोना महामारी से मुक्त हो जाएगा। 27 मई 2020 की रात को जब गांव के ही 55 वर्षीय सरोज प्रधान मंदिर में पहुंचे तब पुजारी ने धोखे से धारदार कटारी से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया।
इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार कौन ?
प्रश्न उठता है कि क्या ऐसी घटनाएं अचानक घटती हैं। इस तरह की घटनाओं के लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं? इनकेे रोकने के लिए क्या-क्या प्रयास होते हैं। कोरोना को भगाने के लिए एक साथ गायत्री मंत्र, सूर्य गायत्री मंत्र एवं महामृत्युंजय मंत्र से हवन यज्ञ करना कहां तक जायज है?
हिन्दू महासभा ने कोरोना को भगाने के लिए दिल्ली के जंतर मंतर पर गो-मूत्र पार्टी आयोजित की थी। भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर का कहना है कि गोमूत्र से उन्हें कोरोना संक्रमण नहीं हुआ।
हिन्दू महासभा के स्वघोषित संत ने तो यहां तक मांग कर दी थी कि जो भी व्यक्ति भारत में कदम रखे, उसको गो-मूत्र पिलाया जाए, गोबर से स्नान कराया जाए, फिर आने दिया जाए। क्या यह सब अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां नहीं हैं ?
गोदी मीडिया कम जिम्मेदार नहीं
Superstition business: चिंता की बात तो यह है कि जहां मीडिया को इस तरह की घटनाओं के प्रचार से बचना चाहिए, वहीं वह बढ़-चढ़ कर इनको प्रचारित करता है। अंधविश्वासों पर घंटे भर के कार्यक्रम बनाए जाते हैं और डिबेट आयोजित की जाती हैं।
दरअसल, देश में अंधविश्वास फैलने से कुछ लोगों का फायदा होता है। यदि ऐसा नहीं तो फिर अंधविश्वास के खिलाफ काम करने वाले नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या पर सकारात्मक कदम क्यों नहीं उठाए गए ? इस बात का पुख्ता सबूत है कि अगर दाभोलकर अपने अभियान में सफल हो जाते तो कई लोगों का अंधविश्वास का धंधा बंद हो जाता।
दाभोलकर एक लेखक और तर्कवादी व्यक्ति थे। वह महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक थे। 20 अगस्त 2013 को उनकी हत्या कर दी गई। विडंबना इस बात की है कि जहां धर्म के नाम पर लोग एकदम आक्रोशित हो जाते हैं वहीं अंधविश्वास के खिलाफ काम करने वाले व्यक्ति की हत्या तक कर दी गई। समाज पर इसका कुछ खास असर नहीं पड़ा।