Supreem Court Ka Sahara: सूचना के संसार इंफोपोस्ट न्यूज में आपका स्वागत है। आज हम बात करेंगे कि किस प्रकार किसान आंदोलन के संदर्भ में एक हीरो की तरह सुप्रीम कोर्ट की एंट्री हुई है ? सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है और समस्या के समाधान के लिए विशेषज्ञों की चार सदस्यीय कमेटी बना दी है। फिर भी समस्या जस की तस है। जानते हैं कि अभी क्या पेंच फंसा हुआ है ?
Supreem Court Ka Sahara: किसके समर्थक हैं सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के चारों सदस्य ?
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। Supreem Court Ka Sahara: हिंदी फिल्मों में आपने ऐसे बहुत से सीन देखे होंगे, जब हीरोइन खलनायक के झांसे में नहीं आती तो वही खलनायक अपने आदमियों से हीरोइन पर हमला करा देता है और खुद उसे बचाने के लिए सामने आ जाता है। ताकि हीरोइन उसे अपना हीरो मान ले और उसकी बातों में आ जाए।
किसान आंदोलन के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में जो कुछ भी हुआ है, उसे इसी फिल्मी कहानी के रूप में देखा जा रहा है। किसानों की समस्या के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जो चार सदस्यीय कमेटी बनाई है, उसके सदस्यों की निष्ठा पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
कौन लोग हैं कमेटी के सदस्य ?
पहले सदस्य हैं भूपिंदर सिंह मान। इनके बारे में बताया गया है कि ये सरकार के कृषि कानूनों का खुलेआम समर्थन कर चुके हैं। ये किसान नेता हैं और राज्य सभा में मनोनीत सदस्य भी रहे हैं। इन्होंने पिछले 14 दिसंबर को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पत्र लिख कर कहा था कि उनका किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों का समर्थन करता है।
दूसरे सदस्य हैं अनिल घनवट जो नए कृषि कानूनों के पक्ष में बोल चुके हैं। वह महाराष्ट्र में शेतकारी संघ के अध्यक्ष हैं। उनके मुताबिक नए कानूनों से गांवों में कोल्ड स्टोरेज बनाए जाने के क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा। अगर आंदोलनकारी किसानों के दबाव में सरकार नए कृषि कानून वापस ले लेगी तो उससे किसानों को नुकसान होगा।
तीसरे सदस्य हैं अशोक गुलाटी जो नए कृषि कानूनों से किसानों को फायदा होने का दावा कर चुके हैं। गुलाटी साहब कृषि अर्थशास्त्री हैं। वह नीति आयोग के तहत काम करने वाली एग्रीकल्चर टास्क फोर्स के सदस्य भी हैं। उन्होंने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा था कि नए कृषि कानूनों से किसानों को फायदा होगा।
चौथे और अंतिम सदस्य हैं प्रमोद जोशी जो कांट्रैक्ट फार्मिंग को किसानों के लिए फायदेमंद बता चुके हैं। जोशी साहब कृषि वैज्ञानिक हैं जिन्होंने 2017 में अपने एक लेख के जरिये बताया था कि नए कृषि कानूनों के लागू हो जाने से अनाज के दाम में उतार चढ़ाव आएगा और इससे किसानों को फायदा होगा। यह वही समय है जब नए कृषि कानून बनाए जा रहे थे।
कमेटी किसानों के साथ कर पाएगी न्याय ?
आपने सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के चारों सदस्यों की पृष्ठभूमि के बारे में जान लिया। इसलिए यह सवाल अपने आप उठता है कि क्या कमेटी किसानों के साथ कर पाएगी न्याय ? शायद यही वजह है कि आंदोलनकारी किसानों ने इस कमेटी को खारिज कर दिया है। किसानों ने कहा है कि वे सुप्रीम कोर्ट की इस कमेटी के समक्ष पेश नहीं होंगे और आंदोलन यथावत जारी रहेगा।
सवाल यह भी उठ रहा है कि कमेटी बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को इन चारों नामों का सुझाव किसने दिया ? क्या इन नामों का सुझाव सरकार ने दिया है? क्या कमेटी में इन लोगों के नाम शामिल करने से पूर्व सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी थी कि ये सभी के सभी कृषि कानूनों के घनघोर समर्थक हैं ?
दाल में कुछ काला है क्या ?
यह भी कहा गया है कि एक गूगल सर्च से कमेटी के चारों सदस्यों के बारे में विस्तार से जाना जा सकता है। ऐसे में इन सदस्यों के बारे में अगर सुप्रीम कोर्ट को कोई जानकारी नहीं थी तो किसानों को दाल में कुछ काला लगना स्वाभाविक ही है। अगर सुप्रीम कोर्ट को सारी जानकारी थी तो किसान यही कहेंगे कि सारी की सारी दाल ही काली है।
एक ओर किसानों ने सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के समक्ष प्रस्तुत न होने और आंदोलन यथावत जारी रखने का फैसला किया है तो दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसानों को कमेटी के समक्ष प्रस्तुत होना ही होगा। किसान इसे अपने साथ छल बता रहे हैं। किसान नेता राकेश टिकैत तो यहां तक कह चुके हैं कि सरकार एक हजार किसानों को मारने की प्लानिंग कर चुकी है।
गोदी मीडिया की संदिग्ध भूमिका
गोदी मीडिया की बात करें तो किसी भी अखबार ने अपनी संपादकीय टिप्पणी में कमेटी के सदस्यों के पक्षपाती विचारों के बारे में एक भी शब्द नहीं लिखा है। उधर कमेटी की बैठक दस दिनों के भीतर होनी है। अगर आंदोलनकारी किसान कमेटी के समक्ष प्रस्तुत न हुए तो कमेटी कैसी रिपोर्ट बनाएगी ? यह भी बताना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट की कमेटी में पहले पी साईंनाथ को शामिल किया जाना था, लेकिन अब वह इस कमेटी में नहीं हैं।
पी साईंनाथ कृषि मामलों के जानकार हैं। कृषि संबंधी निष्पक्ष विचारों के लिए उन्हें अवार्ड भी मिल चुके हैं। वह समय समय पर आंदोलनकारी किसानों की बात उठाते रहे हैं। लेकिन उनको कमेटी में शामिल न किए जाने से संदेह पैदा हो रहे हैं। और यही संदेह समस्या के समाधान में पेंच बने हुए हैं। आपके मुताबिक कमेटी कैसी होनी चाहिए ? कमेंट करके बता सकते हैं।